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Extradition क्या है? CrPC के अंतर्गत किस तरह के व्यक्ति आरोपित किये जाते हैं

कहा जाता है कि कानून के हाथ इतने लंबे होते हैं कि अपराधी चाहे जहां भी छुपा वो गिरफ्त में आ ही जाता है. इसलिए तो अक्सर जो अपराधी देश को धोखा देकर या अपराध करके भाग जाते हैं पुलिस उन्हे पकड़ ही लेती है.

Written By My Lord Team | Published : March 7, 2023 12:22 PM IST

नई दिल्ली: अगर कोई व्यक्ति अपने देश में किसी अपराध को अंजाम दे कर दूसरा देश भाग जाता है तो उसे अपने देश में वापस लाकर क्या सजा देना मुमकिन है. जिसका जवाब है हां, किसी भी बड़े अपराध को अंजाम देने के बाद अपराधी देश छोड़ देता है ताकि वह सजा से बच जाए लेकिन ऐसा नहीं है. ऐसे लोगों को हमारे देश में भगोड़ा घोषित कर दिया जता है साथ ही आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure -CrPC) के तहत ऐसे अपराधियों को देश में लाकर न्याय कैसे किया जाता है उसके बारे में बताया गया है. आपराधिक प्रक्रिया संहिता में इसे "प्रत्यर्पण" के रूप में वर्णित किया गया है.

क्या है प्रत्यर्पण

यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत एक देश के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) द्वारा उस व्यक्ति को एक अन्य देश के अधिकार क्षेत्र की कानून प्रवर्तन (Enforcement) एजेंसी की हिरासत में भेजने का काम किया जाता है. प्रत्यर्पण उस व्यक्ति का किया जाता है जिस पर किसी अन्य क्षेत्र में अपराध करने का आरोप लगाया गया है या उस अन्य अधिकार क्षेत्र में किसी अपराध का दोषी ठहराया गया है या उस अन्य क्षेत्र में किसी अपराध का दोषी ठहराया गया है.

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प्रत्यर्पण की प्रक्रिया

प्रत्यर्पण के लिए प्रारंभिक प्रक्रिया में शामिल हैं:

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1. विदेशों में वांछित (Desired) भगोड़े अपराधियों के संबंध में सूचना या मांग प्राप्त होने पर प्रत्यर्पण प्रक्रिया को गति प्रदान की जाती है. सूचना का स्रोत सीधे संबंधित देश के राजनयिक (Diplomatic) चैनल, आईसीपीओ/इंटरपोल के सामान्य सचिवालय (The Secretariat) से रेड नोटिस या संचार (Communication) के अन्य व्यवस्थित तरीकों के रूप में हो सकता है.

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2. मांग/सूचना प्राप्त होने के बाद, एक मजिस्ट्रेट को उस विशेष मामले में जांच को आगे बढ़ाने के लिए कहा जाता है.

3. विस्तृत जांच के बाद मजिस्ट्रेट भगोड़े के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करेगा.

4.एक संप्रभु (सोवरेन) राष्ट्र द्वारा दूसरे संप्रभु राष्ट्र से औपचारिक (फॉर्मल) अनुरोध वारंट के आधार पर किया जाता है.

5.अगर आरोपी व्यक्ति उस देश में दोषी पाया जाता है जहां उसके लिए अनुरोध किया गया है, तो आरोपी को गिरफ्तार किया जा सकता है.

6.आरोपी को गिरफ्तार करने वाला देश उसे प्रत्यर्पण प्रक्रिया के अधीन कर सकता है जहां उसे अनुरोध करने वाले देश में निर्वासित (Deport) किया जा सकता है.

7. यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि आरोपी उस देश के कानूनों के अधीन है जिसमें वह पाया जाता है.

प्रत्यर्पण कानून

भारत में, एक भगोड़े (आरोपी या दोषी) का प्रत्यर्पण, प्रत्यर्पण अधिनियम, के अंतर्गत होता है. भगोड़ों का प्रत्यर्पण भारत द्वारा अन्य देशों के साथ की गई संधियों/सम्मेलनों (कन्वेंशन)/व्यवस्थाओं पर निर्भर करता है. इस प्रकार, प्रत्यर्पण अधिनियम को अन्य देशों के साथ भारत की संधि/सम्मेलन/व्यवस्था के साथ पढ़ा जाना चाहिए.

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत से किसी व्यक्ति के प्रत्यर्पण के लिए संधि होना आवश्यक नहीं है. यदि भारत द्वारा किसी विदेशी राज्य के साथ कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं की गई है, तो केंद्र सरकार किसी भी सम्मेलन को प्रत्यर्पण संधि के रूप में केवल उस सीमा तक मान सकती है, जिसमें भारत और विदेशी देश एक पक्ष हैं.

