साइबर स्क्वेटिंग क्या है और इसको रोकने के लिए क्या है भारत में कानून?
नई दिल्ली: डोमेन नाम (Domain name) एक वेबसाइट का पता है जिसका उद्देश्य उन लोगों की मदद करना है जो किसी व्यक्ति या व्यवसाय या संगठन को ऑनलाइन खोजने के लिए इंटरनेट का उपयोग करते हैं. आज लगभग सभी व्यवसायिक संस्थानों के पास एक डोमेन नाम पंजीकृत है और इसका उपयोग अपने ग्राहकों के बीच प्रचार करने के लिए करते हैं। इसलिए, डोमेन नाम महत्वपूर्ण हो जाते हैं और दुरुपयोग को रोकने के लिए ट्रेडमार्क जरूरी है .
लोकप्रिय डोमेन नाम वाले कई ऑनलाइन व्यवसायों के सामने एक बड़ी समस्या है जिसे साइबरस्क्वाटिंग (Cyber squatting) कहते है. साइबरस्क्वाटिंग किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा एक डोमेन नाम के पंजीकरण से संबंधित एक अपराध है जो उस डोमेन का गलत इस्तेमाल करते हुए अपने लाभ के लिए उससे सामान बेचते है.
भारत में साइबर स्क्वाटिंग से संबंधित कोई विशिष्ट कानून नहीं है लेकिन साइबर स्क्वाटिंग को रोकने के लिए मुख्य रूप से भारतीय ट्रेडमार्क अधिनियम का इस्तेमाल किया जाता है.
साइबर स्क्वाटिंग भी कई प्रकार के होतें है
टाइपो स्क्वाटिंग
टाइपो स्क्वाटर्स (Typo Squatters) एक नकली वेबसाइट भी बना सकते हैं जो अपने इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को धोखा देने के लिए समान लेआउट, रंग, चिन्ह का उपयोग करके लगभग मूल वेबसाइट जैसा दिखाते है. उदहारण के तौर पर GST के तरह एक नकली वेबसाइट बनाई जा सकती है, ताकि लोग भ्रमित होकर नकली वेबसाइट पे अपनी व्यक्तिगत जानकारी डाल दे जिसका वह गलत फायदा उठाये .
पहचान की चोरी
एक बार एक डोमेन नाम सफलतापूर्वक पंजीकृत हो जाने के बाद, इसे समय-समय पर नवीनीकृत करने की भी आवश्यकता होती है। जब ऐसे डोमेन नामों को उनके पिछले मालिकों द्वारा नवीनीकृत नहीं किया जाता है, तो साइबर स्क्वैटर तुरंत ऐसे डोमेन नाम को खरीद लेते हैं। समाप्त हो चुके डोमेन नाम को पंजीकृत करने के बाद, साइबर स्क्वैटर मूल वेबसाइटों की नकल करते हैं और इस प्रकार उस वेबसाइट का उपयोग करने वाले लोगों को गुमराह करते हैं.
नेम जैकिंग
नेम जैकर्स (Name Jackers) आमतौर पर प्रसिद्ध हस्तियों के नामों को लक्षित करते हैं और ऐसे नामों से जुड़े एक डोमेन नाम को पंजीकृत करते हैं। ऐसा करने का प्राथमिक कारण ऐसी प्रसिद्ध हस्तियों से संबंधित वेब ट्रैफिकिंग से लाभ उठाना है, क्युकी लोग उनका नाम देखकर उस वेबसाइट की ओर आकर्षित होतें हैं .
फ़िशिंग
यह एक प्रकार का साइबर फ्रॉड है जो गोपनीय वित्तीय जानकारी और अन्य व्यक्तिगत या संवेदनशील डेटा का दुरुपयोग करता है. फ़िशिंग घोटालों में नकली वेबसाइटें भी शामिल होती हैं जो वैध या प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा होस्ट किये जाने का प्रतीत करते है.
भारत में कोई विशिष्ट कानून नहीं है
भारत में किसी भी कानून के तहत एक डोमेन नाम सुरक्षित नहीं है. इस प्रकार, कोई भी व्यक्ति या व्यवसाय ट्रेड मार्क अधिनियम (Trade Mark Act), 1999 और ट्रेड मार्क नियम (Trade Mark Rules), 2002 के तहत भारत में एक नए बनाए गए डोमेन नाम के लिए सुरक्षा प्राप्त करता है.
ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 'अधिनियम के तहत डोमेन नाम के ट्रेडमार्क के रूप में पंजीकृत होने के बाद, पंजीकृत डोमेन नाम के मालिक के पास वे सभी अधिकार और अधिकार होंगे जो पंजीकृत ट्रेडमार्क स्वामी भारत में प्राप्त करते हैं। इसे अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक ट्रेडमार्क के रूप में सुरक्षा प्रदान की जाएगी, जिसमें उल्लंघन या पासिंग ऑफ के लिए मुकदमा करने का अधिकार शामिल है.
आमतौर पर अधिनियम की धारा 103 और 104, जहां झूठे डोमेन का उपयोग करने या नकल करने पर कम से कम 6 महीने से लेकर तीन साल तक की कैद, पचास हजार से दो लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.
जबकि IPC की धारा 469 के तहत जालसाजी का उपयोग साइबर स्क्वेटिंग पर अंकुश लगाने के लिए भी किया जा सकता है, जहां व्यक्ति यह जानते हुए कि यह लोगों के बीच भ्रम पैदा करेगा वह दूसरे वेबसाईट डोमेन की जालसाजी करता है, वही इस कार्य के लिए दोषी पाए गए लोगो को तीन साल के लिए जेल हो सकती है.
समान डोमेन नाम विवाद समाधान नीति क्या है
भारत सरकार ने साइबर स्क्वाटिंग से संबंधित विवादों को हल करने के लिए एक वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र प्रदान करने के लिए एक समान डोमेन नाम विवाद समाधान नीति (UDRP) भी पेश की है. UDRP एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत मुकदमेबाजी के बिना डोमेन नाम पंजीकरणकर्ताओं और ट्रेडमार्क मालिकों के बीच के विवादों को हल किया जा सके.