'डेथ वारंट' और 'ब्लैक वारंट' क्या है, कौन पारित करता है यह आदेश
नई दिल्ली :देश की आजादी के बाद अब तक कानूनी रूप से 61 कैदियों को फांसी की सजा के बाद फंदे पर लटकाया जा चुका है. आजादी के बाद भारत में फांसी पाने वाला 61 वां दोषी निर्भया मामले से संबन्धित था. इससे पूर्व 1993 के बम धमाके में दोषी याकूब मेमन को 2015 में फांसी दी गई थी.
किसी भी अपराधी के लिए जब कोर्ट की तरफ से सजा-ए-मौत की सजा की पुष्टि की जाती है, तो उसकी फांसी से पहले कोर्ट डेथ वारंट जारी करता है. यह किसी दोषी फांसी दी जाने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का पहला चरण है.
15 दिन में फांसी
इसे सामान्य भाषा में कहे तो डेथ वारंट एक आदेश है जो कोर्ट उस कैदी के लिए जेल प्रशासन को जारी करता है जिसे फांसी पर लटकाया जाना है. फांसी की सजा का पालन के लिए crpc की धारा 413 और धारा 414 के तहत जारी किया जाने वाला “डेथ वारंट” या “ब्लैक वारंट” एक आदेश के साथ एक प्रकार का फॉर्म भी होता है. सीआरपीसी के तहत इसे फॉर्म संख्या 42 के तौर पर जाना जाता है.
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एक बार किसी भी अदालत द्वारा डेथ वारंट जारी करने के बाद हर हाल में उस अपराधी को 15 दिन के भीतर फांसी दी जानी होती है. इस आदेश की अवधि 15 दिन की होती है. यह आदेश जारी होने के साथ फांसी का समय और दिन मुकर्रर हो जाता है. डेथ वारंट के 15 दिन के भीतर सजायाफ्ता को फांसी पर लटका दिया जाता है
नोटिस का एक प्रकार
कोर्ट द्वारा जारी किये गए डेथ वारंट में दोषी के नाम के साथ ही मौत की सजा की पुष्टि भी होती है. यह आदेश ना केवल दोषी के लिए फांसी की सजा का ऐलान करता है बल्कि फांसी दी जाने के बाद की संपूर्ण प्रक्रिया का दस्तावेज बनता है.
डेथ वारंट वास्तव में अदालत द्वारा जारी किए गए नोटिस का एक प्रकार है, जो एक दोषी, जिसे मौत की सजा दी गई है, उसकी फांसी का समय और सजा के स्थान की घोषणा करता है. यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अदालत के द्वारा जारी किया गया एक डेथ वारंट, जेल प्रशासन को संबोधित करता है. दोषी पाए गए कैदी को फांसी दिए जाने के बाद, कैदी की मौत से जुड़े सर्टिफिकेट वापस कोर्ट में भेजे जाते हैं. इन डॉक्यूमेंट्स के साथ कैदी का डेथ वारंट भी वापस कर दिया जाता है.
इस वारंट में दोषी को फांसी देने के समय और स्थान का भी जिक्र होता है, साथ ही ब्लैक वारंट में उस जज के हस्ताक्षर भी होते हैं, जिसने दोषी को मौत की सजा सुनाई होती है.
ब्लैक या डेथ वारंट
ब्लैक-वारंट और डेथ वारंट एक ही दस्तावेज के दो अलग-अलग नाम हैं. दोनो का काम और अहमियत एक ही है. ब्लैक वारंट कुछ अलग या विशेष किस्म का कोई मौत का फरमान या फिर कानूनी दस्तावेज कतई नहीं है फिर भी ब्लैक वारंट कहना अनुचित भी नहीं है, क्योंकि ब्लैक वारंट (डेथ वारंट) किसी जीते जागते इंसान (मौत की सजा पाए मुजरिम) को फांसी पर लटकाए जाने का अंतिम फरमान होता है. यानि की एक इंसान की जिंदगी लेने का वो फरमान जिसके जारी होने के बाद मुजरिम का फांसी के फंदे पर लटकाए जाने का हर रास्ता साफ हो चुका होता है. इसलिए भी आम-बोल चाल की भाषा में इसे “ब्लैक वारंट” कहते हैं.
