क्या होता है जब किसी व्यक्ति पर IPC की धारा 325 के तहत आरोप लगाया जाता है?
नई दिल्ली: किसी को जानबूझ कर या साजिश करके चोट पहुंचाना भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) 1860 की धारा 325 के तहत एक अपराध माना गया है. IPC के चैप्टर छह में चोट को उपहति कहा गया है और अंग्रेजी में Hurt कहा गया है. इस धारा को समझने के लिए सबसे पहले हमें उपहति, घोर उपहति, स्वेच्छया से उपहति, स्वेच्छया से घोर उपहति को समझना होगा. साथ ही हम यह भी जानेंगे कि अगर किसी पर धारा 325 के तहत अपराध करने का आरोप लगता है तो उसके बाद क्या कानूनी प्रक्रिया अपनाई जाती है.
उपहति को आईपीसी की धारा 319 के तहत परिभाषित किया गया है. जिसके अनुसार अगर किसी व्यक्ति को किसी व्यक्ति की वजह से कोई शारीरिक दर्द, बीमारी या दुर्बलता होता है तो ऐसा माना जाएगा कि वह व्यक्ति उपहति करता है. यानि वह व्यक्ति उसके चोट का कारण है.
किसी अपराध को उपहति मानने के लिए उसमें निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक है
Also Read
- Swati Maliwal Case: मुख्यमंत्री आवास नहीं जाएंगे, सरकार के किसी अधिकारिक पोस्ट पर नियुक्त नहीं होंगे... बिभव कुमार को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने लगाई शर्तें
- Nabanna March: छात्र नेता सायन लाहिरी की 'सुप्रीम' राहत, जमानत रद्द करने की मांग वाली बंगाल सरकार की याचिका हुई खारिज
- Assam Job For Cash Scam: पूर्व लोक सेवा आयोग प्रमुख को 14 साल की सजा, 2 लाख रुपये का जुर्माना
1.शारीरिक दर्द
2. बीमारी
3. दुर्बलता
स्वेच्छया से उपहति कारित करना
धारा 321 के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी को जानबूझ कर अपनी मर्जी (स्वेच्छया) से उपहति (शारीरिक दर्द, बीमारी, दुर्बलता) को अंजाम देता है तो वह दोषी माना जाएगा.
स्वेच्छया से उपहति के लिए सजा
आपको बता दें की स्वेच्छया से उपहति के अपराध के लिए धारा 323 के तहत एक साल की जेल या एक हजार रुपये का जुर्माना या फिर दोनों ही सजा दी जा सकती है. उपहति’ का अपराध एक गैर-संज्ञेय (Non Cognizable), जमानती और कंपाउंडेबल अपराध है
घोर उपहति
आईपीसी की धारा 320 के अनुसार निम्नलिखित प्रकार की उपहति को केवल "घोर" के रूप में माना गया है;
1. पुंसत्वहरण (Emasculation)
2. किसी भी आंख की दृष्टि का स्थायी अभाव.
3. किसी भी कान की सुनने की क्षमता का स्थायी अभाव.
4. किसी भी अंग या जोड़ का विच्छेद (Privation).
5. किसी भी अंग या जोड़ की शक्तियों का विनाश या स्थायी हानि.
6. सिर या चेहरे की स्थायी विकृति.
7. हड्डी या दांत का टूटना या विस्थापन.
8. कोई भी उपहति जो जीवन को खतरे में डालती है या जिसके कारण पीड़ित को 20 दिनों की अवधि के दौरान गंभीर शारीरिक दर्द होता है, या अपने सामान्य कामों को करने में असमर्थ होता है.
स्वेच्छया से घोर उपहति कारित करना
अगर कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से किसी के साथ धारा 320 में बताए गए अपराध को अंजाम देता है तो वह व्यक्ति स्वेच्छया से घोर उपहति के लिए दोषी माना जाएगा.
स्वेच्छया से घोर उपहति के लिए धारा 325 के तहत सजा
इस धारा में स्वेच्छया से घोर उपहति के लिए सजा का प्रावधान किया गया है. इसके अनुसार, यदि कोई धारा 335 द्वारा प्रदान किए गए मामले को छोड़कर, स्वेच्छया से यानि अपनी मर्जी से घोर उपहति का कारण बनता है उसे एक निश्चित अवधि के कारावास से दंडित किया जा सकता है. जिसकी अवधि सात साल हो सकती है, और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
आसान भाषा में कहा जाए तो किसी को घोर उपहति पहुंचाना हमारे देश में कुछ हद तक गंभीर अपराध माना जाता है. इस तरह के अपराध को संज्ञेय अपराध माना जाता है. यह एक जमानती अपराध है. इस धारा के अंतर्गत किए गए अपराध की सुनवाई किसी भी मजिस्ट्रेट के न्यायालय में किया जा सकता है.
क्या होता है जब किसी पर धारा 325 का आरोप लगता है?
जब भी किसी के साथ कोई स्वेच्छया से घोर उपहति वाले अपराध को अंजाम देता है तो पीड़ित को आरोपित के खिलाफ पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज करानी होती है. इसके बाद पुलिस इस मामले पर जांच शुरू करेगी. इस जांच में पुलिस के द्वारा सबूत जुटाए जाते हैं. इसे चार्जशीट के रूप में जाना जाता है जिसे पुलिस के द्वारा दायर किया जाता है.
चार्जशीट मूल रूप से एक रिपोर्ट है जो पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट को जांच सफलतापूर्वक होने के बाद दायर की जाती है. जो शिकायतकर्ता, आरोपी और पीड़ित, किसी भी गवाह, वस्तुओं के नाम, अपराध के घटित होने की तिथि, समय और स्थान, जांच अधिकारी का नाम, मेडिकल रिपोर्ट यदि बनाई गई है, एफआईआर संख्या, केस डायरी के सही निष्कर्ष आदि से जुड़ी पूरी जानकारी को दर्ज करती है.
इसके उपरांत आरोपित व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाता है जो मौखिक रूप से आरोपितों को किए गए अपराध (अपराधों) के बारे में बताते हैं और पूछते हैं कि क्या वह व्यक्ति दोषी हैं या नहीं. अगर आरोपित व्यक्ति अपराध स्वीकार करता है, तो मजिस्ट्रेट आरोपी के बयान का रिकॉर्ड बनाता है और फिर दोषसिद्धि के लिए आगे बढ़ता है.
हालांकि, आरोपित व्यक्ति दोष नहीं मानते हैं तो भी सुनवाई होती है जिसमें न्यायाधीश आरोपी को बरी करने या दोषी ठहराए जाने का फैसला कर सकते है.