Hindu Succession Act में क्या हैं महिलाओं के संपत्ति संबंधित अधिकार?
नई दिल्ली: प्राचीन हिंदू समाज में महिलाओं को स्त्रीधन के तौर पर संपत्ति प्रदान की जाती थी उनके विवाह के साथ या अन्य किसी शुभ अवसर पर. अन्यथा, मान्यता यह थी कि उनकी शादी के उपरांत वो दूसरे घर की सदश्य हो जाएगी, इसलिए संपत्ति के बंटवारे में, परिवार के केवल पुरुष सदस्यों को ही हिस्सा मिलता था, महिलाओं को नहीं.
परन्तु समय के साथ-साथ अब महिलाओं के अधिकारों को पुरुषों के समान मान्यता मिली और अब उनके पास आय का अपना स्वतंत्र स्रोत और संपत्ति भी है. ऐसे परिदृश्य में, जब समाज में बदलाव आया तो कानूनों का समाज के साथ विकसित होना आवश्यक था. पिछले कुछ दशकों में महिलाओं के संपत्ति संबंधित कई कानून बनाए गए हैं, जैसे- हिंदू महिलाओं का संपत्ति का अधिकार अधिनियम, 1937, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956, हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 इत्यादि. इन कानूनों का मुख्य उद्देश्य संपत्ति में महिलाओं को अधिकार दिलाना है. इसके अलावा, कानून संबंधित अस्पष्टता को दूर करने और सही व्याख्या करने के लिए कई न्यायिक निर्णय भी हुए हैं.
हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 को वर्ष 2005 में संशोधित किया गया जो 5 सितंबर 2005 को राष्ट्रपति की सहमति से 9 सितंबर 2005 से प्रभावी हुआ. 'हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005' द्वारा लाए गए महत्वपूर्ण परिवर्तनों में से एक यह भी था कि अब बेटियां भी अपने पिता के संयुक्त हिंदू परिवार में सहदायिक (coparceners) बनने के योग्य हैं. इसमें यह भी स्पष्ट किया गया कि संपत्ति के संबंध में उसकी वैवाहिक स्थिति अप्रासंगिक होगी.
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इस संशोधन का मूल उद्देश्य 1856 में स्थापित संपत्ति के अधिकारों में लिंग भेदभाव वाले प्रावधानों को हटाना था. इस संशोधन ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6 को प्रतिस्थापित किया. धारा 6(1) संपत्ति रखने के लिए हिंदू महिलाओं के अधिकार से संबंधित है जबकि धारा 6(2) और धारा 6(3) संपत्ति के निपटान से संबंधित है.
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6
(1) "हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारंभ होने पर, मिताक्षरा कानून द्वारा शासित एक संयुक्त हिंदू परिवार में, एक सहदायिक की बेटी-
-जन्म से ही पुत्र के समान अपने आप में सहदायिक बन जाती है,
-सहदायिकी संपत्ति में उसके वही अधिकार हैं जो उसके पुत्र होने पर प्राप्त होते,
-उक्त सहदायिकी संपत्ति के संबंध में उसी देनदारियों के अधीन होना चाहिए जो एक बेटे के रूप में है.
(2) कोई भी संपत्ति जिसके लिए एक हिंदू महिला उप-धारा (1) के आधार पर हकदार हो जाती है, उसे सहदायिकी स्वामित्व की घटनाओं के साथ उसके द्वारा आयोजित किया जाएगा और इस अधिनियम या किसी अन्य कानून में कुछ समय के लिए लागू होने के बावजूद, वसीयतनामा स्वभाव द्वारा उसके द्वारा निपटाए जाने में सक्षम संपत्ति के रूप में माना जाएगा.
(3) इस उपधारा में बताया गया है की, जहां हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के लागू होने के बाद एक हिंदू की मृत्यु हो जाती है, मिताक्षरा कानून द्वारा शासित एक संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति में उसका हित वसीयतनामा या निर्वसीयत उत्तराधिकार द्वारा, जैसा भी मामला हो, इस अधिनियम के तहत और जीवित रहने से नहीं होगा, और सहदायिकी संपत्ति को विभाजित माना जाएगा यदि विभाजन हुआ होता और बेटी को वही हिस्सा आवंटित किया जाता है जो एक बेटे को आवंटित किया जाता है, पूर्व-मृत पुत्र या पूर्व-मृत पुत्री का हिस्सा, जैसा कि उन्हें प्राप्त होता यदि वे विभाजन के समय जीवित होते, ऐसे पूर्व-मृतक के जीवित बच्चे को आवंटित किया जाएगा; और पूर्व-मृत पुत्र या पूर्व-मृत पुत्री के पूर्व-मृत बच्चे का हिस्सा, जैसा कि उस बच्चे को मिलता यदि वह विभाजन के समय जीवित होता/होती, तो ऐसे पूर्व-मृत बच्चे के बच्चे को आवंटित किया जाएगा.
(4) इस अधिनियम के लागू होने के बाद, कोई भी अदालत किसी पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के खिलाफ उसके पिता, दादा या परदादा से देय किसी भी ऋण की वसूली के लिए कार्यवाही करने के किसी अधिकार को मान्यता नहीं देगा. ऐसे बेटे, पोते या प्रपौत्र के हिंदू कानून के तहत पवित्र दायित्व के आधार पर ऐसे किसी भी ऋण को चुकाने के लिए, बशर्ते कि हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारंभ से पहले किए गए किसी भी ऋण के मामले में, इस उप-धारा में निहित कुछ भी प्रभावित नहीं करेगा.
(5) इस खंड में निहित कुछ भी उस विभाजन पर लागू नहीं होगा, जो 20 दिसंबर, 2004 से पहले प्रभावी हो गया है. इस अधिनियम की धारा 6 में निहित कुछ भी होने के बावजूद-
(a)एक संयुक्त हिंदू परिवार में, एक सह-समांशी की बेटी जन्म से ही अपने आप में एक सह-उत्तराधिकारी बन जाएगी, जिस तरह से पुत्र और सह-दायरा संपत्ति में समान अधिकार होंगे;
(b) एक विभाजन पर सहदायिकी संपत्ति को इस तरह विभाजित किया जाएगा कि एक बेटी को वही हिस्सा आवंटित किया जा सके जो एक बेटे को आवंटित किया जाता है, बशर्ते कि वह हिस्सा जो एक पूर्व मृत पुत्र या पूर्व मृत बेटी को होगा बंटवारा हो गया है, यदि वह विभाजन के समय जीवित था, तो ऐसे पूर्वमृत पुत्र या ऐसी पूर्वमृत पुत्री के जीवित बच्चे को आवंटित किया जाएगा;
(c) कोई भी संपत्ति जिसके लिए एक हिंदू महिला खंड (a) के प्रावधानों के आधार पर हकदार हो जाती है, उसके पास सह-दायरा स्वामित्व की घटनाओं के साथ आयोजित की जाएगी और इस अधिनियम या किसी अन्य कानून में निहित कुछ भी होने के बावजूद माना जाएगा;
(d) खंड (b) में कुछ भी एक बेटी पर लागू नहीं होगा, जो कि हिंदू उत्तराधिकार (कर्नाटक संशोधन) अधिनियम, 1990 के प्रारंभ होने से पहले या विभाजन से पहले विवाहित थी.
इस प्रकार हिंदू महिलाओं को भी अब पुरुषों के बराबर लाया गया है और सहदायिकी के संदर्भ में बेटियों को भी बेटों को दिए गए सारे अधिकार समान रूप में प्राप्त हैं.