Impeachment क्या है? भारत में अब तक कितने न्यायाधीशों के खिलाफ हुई है ये प्रक्रिया
अनन्या श्रीवास्तव
भारत एक लोकतंत्र है जो मूल रूप से चार स्तंभों पर टिका हुआ है, और इसका तीसरा स्तम्भ है न्यायपालिका (Judiciary) जिसकी जिम्मेदारी है की देश के हर नागरिक को न्याय मिले। लोगों के साथ गलत होने पर वे न्यायाधीश की शरण में जातें हैं लेकिन अगर एक न्यायाधीश गलत करता है तो उसकी सजा क्या है?
एक न्यायाधीश के गलत करने पर उसकी विरुद्ध भी एक प्रावधान है, यानी उसको पदच्युत करने 'इम्पीचमेंट' की एक प्रक्रिया है. आइए जानते हैं कि भारत में अब तक कितने न्यायाधीशों के खिलाफ यह प्रक्रिया हुई है.
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इम्पीचमेंट क्या है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 61 (Article 61 of The Indian Constitution) में देश के राष्ट्रपति को उनकी कुर्सी से हटाने यानी उनके इम्पीचमेंट की प्रतिक्रिया बताई गई है। अनुच्छेद 61 के तहत यह बताया गया है कि राष्ट्रपति को इम्पीच करने के लिए राज्य सभा (Rajya Sabha) या लोक सभा (Lok Sabha) में से कोई एक रेसोल्यूशन पास करता है।
यह रेसोल्यूशन एक लिखित नोटिस के चौदह दिन बाद, उस सदन के दो-तिहाई सदस्यों की मंजूरी द्वारा पारित किया जाना चाहिए।
दूसरा सदन फिर जांच करता है कि राष्ट्रपति के खिलाफ लगाए गए इल्जाम सही हैं या नहीं जिसके बाद उस सदन के दो-तिहाई सदस्य इस रेसोल्यूशन को पास करते हैं और इस तरह राष्ट्रपति पर महाभियोग (Impeachment) चलाया जाता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक न्यायाधीश, वह सुप्रीम कोर्ट जज हो या फिर हाईकोर्ट का जज, को हटाने के लिए भी इसी तरह की प्रक्रिया प्रयोग में आती है।
कब और कैसे किया जाता है न्यायाधीश को इम्पीच?
एक न्यायाधीश को हटाने के लिए संविधान में प्रावधान दिए गए हैं। संविधान के अनुच्छेद 124 (Article 124 of Indian Constitution) और Judges (Inquiry) Act, 1968 के तहत सुप्रीम कोर्ट जज को हटाने की प्रक्रिया बताई गई है. अनुच्छेद 218 (Article 218) में एक हाईकोर्ट के जज को रिमूव करने की प्रक्रिया दी गई है।
जज को उनके ऑफिस से 'सिद्ध दुर्व्यवहार और अक्षमता' (Proven Misbehaviour and incapacity) के आधार पर हटाया जा सकता है।
एक न्यायाधीश को हटाने के लिए कम से कम लोकसभा के 100 सदस्यों को, लोक सभा के अध्यक्ष (Speaker) को साइन किया हुआ नोटिस देना होता है या फिर कम से कम 50 राज्य सभा सदस्य सभापति को एक नोटिस देते हैं। अगर अध्यक्ष/सभापति उनके रेसोल्यूशन को एक्सेप्ट कर लेते हैं, तो वो एक तीन सदस्यों की समिति का गठन करते हैं।
इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश, किसी एक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक विशिष्ट विधिवेत्ता (Jurist) होते हैं जो चार्ज तैयार करते हैं और उसके आधार पर जांच होती है; उस न्यायाधीश को अपना पक्ष रखने का भी मौका मिलता है जिसके खिलाफ यह प्रक्रिया की जा रही होती है। जांच के बाद समिति अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष/सभापति को भेज देती है जिसके बाद सदन में इसपर चर्चा की जाती है।
प्रस्ताव को अगर रेसोल्यूशन पास करने वाले सदन से बहुमत मिलती है और वहां प्रस्तुत दूसरे सदन की दो-तिहाई सदस्यता से मंजूरी मिलती है, तो इसे दूसरे सदन में भेजा जाता है। दोनों सदन में यदि प्रस्ताव अडॉप्ट कर लिया जाता है तो फिर इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है जो लिखित में यह आदेश जारी कर देते हैं कि उस न्यायाधीश को हटाया जा रहा है।
अब तक कितने न्यायाधीशों के खिलाफ हुई है ये प्रक्रिया?
