क्या होती है Caveat petition जिसके चलते कोई अदालत नहीं दे सकती Ex-parte फैसला
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग द्वारा एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना के रूप में मान्यता देने के फैसले के खिलाफ उद्धव ठाकरे की याचिका पर सुनवाई कर रहा है. गौरतलब है कि 17 फरवरी को केंद्रीय चुनाव आयोग ने अपने फैसले में शिवसेना पार्टी और चुनाव चिह्न शिंदे गुट को इस्तेमाल करने की इजाजत दी थी.
चुनाव आयोग के फैसले के तुरंत बाद ही उद्धव ठाकरे की याचिका से पहले ही इस मामले में शिंदे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दायर की थी. शिंदे गुट ने कैविएट दायर कर बिना उनका पक्ष सुने एकतरफा फैसला नहीं देने का सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है.
आईए जानते है कि आखिर कैविएट याचिका क्या होती है, और यह याचिका किस अदालत में दायर की जा सकती है और क्यों दायर की जाती है.
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कैविएट याचिका
कैविएट याचिका किसी व्यक्ति को किसी अदालत में उसके खिलाफ कोई भी निर्णय लेने से पहले सुनवाई का अधिकार देती है. कोई भी अदालत किसी व्यक्ति का पक्ष सुने बिना उसके खिलाफ फैसला नहीं दे सकती या आदेश जारी नहीं कर सकती है, बस इसी अधिकार का उपयोग करने के लिए कैविएट याचिका होती है.
कैविएट याचिका जिस पक्षकार द्वारा दायर की जाती है यह उसकी तरफ से अदालत को दिया गया एक सूचना नोटिस कहा जा सकता है जिसके जरिए पक्षकार अदालत के समक्ष यह दावा करता है कि जिस मामले में उसके द्वारा कैविएट याचिका दायर की गई है, उस मामले में उसका पक्ष सुने बिना या नोटिस दिए बिना कोई फैसला नहीं किया जाए.
एकपक्षीय फैसला रोकने का उपाय
यह एक तरह का ऐहतियाती उपाय है जिसके जरिए कोई पक्षकार अपने खिलाफ एक पक्षीय फैसले या आदेश को रोकने का प्रयास करता है.
कैविएट एक पक्ष द्वारा न्यायालय के समक्ष दायर एक याचिका है जिसमें कहा गया है कि यदि विरोधी पक्ष उसके खिलाफ कोई मुकदमा, अपील या अन्य कार्यवाही करता है, तो अदालत को कैविएट दाखिल करने वाले पक्ष को सूचित करना चाहिए.
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 148A एक व्यक्ति को अदालत को सिविल मामलों में एकतरफा आदेश या निर्णय जारी करने से रोकने का अधिकार देती है. यदि न्यायालय आदेश या निर्णय पारित करने से पहले कैविएटर को सूचित नहीं करता है, तो आदेश या निर्णय शून्य हो जाता है.
कानूनी प्रावधान
हमारे देश की सिविल प्रक्रिया संहिता ccp की धारा 148A के तहत किसी को भी एक कैविएट याचिका दायर करने का अधिकार है. मूल रूप से भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के दायरे के तहत वसीयतनामा की कार्यवाही में एक कैविएट दर्ज करने का प्रावधान इस्तेमाल किया गया था, जिसे वर्ष 1976 में सभी सिविल मुकदमों के लिए लागू कर दिया गया.
वर्ष 1976 से पहले सुप्रीम कोर्ट में कैविएट याचिका किसी के द्वारा दायर की जा सकती थी, जिससे किसी मुकदमे के बारे में पता था या पहले से ही स्थापित किया गया था जिससे कि वह लड़ सकता है.
54 वें विधि आयोग की रिपोर्ट ने सिफारिश की कि इस प्रावधान को सीपीसी में जोड़ा जाए, जिससे सभी निचली अदालतों में कैविएट याचिका दायर की जा सके, जिससे व्यक्ति को मुकदमे या मामले के प्रारंभिक चरण में भी लड़ने और उपस्थित होने की अनुमति मिल सके. इसी के फलस्वरूप धारा 148 A को संहिता में 1976 के संशोधन करते हुए जोड़ा गया.
धारा 148A का उद्देश्य और दायरा
धारा 148A का मुख्य उद्देश्य कैविएट दाखिल करने वाले व्यक्ति के हितों की रक्षा करना है, क्योंकि वह एक संभावित मामले के बारे में चिंतित है.कैविएटर के जरिए पक्षकार को उम्मीद होती है कि उससे संबंधित मामले में उसे सुनवाई का उचित मौका दिया जाएगा.
कौन दायर कर सकता है
धारा 148A के खंड 1 के तहत प्रावधान किया गया है कि एक व्यक्ति जिसके खिलाफ उस अदालत में कोई दावा किया गया है, या दावे के आवेदन की आशंका है, पहले ही वाद दायर किया जा चुका है या पहले से स्थापित वाद में कुछ नया बदलाव हुआ है, इन परिस्थितियों में एक व्यक्ति कैविएट याचिका दायर कर सकता है:
इस धारा में यह भी स्पष्ट किया गया है कि कोई तीसरा पक्ष या पूर्ण अजनबी व्यक्ति, जिसका उस मुकदमे से कोई लेना देना नहीं है वह कैविएट आवेदन दायर नहीं कर सकता है. यानी एक व्यक्ति जो कार्यवाही का पक्षकार नहीं है, वह कैविएट दाखिल नहीं कर सकता है.
किसी भी अदालत में कैविएट याचिका दायर होने के बाद अदालत को कैविएटर को आवेदन की सूचना देनी ही होगी.कैविएट दायर करने की तारीख से 90 दिन तक ही इस वैधता होती है, 90 दिन की अवधि बीत जाने के बाद, एक नया कैविएट दायर किया जा सकता है.
कहां हो सकती है दायर
एक कैविएट याचिका मूल अधिकार क्षेत्र के किसी भी सिविल न्यायालय, अपीलीय न्यायालय, हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा सकती है.