डेथ या ब्लैक वारंट
डेथ वारंट एक विशेष किस्म के कागज पर ही लिखा जाता है. उस कागज पर जिसके हासिये (कागज के चारों कोने और साइड में छूटी हुई जगह) का रंग जरूर काला होता है. डेथ वारंट को हमेशा सजा सुनाने वाले जज (ट्रायल कोर्ट जहां से मुजरिम करार देकर सजा ए मौत पहली बार मुकर्रर होती है) ही खुद लिखते हैं. कई साल पहले तक जज अपने कलम (हैंड राइटिंग) से डेथ वारंट लिखते थे लेकिन आधुनिक तकनीक और तेज गति से बढ़ते वक्त के साथ अदालतों की रोजमर्रा की कार्यवाही का तौर-तरीका भी बदला है. लिहाजा अब पहले से तयशुदा एक मैटर कागज पर (डेथ या ब्लैक वारंट पर) टाइप कर दिया जाता है. उसके नीचे सजा सुनाने वाले जज अपने हस्ताक्षर कर देते हैं. साथ ही संबंधित जज की मुहर मय तारीख डेथ वारंट के एक तरफ लगा दी जाती है.
कैसे जारी होता डेथ वारंट
सबसे पहले ट्रायल कोर्ट (सेशन कोर्ट) दोष साबित होने पर मुलजिम को मुजरिम करार देता है. फिर मुजरिम को सजा सुनाई जाती है. सजा अगर फांसी की है तो फिर ये मामला हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, राज्यपाल, राष्ट्रपति तक भी पहुंचाया जाता है, क्योंकि मौत की सजा पाए मुजरिम की हर कोशिश होती है कि उसकी सजा-ए-मौत कहीं से भी किसी भी बहाने से उम्रकैद में तब्दील हो सके.
लेकिन सभी जगह से जब एक कैदी की फांसी की सजा को बहाल रखा जाता है और अंतिम रूप से राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने पर, तो उस जेल का जेल सुपरिटेंडेंट राष्ट्रपति के यहां से खारिज हुई दया याचिका से संबंधित लिखित सूचना लेकर ट्रायल कोर्ट यानि जिस कोर्ट ने मुलजिम को मुजरिम करार देकर सबसे पहले सजा-ए-मौत मुकर्रर की होती है वहां पहुंचता है. जेल का जेलर लिखित में ट्रायल कोर्ट से गुजारिश करता है कि आपकी अदालत से सजायाफ्ता फलां मुजरिम की दया याचिका राष्ट्रपति के यहां से खारिज हो चुकी है. जिसके बाद फांसी के लिए संबंधित अदालत मुजरिम का “डेथ-वारंट” जारी करता है.
Crpc की धारा 413
Crpc की धारा 413 के अनुसार किसी अपराधी को जिला अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा हाईकोर्ट द्वारा पुष्टि किए जाने के बाद हाईकोर्ट के आदेश की क्रियान्वित के लिए एक आदेश जारी करता है जो डेथ वारंट होता है. जिला न्यायालय के मौत के फैसले को हाईकोर्ट Crpc की धारा 368 के तहत पुष्टि करते हुए आदेश जारी करता है.
Crpc की धारा 414
Crpc की धारा 414 के अनुसार जब जिला न्यायालय द्वारा सुनाई गई फांसी की सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर की गई अपील या पुनरीक्षण याचिका का निस्तारण करते हुए हाईकोर्ट अपराधी को मौत की सजा सुनाता है. तब हाईकोर्ट द्वारा मौत की सजा का दिया गया आदेश प्राप्त होने पर उसकी क्रियान्विति के लिए इस धारा के तहत डेथ वारंट या आदेश जारी करता है.
डेथ वारंट एवं उसकी प्रक्रिया 'डेथ वारंट' या 'मृत्यु वारंट' या 'ब्लैक वारंट', जेल के कार्यालय प्रभारी/अधीक्षक को संबोधित किया जाने वाला वारंट होता है. यह वारंट, उस अपराधी की पहचान दर्शाता है जिसे अदालत द्वारा मौत की सजा दी गई है, इसके साथ ही यह वारंट ऐसे व्यक्ति के विषय में कुछ जानकारियों का उल्लेख करता है.
