राष्ट्रपति की Veto Powers क्या हैं? किसी बिल को रोकने के लिए इसका उपयोग कैसे किया जाता है?
नई दिल्ली: भारतीय संविधान के अनुसार, देश के राष्ट्रपति, राज्य के प्रमुख, देश के पहले नागरिक और साथ ही भारतीय सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ होते हैं. संविधान में सभी उपाधियों और प्रावधानों के बाद भी, डॉ बीआर अम्बेडकर, जो भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के प्रमुख थे, ने राष्ट्रपति को नाममात्र के व्यक्ति के रूप में करार दिया और यह बताया की राष्ट्रपति के पास प्रशासन का कोई विवेक और अधिकार नहीं है. इसके इलावा हम अक्सर सुनते हैं कि राष्ट्रपति केवल एक "रबर स्टैम्प" है.
लेकिन राष्ट्रपतियों के पास कुछ शक्तियाँ होती हैं जो केवल उन्हीं की होती हैं जिनका वे उपयोग कर सकते हैं उनमें से एक वीटो शक्ति है. भारतीय का अनुच्छेद 111 निर्दिष्ट करता है कि जब कोई विधेयक संसद द्वारा पारित किया जाता है, तो उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. यहां आपको बता दे की जब किसी विधेयक (बिल) पर राष्ट्रपति अपनी सहमति देता है तभी वह विधेयक एक्ट बन जाता है. हालांकि राष्ट्रपति किसी विधेयक को अपनी वीटो शक्ति का इश्तेमाल करके रोक भी सकता है.
राष्ट्रपति की वीटो शक्ति क्या है?
राष्ट्रपति जब बिल प्राप्त करता है तो उसे अपनी सहमति देनी होती है ताकि बिल एक अधिनियम बन जाए। यदि वह बिल पर अपनी असहमति जताता है तो उसे इसकी घोषणा करनी पड़ती है. राष्ट्रपति बिल को पुनर्विचार के लिए वापस संसद के पास भी भेज सकता है लेकिन यदि वह फिर से पारित हो जाता है तो राष्ट्रपति उस बिल पर अपनी स्वीकृति देने के लिए बाध्य हो जाता है.
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याद रखे कि राष्ट्रपति मनी बिल को पुनर्विचार के लिए वापस नहीं कर सकता है. वह या तो सहमति दे सकता है या उसे रोक सकता है लेकिन इसे वापस नहीं भेज सकता. वीटो शक्ति यह सुनिश्चित करता है कि कोई कानून बनाने में कोई जल्दबाजी न हो जाएं.
कितने प्रकार की हैं राष्ट्रपति की वीटो शक्तियां ?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 111 के अनुसार राष्ट्रपति मूल रूप से तीन प्रकार की वीटो शक्ति का उपयोग कर सकते हैं:
● पूर्ण वीटो
● निलंबनकारी वीटो
● पॉकेट वीटो
पूर्ण वीटो
राष्ट्रपति आमतौर पर पूर्ण वीटो का उपयोग तब करते हैं जब मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति से इसे एक निजी सदस्य बिल पर उपयोग करने के लिए कहती है जिसे संसद द्वारा पारित किया गया है, या एक नया कैबिनेट मंत्री राष्ट्रपति से पिछली सरकार द्वारा पारित विधेयक पर इसका उपयोग करने के लिए कह सकता है. हमारे संवैधानिक इतिहास में, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और पी आर वेंकटरमन द्वारा इसका इस्तेमाल किया जा चुका है.
निलंबनकारी वीटो
निलंबनकारी वीटो का उपयोग तब किया जा सकता है जब राष्ट्रपति अपनी सहमति नहीं देता है और बिल संसद को पुनर्विचार के लिए भेजता है। जब बिल, संशोधन सहित या बिना संशोधन के राष्ट्रपति के पास उनकी सहमति के लिए पुनः भेजा जाता है तो राष्ट्रपति के लिए सहमति देना अनिवार्य हो जाता है.
ऐसे में राष्ट्रपति उसे संसद को वापस नहीं भेज सकते या किसी और वीटो का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते. हालांकि राष्ट्रपति मनी बिल को छोड़कर किसी भी बिल पर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
पॉकेट वीटो
पॉकेट वीटो एक शक्ति है जो राष्ट्रपति को किसी बिल पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देने की ताक़त प्रदान करता है जिसका इस्तेमाल करके वह बिल को ना सहमति देता है और ना ही अहसहमति और ना ही पूर्ण वीटो का इस्तेमाल करता है. जैसा कि नाम से पता चलता है कि राष्ट्रपति बिल को अपनी "जेब" में रखता है.
यह राष्ट्रपति की कुछ प्रमुख शक्तियों में से एक है जिसका वह उपयोग कर सकते हैं, इसका उपयोग केवल एक बार राष्ट्रपति जैल सिंह द्वारा 1986 में भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक पर किया गया था, जहाँ उन्होंने अपनी सहमति देने से इनकार कर दिया था और पॉकेट वीटो का उपयोग किया था.
लेकिन 1971 के 24वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत राष्ट्रपति के लिए संविधान संशोधन बिल पर अपनी सहमति देना अनिवार्य कर दिया गया है.