क्या होती है Closure Report? न्यायालय में इसे किन परिस्थितियों में दाखिल किया जाता है
नई दिल्ली: न्याय की नज़र में सब एक समान है और यह किसी के साथ भी भेदभाव नहीं करता है, चाहे वो कोई पीड़ित हो या फिर कोई अभियुक्त। न्याय अगर पीड़ित के लिए है तो ये अधिकार अभियुक्त को भी प्राप्त है। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में अभियुक्त के मौलिक अधिकारों को संरक्षित करने के लिए कई प्रावधान दिये गए है, और उन्हीं में से एक है क्लोजर रिपोर्ट।
अगर अभियुक्त के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है तो पुलिस न्यायालय में क्लोजर रिपोर्ट (Closure Report) फाइल करती है, आइये जानते है इस क्लोजर रिपोर्ट के विषय में।
क्या होती है Closure Report
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 169 क्लोजर रिपोर्ट के विषय में बताती है। यह एक रिपोर्ट है जो पुलिस या जांच एजेंसियों द्वारा मजिस्ट्रेट या संबंधित अदालत को सौंपी जाती है, जिसमें कहा जाता है कि आरोपी के खिलाफ उचित जांच के बाद, उसे कथित अपराध से जोड़ने के लिए कोई सबूत या संदेह का उचित आधार नहीं मिला, और यदि अभियुक्त हिरासत में है तो उसे रिपोर्ट दर्ज करने के बाद कुछ शर्तों पर रिहा किया जाता है जैसे कि एक बांड निष्पादित करना, एक ज़मानत प्रदान करना, बुलाए जाने पर मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित होना आदि।
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Closure Report का उद्देश्य
इस रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य यह है कि यदि आरोपी के खिलाफ जांच की गई है और कुछ भी आपत्तिजनक या ऐसी कोई सामग्री/ सबूत नहीं मिला है जो आरोपी को कथित अपराध से जोड़ सके, तो उस पर अनावश्यक रूप से मुकदमा चलाने का कोई मतलब नहीं है .
यह प्रावधान ऐसे आरोपी को, जिसके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है, अनुचित और अवांछित (Unwanted) अभियोजन चलाने से रोकता है।
आपको बता दे कि क्लोजर रिपोर्ट, अंतिम रिपोर्ट से भिन्न होती है। क्लोजर रिपोर्ट दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 169 के तहत दायर की जाती है, जबकि अंतिम रिपोर्ट (Final Chargesheet) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 173 के तहत दायर की जाती है।
क्लोजर रिपोर्ट केवल जांच के समापन पर बनाई जाती है, आरोपी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलता है तो कोई केस नहीं बनता, जबकि, अंतिम रिपोर्ट में पाए गए सभी सबूतों, विभिन्न बयानों सहित पूरी जांच का विवरण किया जाता है और अपराध के आरोप भी तय किए जाते हैं। धारा 173 के तहत रिपोर्ट को आरोप पत्र के रूप में भी जाना जाता है और यह क्लोजर रिपोर्ट से बहुत अलग होता है।
निष्पक्ष जांच के लिए अनिवार्य
निष्पक्ष जांच के लिए पुलिस को सभी सबूतों की गहन जांच करनी होती है, साथ ही, यह भी पता लगाना होता है कि आरोपी के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया (Prima Facie) मामला बनता है या नहीं। यदि कोई मामला बनता है तो वे इसकी जांच जारी रखेंगे और मुकदमे में अदालत की सहायता करेंगे।
यदि की गई प्रारंभिक जांच से प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है, तो दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 169 के तहत एक क्लोजर रिपोर्ट बनाई जाती है। धारा 169 के तहत एक क्लोजर रिपोर्ट को अंतिम रिपोर्ट माना जाएगा।