“डेथ वारंट” की अंतिम पड़ताल
जेल के सुपरिटेंडेंट से मिले उस आवेदन पर संबंधित कोर्ट अपने स्तर से पता करवाती है कि, क्या वाकई सभी जगह से मुजरिम की दया याचिका खारिज हो चुकी है? साथ ही सभी दया याचिकाएं खारिज होने संबंधी आदेशों को ट्रायल कोर्ट जज (मौत की सजा सुनाने वाला जज) फाइल पर “ON RECORD” लाता है. उसके बाद वो मुजरिम का “डेथ वारंट” (ब्लैक वारंट) जारी करता है. ये डेथ वारंट सीलबंद लिफाफे में होता है. मौत के इस फरमान को विशेष संदेश-वाहक बेहद गोपनीय तरीके से संबंधित जेल तक ले जाता है, ताकि किसी को डेथ वारंट जारी होने की भनक तक ना लगे. इन सब में एक और खास बात पर ध्यान देना जरूरी है कि जरूरी नहीं कि उस जेल में फांसी लगाने का इंतजाम यानी फांसी घर मौजूद ही हो, जहां मुजरिम को कैद करके रखा गया है. ऐसे में तमाम दया याचिकाओं के खारिज होने की सूचना तो उसी जेल का सुपरिटेंडेंट ट्रायल कोर्ट को देता है, जहां कैदी कैद है, लेकिन जब सजा सुनाने वाला जज मुजरिम का डेथ-वारंट जारी करेगा तो, वो डेथ वारंट उस जेल के सुपरिटेंडेंट के नाम जारी होगा, जिस जेल में फांसी-घर का इंतजाम होगा. यानि जहां जिस जेल में मुजरिम को फांसी के फंदे पर लटकाया जाना है.
फॉर्म के अंतर्गत क्या-क्या लिखा जाता है
- अपराधियों को जेल में रखने के दौरान एक नंबर दिया जाता है, फॉर्म में सबसे पहले उस नंबर को अंकित किया जाता है.
- इसके बाद जिन व्यक्तियों को फांसी चढ़ाई जानी है उन व्यक्तियों की संख्या तथा उन व्यक्तियों के नाम फॉर्म पर लिखे जाते हैं.
- इसके बाद फार्म पर वह नंबर लिखा जाता है, जिस नंबर से उन कैदियों का केस दर्ज कराया गया हो.
- उसके बाद उस फॉर्म में एक और कॉलम होता है, जिसमें डेथ वारंट जारी करने की तारीख अंकित की जाती है.
- कैदियों को फांसी दिए जाने की तिथि, समय और स्थान का विवरण फॉर्म में लिखा जाता है.
- जिन अपराधियों के नाम डैथ वारंट जारी किया जाता है, उस डेथ वारंट में यह भी लिखा होता है, कि उन व्यक्तियों को फांसी पर कितनी देर तक लटकाया जाना है. अक्सर इस फॉर्म में यही लिखा जाता है, कि कैदियों को फांसी पर तब तक लटकाया जाए जब तक उनकी मौत ना हो जाए.
- कोर्ट के द्वारा जारी किया गया डेथ वारंट सबसे पहले सीधा जेल प्रशासन के पास पहुंचाया जाता है.
- जब कैदियों को फांसी की सजा दी जाती है और उनकी मौत हो जाती है तो उनकी मौत की पुष्टि करने के बाद डॉक्टर के द्वारा मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया जाता है. जिसे बाद में डेथ वारंट के साथ कोर्ट में जमा कराया जाता है.
जज के हस्ताक्षर
दोषियों की फांसी होने के बाद जेल प्रशासन को उनकी मौत से जुड़े सर्टिफिकेट और फांसी होने की जानकारी देने वाले सभी दस्तावेज वापस कोर्ट में जमा कराने होते है.इस फार्म पर उन सभी गवाहों के भी हस्ताक्षर होते है जिनके सामने अपराधी को फांसी दी जाती है. इसमें डॉक्टर, सब डिविजनल मजिस्ट्रेट, जेलर, डिप्टी जेलर और पुलिसकर्मी शामिल है जो फांसी के आदेश की क्रियान्विति करते है.
फॉर्म नंबर 42 में सबसे नीचे समय दिन और ब्लैक वारंट जारी करने वाले जज के साइन होते हैं. वही फांसी की सजा पूर्ण होने के की अंतिम प्रक्रिया के रूप में भी फिर से इस फॉर्म या वारंट पर उसी जज के हस्ताक्षर होते है.
अंतिम डेथ वारंट
हमारे देश में फांसी की सजा के लिए किसी अदालत द्वारा जारी किया गया अंतिम डेथ वारंट पटियाला कोर्ट द्वारा जारी किया गया था. बहुचर्चित निर्भया केस में दुष्कर्म और हत्या के चार दोषियों को इस डेथ वारंट के जरिए 20 मार्च 2020 की सुबह फांसी दी गई थी.
मुकेश, अक्षय, विनय और पवन चारों दोषियों को तिहाड़ जेल संख्या-3 के फांसी घर में फांसी के फंदे पर लटकाया गया था. इन सभी के लिए पटियाला कोर्ट ने अलग अलग चार डेथ वारंट जारी किए थे.