मध्यस्थता और बीच बचाव क्या है? जानिए मामलों को सुलझाने में इनकी प्रासंगिकता
नई दिल्ली: हमारे देश की विशाल जनसंख्या के मद्देनजर इतनी भारी संख्या में मामलों को निपटाना भारतीय न्यायिक प्रणाली के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में सदन में बताया था कि देश की विभिन्न अदालतों में तक़रीबन 4.7 करोड़ मामले लंबित हैं.
कई कारणों से न्यायपालिका पेंडिंग मामलों को निपटाने में असक्षम है. न्यायपालिका पर बोझ को कम करने के लिए मध्यस्थता और बीच बचाव दो वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र शुरू किया गया था. ये एक जैसे लगते हैं, लेकिन इनमें बहुत अंतर है. आइए इसे समझते हैं.
वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र प्रणाली
वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution- ADR) तंत्र प्रणाली को संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) को ध्यान में रखते हुए अस्तित्व में लाया गया है. इस प्रणाली (ADR) का उद्देश्य मुख्य रूप से अदालत के बाहर विवादों का निपटारा करना है .
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लेकिन इसके और कई उद्देश्य हैं -
कम प्रक्रिया के साथ अफोर्डेबल और त्वरित परीक्षण करना.
बातचीत या समझौते या उचित प्रस्तावों के मदद से विवादों को हल कराना.
पक्षों को एक-दूसरे के बातों को साफ-साफ ढंग से समझने में सक्षम बनाता है.
भविष्य के विवादों से बचने हेतु दिशा निर्देश बनाता है.
मध्यस्थता क्या है
“मध्यस्थता” (Mediation) का अर्थ है किसी विवाद या प्रश्न का समाधान, किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाना जिस पर पक्ष एक न्यायसंगत निर्णय प्राप्त करने के लिए अपने दावों को संदर्भित करने के लिए सहमत हों.
फिलॉसफर हर्बर्ट रीड ने मध्यस्थता के विषय में कहा था “मैं किसी ऐसे समाज की कल्पना नहीं कर सकता जो मध्यस्थता के किसी तरीके को शामिल नहीं करता है.”
मध्यस्थता एक वैकल्पिक विवाद समाधान प्रक्रिया है जिसमें पक्षकार किसी तीसरे व्यक्ति के मदद के माध्यम से न्यायालय का सहारा लिए बिना अपने विवादों का निपटारा करवाते हैं. यह ऐसी विधि है जिसमें विवाद किसी नामित व्यक्ति के सामने रखा जाता है जो दोनों पक्षों को सुनने के बाद अर्ध-न्यायिक तरीके से मामले का निर्णय करता है.
बीच बचाव क्या है
बीच बचाव (Arbitration) एक स्वैच्छिक, बाध्यकारी प्रक्रिया है जिसमें एक निष्पक्ष और तटस्थ (neutral) बिचवई (mediator) विवादित पक्षों को समझौते करने में मदद करता है. एक बिचवई समाधान थोपता नहीं है बल्कि एक ऐसा वातावरण बनाता है जिसमें दोनों विवादित पक्ष अपने सभी विवादों को हल कर सकें.
बीच बचाव पारंपरिक रूप से पारिवारिक विवादों जैसे पति और पत्नी या भाइयों के बीच उत्पन्न होने वाले को विवादों को हल करने के लिए किया जाता था.
मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996
मध्यस्थता और सुलह अधिनियम में मध्यस्थता को नियंत्रित करने वाला कानून पाया जाता है. इस अधिनियम को 25 जनवरी,1996 को संविधान में लागू किया गया था. भारत में मध्यस्थता को, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों तरह से, सरल बनाने के लिए अस्तित्व में लाया गया.
मध्यस्थता दो श्रेणियों में वर्गीकृत है: घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता
अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता को मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 2(1)(f) में परिभाषित किया गया है. अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में विवाद की प्रकृति, पक्षों की राष्ट्रीयता और मध्यस्थता के लिए चुने गए स्थान के पहले . भारतीय कानून ने अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता को समझाने के लिए विषय वस्तु के रूप में राष्ट्रीयता को अपनाया है. इस अधिनियम में “घरेलू मध्यस्थता” का अर्थ है कि दोनों पक्ष भारत से हैं.
मध्यस्थता विधेयक (बिल), 2021
मध्यस्थता बिल को 20 दिसंबर 2021 को राज्यसभा में पेश किया गया था और राज्य सभा के माननीय सभापति ने उक्त विधेयक को 21 दिसंबर, 2021 को कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय समिति पर संसदीय स्थायी विभाग की परीक्षा और रिपोर्ट के लिए संदर्भित किया.
यह भारत में बातचीत के माध्यम से अदालत के बाहर ही विवादों को हल करने के लिए एक विशिष्ट कानून के निर्माण के लिए उठाया गया एक कदम है. यह विधेयक भारत में बीचवई परिषद की स्थापना करता है.
इस विधेयक की विशेषताएं-
यह विधेयक मुकदमे के लिए जाने से पहले पक्षों को बातचीत का विकल्प चुनने के लिए बाध्य करता है.
यह उन पक्षों के हितों को सुरक्षित करता है जो तत्काल राहत के लिए अदालतों से संपर्क करते हैं.
यह प्रक्रिया विवादों की गोपनीयता प्रदान करता है और मामलों में प्रकटीकरण को रोकता है.
बीच बचाव और मध्यस्थता में क्या अंतर है
बीच बचाव और मध्यस्थता एक जैसे प्रतीत होते है किन्तु एक दूसरे से काफी भिन्न है.
बीच बचाव बातचीत द्वारा विवाद समाधान का एक तरीका है जिसमें दोनों पक्ष चर्चा के माध्यम से एक समझौते पर पहुंचती हैं और अपने संघर्ष को सुलझाती हैं. मध्यस्थता भी विवाद समाधान का एक तरीका है जिसमें एक स्वतंत्र तृतीय पक्ष, पक्षों को उनके विवादों को सुलझाने में सहयोग करता है.
बीच बचाव में तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं होता पर मध्यस्थता में तीसरे पक्ष की आवश्यकता होती है.
बीच बचाव में संघर्ष के पक्ष में साझा करने वाले अपने प्रतिनिधित्व और अधिकारों पर चर्चा करने के लिए मिलते हैं. मध्यस्थता में एक नियत मुद्दे के बारे में बात करने के लिए संयुक्त रूप से और अलग-अलग दोनों हर जगह मिलते हैं.
बीच बचाव में पार्टियां खुद एक सहमति पर पहुंचती हैं पर मध्यस्थता समझौते से संबंधित हर मुद्दे को हल करने के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तावित करता है.