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Mortgage क्या है? Transfer of Property Act के तहत कैसे किसी संपति को Mortgage किया जाता है- जानिये

Mortgage क्या है , Transfer of Property Act में

जब भी हमें वित्तिय रुप से धन की आवश्कता होती है, तो हम हमारे संपत्ति को गिरवी रख देते है और कुछ धनराशि प्राप्त कर लेते है जिससे कि कुछ समय के लिए हमें हमारे जीवन में एक ठहराव मिल जाता है ।

Written By My Lord Team | Published : July 18, 2023 1:28 PM IST

नई दिल्ली:  संपत्ति पर ऋण एक सुरक्षित कर्ज (Loan) हैं, जिसमें आवेदक की सम्पति को बन्धक कर दिया जाता है और ये आवेदनकर्ता के लिए सुरक्षित होने के कारण यह व्यक्तिगत ऋण की अपेक्षा एक अच्छा विकल्प और एक अच्छा साधन बन जाता है।

जब भी हमें वित्तिय रुप से धन की  आवश्कता होती है, तो हम अपनी संपत्ति को गिरवी रख देते है और कुछ धनराशि प्राप्त कर लेते है जिससे कि कुछ समय के लिए हमें हमारे जीवन में एक ठहराव मिल जाता है । इस तरह की संपत्ति को एक व्यक्ति द्वारा कैसे गिरवी/बन्धक रखते है आइये विस्तार से जानते हैं।

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Mortgage क्या है?

सम्पत्ति हस्तान्तरित करने वाला व्यक्ति बन्धककर्ता (Mortgagor) और जिस व्यक्ति के पक्ष में सम्पत्ति अन्तरित की जाती है, बन्धकदार (Mortgagee) कहलाता है। दूसरे शब्दों में ऋण लेने वाला तथा उस ऋण के भुगतान हेतु स्थावर सम्पत्ति में हित अन्तरित करने वाला व्यक्ति बन्धककर्ता होगा तथा ऋण देने वाला व्यक्ति और स्थावर सम्पत्ति में हित प्राप्त करने वाला व्यक्ति बन्धकदार कहलाता है।

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मूलधन एवं ब्याज़, जिसका भुगतान उस समय प्रतिभूत है, बन्धकधन कहलाते हैं, और इस सम्बन्ध में वह लिखत या विलेख जिसके द्वारा हस्तान्तरण किया जाता है, बन्धक विलेख कहलाता है।

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Mortgage के महत्वपूर्ण कारक

अचल सम्पत्ति में किसी हित का अन्तरण: प्रत्येक बंधक में किसी न किसी अचल संपत्ति में किसी हित का अंतरण (Transfer) होना अनिवार्य है। अचल सम्पति में हित का अंतरण यहाँ बिल्कुल स्पष्ट है कि बन्धक में हित का अंतरण होता, स्वामित्व का नहीं, चल सम्पत्ति इसके क्षेत्र से बाहर है।

मतलब कोई अपना मकान बन्धक रखता है तो इसका अर्थ है कि वे हित अन्तरित करता है, दूसरा इसमें कब्जा अन्तरण हो सकता है या नहीं यह बन्धक के प्रकार पर निर्भर करेगा, और साथ ही साथ बंधक में स्वामित्व का अंतरण कभी नहीं होता इसका मतलब यह है कि हित बंधकग्रहीता के पास आ जाता है, स्वामित्व बन्धककर्ता के पास रहता है।

अचल सम्पत्ति निश्चित होनी चाहिए​

Transfer of Property Act में बंधक केवल अचल सम्पत्ति का ही सम्भव होगा। अचल सम्पत्ति की स्थिति, विवरण एवं प्रकृति इस तरह होनी चाहिये कि बन्धक विलेख से ही उसे तुरन्त पहचाना जा सके। जैसे कि बंधक विलेख में अचल सम्पत्ति की पहचान किये जाने हेतु उसकी चौहद्दी ( boundaries) तथा भूमि की गाटा संख्या / मकान नंबर लिखा होना चाहिए जिससे बंधक सम्पत्ति को आसानी से पहचान हो सके।

