क्या होता है जब किसी व्यक्ति पर IPC की धारा 325 के तहत आरोप लगाया जाता है?
नई दिल्ली: भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code, 1860) के अध्याय 16 में 'मानव शरीर को प्रभावित करने वाले अपराध' के शीर्षक के अंतर्गत 'घोर उपहति' के गंभीर अपराध के बारे में लिखा गया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 325 में अपनी इच्छा से 'घोर उपहति' (Grievous Hurt) पहुंचाने की सजा का प्रावधान है।
आईपीसी की धारा 325 (Section 325 of Indian Penal Code-IPC) के तहत ये आरोप कब लगाया जाता है और उसकी सजा क्या होती है, आइए विस्तार से समझते हैं.
IPC की धारा 325 के तहत सजा
आईपीसी की धारा 325 के तहत आने वाला 'घोर उपहति' पहुंचाने का अपराध एक संज्ञेय अपराध है जिसके लिए पुलिस अधिकारी को बिना अदालत से वॉरंट के किसी को गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त होता है।
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सजा की बात करें तो इस अपराध के लिए शख्स को जेल भेजा जाएगा जिसकी सीमा सात साल तक की हो सकती है। इसके साथ-साथ अपराधी पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। जान लें कि ये अपराध जमानती है।
आपको बता दें कि भारतीय दंड संहिता की धारा 319 (IPC Section 319) के तहत 'उपहति' वो है जब एक शख्स किसी व्यक्ति के शारीरिक दर्द, बीमारी या दुर्बलता (डिफॉर्मिटी) का कारण बनता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 320 (IPC Section 320) में 'घोर उपहति' को कई तरह से परिभाषित किया गया है.
'घोर उपहति' में पुंसत्वहरण, किसी की आंखों की रोशनी को हानि पहुंचाना, कानों की सुनने की शक्ति को हानि पहुंचाना, शरीर के किसी अंग या जोड़ों को नुकसान पहुंचाना, सिर या चेहरे की विकृति और हड्डियों या दांतों को तोड़ना या उनका विस्थापन (डिसलोकेशन) शामिल है।
IPC की धारा 325 के तहत आरोप
आपराधिक प्रक्रिया की शुरुआत पीड़ित के पुलिस स्टेशन में जाकर एफआईआर (FIR) यानी एक शिकायत दर्ज करने से होती है। शिकायत जब दर्ज हो जाती है तो पुलिस छानबीन करती है और अपनी जांच करके साक्ष्यों को हासिल करती है। इन सभी सबूतों को एक चार्जशीट के रूप में मैजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
इस चार्जशीट में शिकायतकर्ता की शिकायत, गवाहों की जानकारी, वस्तुओं के नाम, अपराध के घटित होने की तिथि, अपराध का समय, एफआईआर संख्या, आदि का विवरण शामिल होता है। इस चार्जशीट के प्रस्तुत होने के बाद आरोपी को मैजिस्ट्रेट के कोर्ट में लेकर जाया जाता है।
कोर्ट में इस तरह होती है कार्रवाई
बता दें कि मैजिस्ट्रेट के सामने आरोपी से अपराधों के बारे में पूछा जाता है और फिर यह सवाल किया जाता है कि वो दोषी हैं या नहीं। अपराधी अगर अपना जुर्म मान लेता है तो मैजिस्ट्रेट उसके स्टेटमेंट का रिकॉर्ड बनाते हैं और फिर अपराधी को सजा सुनाई जाती है।
अगर अपराधी अपना गुनाह नहीं कुबूलता है तो सुनवाई होती है जिसमें न्यायधीश फैसला करते हैं कि अपराधी निर्दोष है या उसे दोषी ठहराया जाना चाहिए।