साक्ष्य कितने प्रकार के होते है ? Primary और Secondary साक्ष्य में क्या है अंतर?
नई दिल्ली: अदालत के समक्ष प्रस्तुत सभी मामले में साक्ष्य एक महत्वपूर्ण पहलू होता है क्योंकि हर आरोप या मांग को कुछ सबूतों के साथ समर्थन करना पड़ता है अन्यथा इसे कानून की नजर में निराधार माना जाता है. सबूत किसी व्यक्ति के अपराध या निर्दोषता को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाता है अतः साक्ष्य का अर्थ है किसी तर्क के समर्थन में प्रस्तुत किए गए तथ्य का अवलोकन.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम वह कानून है जो भारत में साक्ष्य को नियंत्रित करता है. यह निर्दिष्ट करता है कि कितने साक्ष्य हैं और कौन से साक्ष्य स्वीकार्य होंगे और कौन से नहीं. यहां आपको बता दे की भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार साक्ष्य कई प्रकार के होते है.
मौखिक साक्ष्य
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 60 में मौखिक साक्ष्य का उल्लेख किया गया है. जैसा कि नाम से ज्ञात हो रहा है की इसकी प्रस्तुति तब होती है जब कोई व्यक्ति न्यायाधीश की उपस्थिति में मौखिक रूप से अदालत में बयान देता है. इसके अंतर्गत वह साक्ष्य होता है जिसे साक्षी ने स्वयं देखा या सुना हो। यह हमेशा प्रत्यक्ष होना चाहिए और यह साक्ष्य तब प्रत्यक्ष होता है जब वह प्राथमिक रूप से किसी मुद्दे में मुख्य तथ्य को स्थापित करता है.
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दस्तावेज़ी साक्ष्य
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 में कहा गया है कि निरीक्षण के लिए अदालत के समक्ष प्रस्तुत किए गए सभी दस्तावेजों को दस्तावेजी साक्ष्य होने का दावा किया जाता है। दस्तावेजी साक्ष्य में जन्म प्रमाण पत्र, अनुबंध, स्कूल की मार्कशीट आदि शामिल हैं. स्वीकार्य होने से पहले दस्तावेजी साक्ष्य को प्रमाणित किया जाना चाहिए ताकि फ़र्ज़ी दस्तवेजो से अलग रखा जा सका जाए.
प्राथमिक साक्ष्य
प्राथमिक साक्ष्य को सर्वोत्तम गुणवत्ता का साक्ष्य माना जाता है और यह तब होता है जब दस्तावेजों को निरीक्षण के लिए न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता है. साक्ष्य अधिनियम प्राथमिक साक्ष्य की व्याख्या यह कहकर करता है कि जब कोई दस्तावेज़ विभिन्न भागों में होता है तो दस्तावेज़ का प्रत्येक भाग प्राथमिक साक्ष्य का एक हिस्सा होता है.
द्वितीयक साक्ष्य
प्राथमिक साक्ष्य के अभाव में द्वितीयक साक्ष्य प्रस्तुत किया जाता है. इसके अंतर्गत वह साक्ष्य होता है जिसे मूल दस्तावेज़ से पुन: प्रस्तुत किया गया है या मूल वस्तु के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया है या जब कोई व्यक्ति किसी दस्तावेज़ की मौखिक गवाही देता है जिसे उसने देखा है या जब मूल दस्तावेज़ से प्रतियां बनाई जाती हैं तो उसे द्वितीयक साक्ष्य कहते है. उदाहरण के लिए, किसी दस्तावेज़ या फ़ोटो ग्राफ़ की फोटोकॉपी को द्वितीयक साक्ष्य माना जाएगा.
भौतिक साक्ष्य
भौतिक साक्ष्य, एक मामले में शामिल भौतिक वस्तुओं, और चीजों से युक्त होते हैं जिन्हें कोई भी भौतिक रूप से पकड़ सकता है और निरीक्षण कर सकता है. भौतिक साक्ष्य के उदाहरणों में उंगलियों के निशान, रक्त के सैंपल , डीएनए, एक चाकू, एक बंदूक और अन्य भौतिक वस्तुएं शामिल हैं. भौतिक साक्ष्य को आमतौर पर स्वीकार किया जाता है क्योंकि यह एक परीक्षण में तथ्य के मुद्दे को साबित या अस्वीकार करने की कारण बनता है.
इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य
मूल रूप से, इलेक्ट्रॉनिक प्रकार के साक्ष्य का उल्लेख नहीं किया गया था या साक्ष्य की परिभाषा के तहत कवर नहीं किया गया था. हालांकि, साक्ष्य की परिभाषा में 'इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड' को शामिल करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 द्वारा संशोधन किया गया. एक इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्राप्त या भेजी गई कोई भी जानकारी शामिल होती है. हालांकि इसकी स्वीकार्यता इस बात पर निर्भर करती है कि इसे कैसे प्राप्त किया गया.
अफवाह साक्ष्य
सुनी-सुनाई साक्ष्य का अर्थ है गवाह का कथन जो उसके व्यक्तिगत ज्ञान या अनुभव पर आधारित नहीं होता है बल्कि इस पर आधारित होता है जो उसने दूसरों से सुना है. सुनी-सुनाई साक्ष्य एक प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं माना जाता है. साक्ष्य जो प्रत्यक्ष नहीं है वह वह है और इस तरह के गवाह का सबूत बताए गए तथ्य की सच्चाई को साबित करने के लिए अस्वीकार्य है.
प्रत्यक्ष साक्ष्य
प्रत्यक्ष साक्ष्य वह सबूत है जो परिस्थितियों की व्याख्या के बिना वास्तव में किसी तथ्य को साबित करता है. यह कोई भी ऐसा सबूत है जो वास्तिविक रूप में अदालत में तथ्य को साबित कर दे जिसमें अलग से कोई और साक्ष्य प्रस्तुत करने की ज़रुरत नहीं होती है और इस साक्ष्य के सम्बन्ध में अदालत को अनुमान लगाने की ज़रुरत नहीं पड़ती क्योंकि साक्ष्य देख कर ही पता चल जाता है की सत्य क्या है.
प्राथमिक और द्वितीयक साक्ष्य में क्या अंतर है?
प्राथमिक साक्ष्य दस्तावेज़ की पहली और मूल प्रति है जिसे निरीक्षण के लिए न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है जबकि द्वितीयक साक्ष्य स्थानापन्न लेकिन दस्तावेज़ की एक कम महत्वपूर्ण प्रति है, जिसे प्राथमिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं होने पर प्रस्तुत किया जाता है.
प्राथमिक साक्ष्य के लिए पूर्व-सूचना भेजने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन द्वितीयक साक्ष्य के लिए पूर्व-सूचना भेजना आवश्यक है.
प्राथमिक साक्ष्य किसी भी समय अदालत द्वारा स्वीकार्य है लेकिन द्वितीयक साक्ष्य केवल तभी स्वीकार्य होगा जब प्राथमिक साक्ष्य मौजूद नहीं है या अदालत में पेश नहीं किया गया है.