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CrPC की धारा 173(8) के तहत देश की जांच एजेंसियों को मिली है ये शक्तियां

Investigation Agency in India

देश की जांच एजेंसियों को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए कई कानूनी शक्तियों को दिया गया है जिसका इस्तेमाल कर वो अपराध और अपराधियों को नियंत्रित करते हैं. सीआरपीसी के तहत भी इन्हे कुछ खास शक्तियां दी गई हैं. 

Written By My Lord Team | Published : May 1, 2023 2:49 PM IST

नई दिल्ली: दुनिया भर के देशों में शांति, स्थिरता बनाए रखने और बाहरी या आंतरिक खतरों से निपटने के लिए कई जांच एजेंसियां काम करती हैं. हमारे देश में भी ऐसी जांच एजेंसियां हैं जो न केवल बाहरी खतरे से बल्कि अंदरूनी खतरे से भी निपटती है. जांच एजेंसियों को अपना काम करने के लिए कानूनी रूप से कई शक्तियां दी गई हैं.

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure- CrPC) की धारा 173(8) के तहत भी इन एजेंसियों को भी ताकत प्रदान की गई हैं.

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धारा 173(8) के तहत शक्तियां

1.मजिस्ट्रेट के सामने अंतिम रिपोर्ट रखे जाने और स्वीकार किए जाने के बाद भी जांच एजेंसी को मामले में आगे की जांच करने की अनुमति है. यानि, सीआरपीसी की धारा 173(2) के तहत प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट स्वीकार किए जाने के बाद सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत आगे की जांच करने पर कोई रोक नहीं है.

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2.इस धारा के तहत आगे की जांच करने से पहले यह जरूरी नहीं है कि अंतिम रिपोर्ट को स्वीकार करने वाले आदेश पर पुनर्विचार किया जाए, उसे वापस लिया जाए या रद्द कर दिया जाए.

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3.आगे की जांच केवल पहले की जांच की निरंतरता (Continuity) है. यानि उसी जांच को आगे बढ़ाया जा रहा. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि अभियुक्त (Accused) की दो बार जांच की जा रही है. इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 20 के खंड (2) के दायरे में आने के लिए जांच को अभियोजन और सजा के बराबर नहीं रखा जा सकता है. इसलिए दोहरे जोखिम का सिद्धांत आगे की जांच पर लागू नहीं होगा.

4. सीआरपीसी में यह सुझाव देने के लिए कुछ भी नहीं है कि सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत आगे की जांच के लिए एक आवेदन पर विचार करते समय अदालत आरोपी को सुनने के लिए बाध्य है.

सीबीआई बनाम हेमेंद्र रेड्डी

CBI बनाम हेमेंद्र रेड्डी केस में सुप्रीम कोर्ट कहा कि यह जरुरी नहीं है कि सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत आगे की जांच करने से पहले क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार करने वाले आदेश पर पुनर्विचार किया जाए , उसे वापस लिया जाए या उसे रद्द कर दिया जाए. इस मामले में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत जांच एजेंसियों की शक्तियों के बारे में बताया है.

Madras HC ने किया था अभियोजन को रद्द

इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने कथित अपराधों के लिए आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ सीबीआई द्वारा शुरू किए गए पूरे अभियोजन को इस आधार पर रद्द कर दिया कि सीबीआई दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 173 की उप धारा (8) के तहत आगे की जांच नहीं कर सकती थी और सीआरपीसी की धारा 173 की उप धारा (2) के तहत एक बार पहले ही एक अंतिम रिपोर्ट (क्लोज़र रिपोर्ट) प्रस्तुत करने के बाद चार्जशीट दायर नहीं कर सकती थी.