प्रतिफल​ का होना अनिवार्य

बन्धक के लिए प्रतिफल ( Consideration) का होना बहुत ही आवश्यक है बिना प्रतिफल के बन्धक शून्य होता है इसका मतलब यह है कि प्रतिफल रहित बन्धक का कोई अस्तित्व नहीं होता है। बन्धक में प्रतिफल कर्ज के रूप में दी गई या दिया जाने वाला धन हो सकता है या फिर वर्तमान या भावी कर्ज या फिर कोई अन्य किसी दायित्व का पालन जिससे धन-संबंधी दायित्व उत्पन हो।

बन्धक विलेख​ (Mortgage Deed)

यदि बन्धक धन लिखित प्रपत्र में है जिसके द्वारा बन्धक के समय अन्तरण किया जाता है, ऐसे प्रपत्र को बन्धक विलेख के नाम से जाना जाता है। धारा 58 में अचल सम्पत्ति ही बन्धक योग्य है। बन्धक की गई सम्पत्ति की कीमत यदि 100रू ० या अधिक तो बंधक-विलेख की रजिस्ट्री अनिवार्य है।

आइये जानते है विभिन्न प्रकार के बन्धकों के विषय में

साधारण बंधक (Simple Mortgage) Section 58 (b)

एक साधारण बंधक में, बंधककर्ता गिरवीदार को अचल संपत्ति हस्तांतरित नहीं करता है, लेकिन बंधक धन का भुगतान करने के लिए सहमत होता है। गिरवीदार इस शर्त पर सहमत होता है कि गिरवी के पैसे का भुगतान न करने की स्थिति में गिरवीदार को संपत्ति बेचने का पूरा अधिकार है और वह बिक्री से प्राप्त आय का उपयोग कर सकता है और इस तरह के लेनदेन को साधारण बंधक कहा जाता है।

सशर्त बन्धक ( Conditional Mortgage) Section 58 (c)

इसमें गिरवीदार गिरवीकर्ता से तीन शर्तें रखता है, और गिरवीदार को संपत्ति बेचने का अधिकार होगा यदि पहली शर्त यह है कि बंधककर्ता एक निश्चित तिथि पर बंधक धन के भुगतान में चूक करता है। दुसरा जैसे ही गिरवीकर्ता द्वारा भुगतान किया जाता है तो बिक्री शून्य हो जाएगी। और सबसे अंतिम में गिरवीकर्ता द्वारा पैसे के भुगतान पर, संपत्ति हस्तांतरित कर दी जाती है ।

भोग बन्धक (Usufructuary Mortgage) Section (d)

इस बंधक में, गिरवीकर्ता गिरवीदार को संपत्ति का कब्ज़ा सौंपता है और गिरवीदार को ऐसी संपत्ति को तब तक बनाए रखने के लिए विशेष अधिकार प्रदान करता है जब तक कि गिरवीकर्ता द्वारा भुगतान नहीं किया जाता है और आगे उसे ऐसी गिरवी संपत्ति से उत्पन्न किराया या लाभ प्राप्त करने और उसे उचित करने के लिए अधिकृत (Authorise) करता है। ब्याज के भुगतान के बदले. वही इस तरह के लेन-देन को सूदखोरी लेन-देन कहा जाता है।

अंग्रेजी बन्धक (English Mortgage) Section 58 ( e)

इस प्रकार के बंधक में, बंधककर्ता संपत्ति को पूरी तरह से गिरवीदार को हस्तांतरित कर देता है और खुद को बाध्य करता है कि वह बताये गये तिथि पर बंधक धन चुका देगा और एक शर्त रखता है कि पैसे चुकाने पर बंधककर्ता संपत्ति को फिर से हस्तांतरित कर देगा। ऐसे लेनदेन को अंग्रेजी बंधक लेनदेन कहा जाता है।

स्वामित्व-पत्रों की जमा राशि (Deposit of title deeds) Section 58 (f)

ऐसे बंधक में जहां कोई व्यक्ति कलकत्ता, मद्रास, बॉम्बे और राज्य सरकार द्वारा बताये गये किसी भी अन्य शहर में है और बंधककर्ता सुरक्षा बनाने के इरादे से अचल संपत्ति के शीर्षक (title) के दस्तावेजों को एक लेनदार या उसके एजेंट को सौंपता है और फिर ऐसे किसी लेन-देन को स्वामित्व-कर्मों की जमा राशि कहा जाता है।

विषम बंधक (Odd Mortgage)

यह वह बंधक जो ऊपर बताये गये बंधकों में से कोई एक नहीं है, उसे असंगत बंधक कहा जाता है।