Advertisement

क्या है नार्को टेस्ट और क्या है इसकी वैधानिकता? जानिये महत्वपूर्ण बातें

NARCO TEST

हमारे देश में संविधान के तहत कई तरह के अधिकार आम जन को दिए गए हैं. यहां तक कि अगर कोई व्यक्ति किसी केस का आरोपी है तो उनकी सुरक्षा के लिए भी कई तरह के प्रावधान किए हैं.

Written By My Lord Team | Updated : May 20, 2023 6:05 PM IST

नई दिल्ली: अदालत सबूतों और गवाहों पर यकीन करती है. इसलिए अपराधी को सजा दिलाने के लिए पुलिस या देश की जांच एजेंसियां हर मुमकिन कोशिश करती हैं तथ्यों की तह तक पहुंचने की, जिसके लिए अधिकारी कई तरीके अपनाते हैं उन्हीं में से एक है नार्को टेस्ट की प्रक्रिया.

किसी भी आपराधिक केस में नार्को टेस्ट का प्रयोग आरोपी व्यक्ति से जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है. इसका इस्तेमाल तब किया जाता है जब आरोपी जानकारी को देने में असमर्थ हो या वह जानकारी देना नहीं चाहता हो. ज्यादातर आपराधिक मामलों में नार्को टेस्ट का इस्तेमाल कर सच को बाहर लाने की कोशिश की जाती है.

Advertisement

ट्रुथ सीरम इंजेक्शन

नार्को टेस्ट में व्यक्ति को ट्रुथ सीरम इंजेक्शन दिया जाता है. इसके कारण व्यक्ति को खुद पर काबू नहीं रहता है और वह बोलने लगता है. नार्को टेस्ट एक फोरेंसिक परीक्षण होता है. जब यह परीक्षण किया जाता है उस वक्त वहां जांच अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, चिकित्सक और फोरेंसिक विशेषज्ञ, ऑडियो वीडियोग्राफी और अन्य सहायक नर्सिंग स्टाफ भी मौजूद होते हैं. ये एक रिपोर्ट तैयार करते हैं जिसे अदालत में पेश किया जाता है.

Also Read

More News

नार्को टेस्ट की वैधानिकता

कई बार आपने फिल्मों में देखा होगा कि पुलिस किसी अपराधी से सच उगलवाने के लिए उसके साथ मार पीट करती है, लेकिन हकीकत इससे परे हैं. हमारे देश के संविधान के अनुच्छेद 20(3) के अनुसार किसी भी अपराध के आरोपी को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए या अपने खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.

Advertisement

कानून पर नजर डाले तो सबूतों और गवाहों से संबंधित भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 में भी ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं है जो नार्को टेस्ट के बारे में बताता हो, लेकिन अदालत की मंजूरी पर अगर आरोपी व्यक्ति खुद इस टेस्ट के लिए हामी भर दे तो यह टेस्ट लिया जा सकता है.

सेल्वी मुरुगेशान बनाम महाराष्ट्र राज्य मामला: इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धांत निर्धारित किया कि आरोपी व्यक्ति की सहमति के बिना आरोपी व्यक्ति पर नार्को-एनालिसिस टेस्ट नहीं किया जा सकता है. इस मामले में सुनवाई के दौरान सवाल किया गया था कि क्या आरोपी व्यक्ति का नार्को-एनालिसिस टेस्ट कराना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन होगा?

जिसके जवाब में “कोर्ट ने कहा कि यह उस प्रश्न की प्रकृति पर निर्भर करेगा जो आरोपी से पूछा जाना है. क्या आरोपी द्वारा दी गई कोई भी जानकारी उसे अपराध में फसाने की प्रवृत्ति रखती है या निर्दोष साबित करने की. दंड विधि के तहत पुलिस अधिकारी के पास साक्ष्य जुटाने की शक्ति है. इसी प्रकार कास के आरोपी का नार्को एनालिसिस टेस्ट कराना भी सबूत इकट्ठा करने का हिस्सा है.“

श्रद्धा मर्डर केस: पिछले साल हुए श्रद्धा मर्डर केस का आरोपी आफताब अमीन पूनावाला का नार्को टेस्ट किया गया. इस टेस्ट में तकरीबन 2 घंटे लगे. इस केस में भी अदालत और आरोपित की मंजूरी के बाद ही नार्कों टेस्ट लिया गया था.