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Judicial review क्या है? सुप्रीम कोर्ट कैसे इसके तहत संविधान का संरक्षण करता है

न्यायिक समीक्षा को संविधान की मूल संरचना (इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण केस 1975) माना जाता है. न्यायिक समीक्षा को भारतीय न्यायपालिका के व्याख्याकार (Interpreter) और पर्यवेक्षक (Supervisor) की भूमिका में देखा जाता है.

Written By My Lord Team | Published : February 23, 2023 10:40 AM IST

नई दिल्ली: कोई भी कानून जनता की भलाई को देख कर ही बनाई जाती है. हमारे देश में संविधान ने कानून बनाने की जिम्मेदारी संसद को दी है, लेकिन अगर कोई कानून जनता के लिए सही नहीं है अथवा संविधान में बताए गए नियमों के खिलाफ है, तो उसे खत्म भी किया जा सकता है या फिर कोर्ट ने अगर कोई फैसला सुनाया है और उनमें बदलाव करना चाहती है तो वो भी किया जा सकता है सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायिक समीक्षा प्रक्रिया के तहत. आईए जानते हैं यह कैसे संभव होता है.

भारतीय संविधान में न्यायिक समीक्षा (judicial review) के बारे में बताया गया है. संविधान (Constitution) के अनुच्छेद (Article) 137 के तहत एक खास शक्ति सुप्रीम कोर्ट को दी गई है.

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अनुच्छेद 137

संविधान के इस अनुच्छेद के तहत संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के या अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनर्विलोकन करने की शक्ति होगी.

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जब सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया को करती है तो उसे न्यायिक समीक्षा कहते हैं. न्यायिक समीक्षा विधायी अधिनियमों और कार्यपालिका के आदेशों की संवैधानिकता की जांच करने के लिए न्यायपालिका की शक्ति है जो केंद्र और राज्य सरकारों पर लागू होती है.

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न्यायिक समीक्षा को संविधान की मूल संरचना (इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण केस 1975) माना जाता है. न्यायिक समीक्षा को भारतीय न्यायपालिका के व्याख्याकार (Interpreter) और पर्यवेक्षक (Supervisor) की भूमिका में देखा जाता है.

स्वतः संज्ञान के मामले और लोक हित याचिका (PIL), लोकस स्टैंडी (Locus Standi) के सिद्धांत पर रोक लगाने के साथ - साथ न्यायपालिका को कई सार्वजनिक मुद्दों में हस्तक्षेप करने की शक्ति दी गई है, उस स्थिति में भी जब पीड़ित पक्ष द्वारा कोई शिकायत नहीं की गई हो.

न्यायिक समीक्षा के प्रकार

विधायी कार्यों की समीक्षा: इसके तहत सुनिश्चित किया जाता है कि विधायिका द्वारा पारित कानून के मामले में संविधान के प्रावधानों का अनुपालन किया गया है.

प्रशासनिक कार्रवाई की समीक्षा: यह प्रशासनिक एजेंसियों पर उनकी शक्तियों का प्रयोग करते समय संवैधानिक अनुशासन लागू करने के लिये एक उपकरण है.

न्यायिक निर्णयों की समीक्षा: इस समीक्षा तब किया जाता है जब न्यायपालिका द्वारा दिए गए पिछले निर्णयों में किसी भी प्रकार का बदलाव करने या उसे सही करना होता है.

न्यायिक समीक्षा का महत्व

.यह संविधान की सर्वोच्चता (Supremacy) बनाए रखने के लिये आवश्यक है.

.विधायिका और कार्यपालिका द्वारा सत्ता का दुरुपयोग करने से बचाने लिए यह जरुरी है.

.यह लोगों के अधिकारों की रक्षा करता है.

.यह संघीय संतुलन बनाए रखता है.

.यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिये आवश्यक है.

.यह अधिकारियों को अत्याचार करने से रोकता है.

कानून की अवधारणा

विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया: विधायिका या संबंधित निकाय द्वारा अधिनियमित कानून तभी मान्य होता है जब वह सही प्रक्रिया का पालन करते हुए बनाया गया हो.

कानून की उचित प्रक्रिया: यह सिद्धांत न केवल इस आधार पर मामले की जांच करता है कि कोई भी कानून किसी व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से छीने नहीं बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कानून उचित हो और न्यायपूर्ण हो.

भारत में विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है.

न्यायिक समीक्षा के महत्त्वपूर्ण कार्य

  • सरकारी कार्रवाई को वैध बनाना
  • सरकार द्वारा किये गए किसी भी अनुचित काम के खिलाफ संविधान का संरक्षण करना.