सीआरपीसी के तहत

1.धारा 41

आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 41(1) में बताया गया है कि पुलिस बिना वारंट के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है. धारा 41 की उप-धारा (g) में प्रावधान है कि अगर किसी पुलिस के पास भारत के बाहर किसी जगह पर किए गए किसी व्यक्ति के कार्य के खिलाफ उचित शिकायत या विश्वसनीय जानकारी है और अगर ऐसा काम भारत में किया गया होता तो वह अपराध के लिए सजा का पात्र होता, तो पुलिस को भारत में वारंट के बिना ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने या हिरासत में लेने का पूरा अधिकार है.

2.धारा 166 A

इस धारा के अनुसार यदि किसी अपराध के लिए जांच के दौरान, एक जांच अधिकारी द्वारा एक आवेदन किया जाता है. जिसमें यह बताया गया है कि साक्ष्य भारत के बाहर किसी देश या स्थान में हो सकता है, तो कोई भी आपराधिक न्यायालय उस विशेष देश के किसी न्यायालय या किसी प्राधिकारी को अनुरोध पत्र जारी कर सकता है. जो अनुरोध से निपटने के लिए सक्षम है.

अनुरोध में उस व्यक्ति की जांच करना शामिल हो सकता है जो मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित हो सकता है या फिर किसी भी दस्तावेज को पुनः प्राप्त कर सकता है जो मामले से संबंधित व्यक्ति के कब्जे में हो सकता है.

हर दस्तावेज या बयान को जांच के दौरान प्राप्त साक्ष्य के रूप में माना जाएगा. अनुरोध पत्र जारी करने वाली अदालत को इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट नियमों का पालन करना चाहिए. किसी अन्य देश में जांच करने का अनुरोध करने वाले देश को दोनों देशों की प्रत्यर्पण संधि से बाध्य होना होगा. यदि किसी देश के पास इस आशय की कोई संधि नहीं है, तो अनुरोध को अस्वीकार कर दिया जाएगा.

3.धारा 166 B

सीआरपीसी की इस धारा में यह बताया गया है कि अगर भारत में जांच के उद्देश्य से भारत को किसी विदेशी देश से अनुरोध पत्र भेजा गया है. जिसमें किसी व्यक्ति के परीक्षण या कोई दस्तावेज प्रस्तुत करना शामिल है, तो केंद्र सरकार इसे मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या ऐसे मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिन्हें इसके लिए नियुक्त किया जाता है, जो अपने विवेक का प्रयोग कर सकते है और या तो व्यक्ति को अपने सामने पेश होने के लिए कह सकते है और उसके बयान दर्ज कर सकते है या दस्तावेज़ को आगे लाने के लिए या जांच के लिए किसी भी पुलिस अधिकारी को पत्र भेज सकती है, जो अपराध की जांच उसी तरह से करेगा, जैसे कि भारत के भीतर अपराध किया गया था. जांच पूरी होने के बाद, इस तरह की जांच के दौरान एकत्र किए गए सभी सबूतों को मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी द्वारा केंद्र सरकार को अदालत या अनुरोध पत्र जारी करने वाले प्राधिकारी को इस तरह की जानकारी देने के लिए भेजा जाएगा.

यहां केंद्र सरकार उस प्रत्यर्पण संधि के आधार पर अनुरोध को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है जो भारत ने उस विशेष देश के साथ जांच के लिए अनुरोध के लिए की है.

4.धारा 188

सीआरपीसी की धारा 188 के तहत जब भारत के बाहर किसी व्यक्ति (नागरिक हो या न हो) द्वारा अपराध किया जाता है, चाहे वह ऊंचे समुद्रों पर या कहीं और, या भारत में पंजीकृत (रजिस्टर्ड) किसी जहाज या विमान पर हो, तो उसके खिलाफ वैसे ही कार्रवाई की जाएगी जैसे उसने भारत के भीतर किए गए अपराध के लिए किया जाता है. किसी अपराध की जांच या मुकदमे के लिए केंद्र सरकार से मंजूरी की आवश्यकता होती है. एक व्यक्ति जो भारत के बाहर अपराध करता है लेकिन बाद में भारत में पाया जाता है, वह संहिता की धारा 188 के दायरे में नहीं आता है.

केंद्र सरकार एक अपराधी को प्रत्यर्पित करने से इंकार भी कर सकती है यदि उस पर पहले से ही किसी विदेशी देश में वांछित अपराध के लिए भारतीय अदालत में मुकदमा चलाया जा चुका है. सरकार किसी विशेष अपराध के लिए पहले से ही किसी विदेशी देश में मुकदमा चलाने वाले अपराधी पर मुकदमा चलाने से इंकार कर सकती है.