भारत में अब तक किसी भी न्यायाधीश को इम्पीचमेंट के जरिए नहीं हटाया गया है लेकिन कुछ ऐसे नाम हैं जिनके खिलाफ यह प्रक्रिया हुई है।
न्यायाधीश वी रामास्वामी (Justice V Ramaswami) वो पहले भारतीय जज हैं, जिनके खिलाफ इम्पीचमेंट की प्रक्रिया हुई थी। जस्टिस रामास्वामी के खिलाफ 1993 में लोक सभा में रेसोल्यूशन पास किया गया था, लेकिन समिति के गठन और जांच के बाद प्रस्ताव को बहुमत से पारित नहीं किया जा सका।
कलकत्ता हाईकोर्ट के जज रह चुके, न्यायाधीश सौमित्र सेन (Justice Soumitra Sen) के खिलाफ भी 2009 में 58 राज्य सभा मेम्बर्स ने इम्पीचमेंट हेतु प्रस्ताव जारी किया था। जस्टिस सेन के खिलाफ समिति का गठन हुआ और जांच के बाद जब प्रस्ताव राज्य सभा में पहुंचा, उसे बहुमत से पास किया गया। लोक सभा में इस प्रस्ताव पर वोटिंग होती, उससे पहले ही जस्टिस सौमित्र सेन ने इस्तीफा दे दिया।
सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस पी डी दिनाकरण (Justice PD Dinakaran) के खिलाफ भी भ्रष्टाचार का कारण देकर, राज्य सभा में इम्पीचमेंट की प्रक्रिया शुरू की गई थी। जस्टिस दिनाकरण ने 2011 में खुद ही रिजाइन कर दिया था और यह कहा कि उनको हटाने की प्रक्रिया के लिए बनी समिति पर उन्हें विश्वास नहीं है।
वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश, जस्टिस पारदीवाला (Justice Pardiwala) के खिलाफ भी इम्पीचमेंट प्रोसेस किया गया था, जब वो गुजरात हाईकोर्ट में न्यायाधीश के रूप में काम कर रहे थे। यह रेसोल्यूशन राज्य सभा द्वारा फाइल किया गया था। जस्टिस पारदीवाला के एक judgement में उनकी जिन टिप्पणियों की वजह से यह प्रक्रिया शुरू हुई थी, उन्होंने जजमेंट से उन्हें हटा दिया था और प्रक्रिया वहीं रोक दी गई थी।
जस्टिस एस के गंगेले (Justice SK Gangele) के खिलाफ यौन दुराचार (Sexual Misconduct) के आरोपों के तहत इम्पीचमेंट प्रक्रिया शुरू की गई थी। राज्य सभा ने प्रक्रिया के तहत जांच के लिए जिस समिति का गठन किया था, उसने जस्टिस गंगेले को क्लीन चिट दी थी।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस सी वी नागार्जुन रेड्डी (Justice CV Nagarjuna Reddy) को हटाने के लिए 2016 और 2017 में, दो अटेम्पट्स किये गए थे। दोनों बार इस प्रस्ताव को समिति के गठन से पहले ही बहुमत नहीं मिला और यह आगे नहीं बढ़ सका।
बता दें कि राज्य सभा के सदस्यों ने 2018 में, तब के मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस दीपक मिश्रा (Justice Dipak Misra) को हटाने के लिए भी प्रस्ताव साइन किया था। ऐसा पहली बार हो रहा था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ इंपीचमेंट की कोशिश की जा रही थी।
जस्टिस दीपक मिश्र के खिलाफ इस प्रस्ताव को राज्य सभा के सभापति वेंकैयाह नायडू द्वारा खारिज कर दिया गया था।