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मेहर क्या है और इसके ना मिलने पर मुस्लिम महिलाओ के पास क्या है क़ानूनी अधिकार?

मुस्लिम महिलाओं को अपने पति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर धारणाधिकार का अधिकार है जब तक कि उसे मेहर की राशि का भुगतान नहीं किया जाता. यह अधिकार पत्नी द्वारा केवल तभी तक प्रयोग किया जा सकता है जब पति की मृत्यु हो गई हो और पत्नी को उसका मेहर नहीं मिला हो.

Written By My Lord Team | Published : March 15, 2023 5:47 AM IST

नई दिल्ली: मुस्लिम कानून में विवाह की मान्यता एक सिविल अनुबंध के रूप में होती है और इसका उद्देश्य पक्षकारों के बीच प्रस्ताव और स्वीकृति से उत्पन्न होने वाला समझौता आवश्यक है. इस समझौते में मेहर की स्थिति से पता चलता है कि शादी मुस्लिम कानून के तहत अनुबंधित है.

मुस्लिम धर्म में मेहर की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है. मेहर मूल रूप से धन या अन्य संपत्ति है जिसे विवाह के बाद पत्नी को पति द्वारा द्वारा दिया जाता है, जिस पर पत्नी का पूरी तरह से हक होता है. पति द्वारा पत्नी को मेहर देना सम्मान के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है. यहां यह समझना ज़रूरी है कि मेहर पूरी तरह से पत्नी का है और किसी का नहीं.

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मेहर अनिवार्य रूप से दो प्रकार के हैं

1. निर्दिष्ट

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2.अनिर्दिष्ट मेहर

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निर्दिष्ट मेहर भी दो प्रकार के होते हैं- शीघ्र और आस्थगित मेहर.

निर्दिष्ट मेहर

यदि मेहर की राशि विवाह अनुबंध में वर्णित है, तो यह मेहर निर्दिष्ट होगी. निर्दिष्ट मेहर का सीधा सा अर्थ है की जहां मेहर में देनी वाली राशि तय की गई है जिसे पति द्वारा भुगतान किया जाना है. मेहर को पार्टियों द्वारा शादी से पहले या शादी के दौरान या शादी के बाद भी तय किया जा सकता है.

शीघ्र मेहर और आस्थगित मेहर

शीघ्र मेहर मूल रूप से एक मेहर है जो शादी के बाद अदा की जाती है, जबकि आस्थगित मेहर की अदायगी तलाक या पति की मृत्यु के कारण विवाह समाप्त होने के बाद होती है.

मेहर का कौन सा हिस्सा शीघ्र और आस्थगित है, यह सामान्य तौर पर अनुबंध में ही तय किया जाता है, जिसे मेहरनामा के रूप में जाना जाता है. आमतौर पर, राशि का आधा हिस्सा शीघ्र के रूप में तय किया जाता है और दूसरा आधा आस्थगित मैहर होता है, लेकिन इस संबंध में कोई सख्त नियम नहीं है.

अनिर्दिष्ट मेहर

मुस्लिम कानून हर दुल्हन को मेहर का अधिकार प्रदान करता है, भले ही यह निर्दिष्ट न हो. पति अपनी पत्नी को मेहर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है. यदि मेहर की राशि निर्दिष्ट नहीं है तो भी एक ऐसी राशि का होना जरुरी जो समाज में या प्रत्येक व्यक्ति के मामले में उचित हो.

यह पत्नी के परिवार की सामाजिक स्थिति, उसकी योग्यता, उसके पति की सामाजिक स्थिति, उसकी उम्र, रूप, समझ आदि के संदर्भ में सभी बातों को ध्यान में रखकर निर्धारित की जा सकती है.

मेहर ना मिलने पर उसे कैसे वसूल कर सकते है?

मुस्लिम कानून के तहत, पति का कानूनी दायित्व पत्नी को मेहर देना है. मेहर का भुगतान ना करना, साधारण क़र्ज़ की तरह होता है जिसमें पति एक कर्ज़दार की तरह होता है और पत्नी एक लेनदार की तरह होती है.

पत्नी अपने पति के साथ रहने से इंकार कर सकती है

मुस्लिम कानून में पति को अपनी पत्नी के साथ रहने का अधिकार है और उसकी पत्नी तब तक इससे इनकार नहीं कर सकती जब तक कि कोई वैध कारण न हो लेकिन दूसरी ओर, पत्नी मेहर का भुगतान न होने पर अपने पति के साथ रहने से इनकार कर सकती है. यह पत्नी के लिए पति के साथ रहने से इनकार करने का कानूनी औचित्य है.

सीधा अर्थ है की मुस्लिम पत्नी मेहर की मांग करने के बाद भुगतान न होने पर अपने पति के साथ रहने से इंकार के साथ ही अपने दांपत्य संबंधों को निभाने से भी इंकार कर सकती है.

यदि पत्नी नाबालिग या मानसिक रूप से अस्थिर है तो उसके अभिभावक पति को अपनी पत्नी को अपने साथ रखने से मना कर सकते हैं, जब तक कि शीघ्र मेहर का भुगतान नहीं किया जाता या यदि अवयस्क लड़की अपने पति के साथ रहती है, तो उसके अभिभावक शीघ्र मेहर का भुगतान न करने के आधार पर उसे वापस ले सकते हैं.

पत्नी के पास है कोर्ट जाने का अधिकार

अगर पत्नी ने अपने पति के साथ यौन संबंध बना लिया है तो वह उसके साथ रहने से इंकार नहीं कर सकती है किन्तु वह मेहर की बकाया राशि की वसूली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है. अगर पति की मृत्यु हो जाती है तो पत्नी पति के कानूनी उत्तराधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दायर करके मेहर का दावा कर सकती है.

पत्नी को ग्रहणाधिकार का अधिकार है

मुस्लिम महिलाओं को अपने पति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर धारणाधिकार का अधिकार है जब तक कि उसे मेहर की राशि का भुगतान नहीं किया जाता. यह अधिकार पत्नी द्वारा केवल तभी तक प्रयोग किया जा सकता है जब पति की मृत्यु हो गई हो और पत्नी को उसका मेहर नहीं मिला हो.

इसका मतलब यह है कि वह अपने पति की संपत्ति को तब तक अपने कब्जे में रख सकती है जब तक कि उसे अपने पति के कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा मेहर की राशि का भुगतान नहीं किया जाता है.

हालांकि यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि प्रतिधारण का अधिकार पत्नी को संपत्ति में कोई अधिकार नहीं देता और पत्नी को विवाह के दौरान संपत्ति को ग्रहणाधिकार करने का भी कोई अधिकार नहीं है मुस्लिम लॉ के तहत.