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इलेक्ट्रॉनिक अनुबंध क्या है? इसकी वैधता, प्रवर्तन और स्वीकार्यता के बारे में जानिये

Electronic Contract

व्यापार में हो रहे अपग्रेडेशन के साथ, दस्तावेजों के निष्पादन (Execution) का तरीका भी विकसित हुआ है. बाध्यकारी दस्तावेजों को निष्पादित करने के सुविधाजनक और पारदर्शी तरीकों का सहारा लेने की आवश्यकता थी और इस प्रकार, ई-अनुबंधों और ई-हस्ताक्षरों का इस्तेमाल अधिक होने लगा.

Written By My Lord Team | Published : May 1, 2023 6:20 PM IST

नई दिल्ली: कोरोना महामारी के दौरान हालात ऐसे बने कि दो गज दूरी लोगों के लिए अनिवार्य हो गई. इस दौरान कई चीजों में बड़ा बदलाव किया गया है. इसका ना केवल लोगों के जीवन पर असर हुआ बल्कि व्यवसाय जगत पर भी बहुत बुरा असर पड़ा. उस दौरान लोग एक दूसरे से मिल नहीं सकते थे इसलिए सभी काम ऑनलाइन मोड में होने लगा. जो काम पहले पेपर पर होता था उस काम को डिजिटल मोड में कन्वर्ट कर दिया गया. इसी दौरान ई-अनुबंध यानी इलेक्ट्रॉनिक अनुबंध (Electronic Contract) की अवधारणा बहुत प्रासंगिक हुई .

जब कोई कॉन्ट्रैक्ट इलेक्ट्रॉनिक संचार का उपयोग कर किया जाता है तो उसे इलेक्ट्रॉनिक अनुबंध कहा जाता है. यही कारण है कि इलेक्ट्रॉनिक अनुबंध पारंपरिक कागज-आधारित अनुबंधों से अलग होता है.

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E-अनुबंधों की वैधता, प्रवर्तन और स्वीकार्यता

इलेक्ट्रॉनिक अनुबंधों को नियंत्रित करने वाले प्राथमिक कानून भारतीय अनुबंध अधिनियम (Indian Contract Act), 1872 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act), 2000 के प्रावधानों द्वारा कवर किए गए हैं. आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 10A के साथ धारा 4 के तहत निर्धारित लिटमस टेस्ट को भी पास करना जरूरी है.

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यह इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर को कानूनी मान्यता प्रदान करता है, साथ ही इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों द्वारा हुए अनुबंधों को भी कानूनी मान्यता प्रदान करता है.

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व्यापार में हो रहे अपग्रेडेशन के साथ, दस्तावेजों के निष्पादन (Execution) का तरीका भी विकसित हुआ है. बाध्यकारी दस्तावेजों को निष्पादित करने के सुविधाजनक और पारदर्शी तरीकों का सहारा लेने की आवश्यकता थी और इस प्रकार, ई-अनुबंधों और ई-हस्ताक्षरों का इस्तेमाल अधिक होने लगा.

ई-हस्ताक्षर की अवधारणा का कानूनी चरित्र आईटी अधिनियम 2000 की धारा 5 में बताया गया है. इसके अनुसार एक इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर व्यक्ति को व्यक्तिगत पहचान प्रदान करने में सक्षम बनाता है. ई-अनुबंधों और ई-हस्ताक्षरों की सुरक्षित प्रक्रियाओं और अवधारणाओं को वैध बनाकर इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन की पहचान, सत्यापन और प्रमाणीकरण कुछ प्रमुख चिंताजनक सीमाओं को दूर करने का प्रयास किया गया है. इलेक्ट्रॉनिक/ डिजिटल हस्ताक्षरों की प्रवर्तनीयता को देश में हस्तलिखित हस्ताक्षरों के समान माना जाता है.

स्वीकार्यता

भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000के पारित होने के बाद ई-अनुबंधों को साक्ष्य के रूप में स्वीकार्यता प्राप्त हुई. इसके परिणामस्वरूप ही भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872की धारा 65 (b) के तहत एक अदालत में सबूत के रूप में एक इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की प्रस्तुति की अनुमति दी गई. वहीं इसके धारा 3, 85, 88, और 90 जैसे अन्य प्रावधान हैं, जो इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की कानूनी धारणा से संबंधित कई अनुमानों से निपटते हैं.

भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act), 1872 के प्रावधान के तहत, धारा 3 को धारा 65A और 65B के साथ पढ़ा जाता है. इसके तहत ही अदालत में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को भी स्वीकार किया जाने लगा. इसके ही परिणामस्वरूप साल 2009 में, साक्ष्य अधिनियम, 1872 में एक और आवश्यक संशोधन के तहत इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर और प्रमाणन की अवधारणाओं को इसके प्रतिमान में शामिल किया गया.

धारा 85A और 85B को भी वर्ष 2000 में शामिल किया गया ताकि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड/ हस्ताक्षर और दस्तावेज़/ अनुबंध की वैधता और प्रवर्तनीयता का अनुमान लगाया जा सके.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब राज्य और अन्य बनाम अमृतसर बेवरेजेज लिमिटेड और अन्य (2006) के मामले में इस बात पर प्रकाश डाला था कि 1872 के अधिनियम की धारा 63 में साक्ष्य के रूप में इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों को प्रस्तुत करने की प्रक्रिया शामिल है, जैसा कि अधिनियम की धारा 65B द्वारा प्रदान किया गया है.