CPC में क्या हैं Res Sub Judice और Res Judicata और इनके अनिवार्य तत्व कौन से हैं?
नई दिल्ली: किसी भी केस में जब अदालत कोई फैसला सुनाती है तो वह अक्सर ही कुछ सिद्धांतों और मिसालों का सहारा लेती है. हमारे देश में न्यायपालिका की यही कोशिश रहती है कि न्याय में देरी ना हो और अदालत का वक्त गैर जरूरी मामलों से बचाकर जरूरी मामलों को देना.
सिविल प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure - CPC) 1908 की धारा 10 और 11 में रेस सब-ज्यूडिस और रेस ज्यूडिकाटा के सिद्धांत का प्रावधान किया गया है. चलिए जानते हैं कि क्या है यह दोनों सिद्धांत और आर्बिट्रेशन में इसकी क्या प्रयोज्यता (applicability) होती है.
रेस सब-ज्यूडिस
“रेस सब-ज्यूडिस” का अर्थ “निर्णय के तहत” भी है. इसके बारे में CPC की धारा 10 में प्रावधान किया गया है जिसके अनुसार जब कोई पक्ष एक ही मुद्दे के बारे में दो या दो से अधिक मुकदमे दायर करता हैं तो सक्षम अदालत के पास अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत कार्रवाई की समानांतर प्रक्रिया को रोकने का अधिकार होता है. दोहराव और विरोधाभासी आदेशों को रोकने के लिए, यह सिद्धांत कार्यवाही को रोकने की अनुमति देता है.
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इस धारा के तहत यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि अगर कोई पक्षकार किसी दूसरे देश में उसी केस को दायर कर चुका है और वह भारत में भी केस दायर करता है तो अदालत उस मुकदमे की सुनवाई होने से रोक नहीं सकता है.
रेस सब-ज्यूडिस की अनिवार्यताएं
.सभी पक्षों का दो सिविल मुकदमों में भाग लेना चाहिए.
.दूसरा मुकदमा तब दायर किया जाना चाहिए जब अंतिम निर्णय के लिए उपयुक्त अदालत का फैसला अभी भी लंबित हो.
.दूसरा मुकदमा का मामला वही हो जो पहली बार में था.
.अदालत के पास मौजूदा कानूनी कार्यवाही को रोकने के लिए अंतर्निहित (Inherent) अधिकार होना चाहिए.
.सीपीसी की धारा 10 के उल्लंघन के लिए दिया गया निर्णय शून्य और शून्यकरणीय होगा.
.न्यायालय के पास अंतरिम आदेश जारी करने का अधिकार है.
रेस सब-ज्यूडिस सिद्धांत का लक्ष्य
.रेस सब-ज्यूडिस के सिद्धांत का लक्ष्य है अदालत का वक्त व्यर्थ के मुकदमों से बचाना ताकि जरूरी मामलों पर अदालत अपना वक्त दे सके.
.इसका अन्य लक्ष्य है वादी को एक ही प्रतिवादी के खिलाफ एक मुकदमा लाने में सक्षम बनाना है.
.समान दावे, समान मुद्दे और समान उपाय वाले दो समानांतर मुकदमों को एक ही समय में समवर्ती क्षेत्राधिकार (Concurrent Jurisdiction) वाले न्यायालयों द्वारा सुने जाने और निर्णय लेने से रोकता है.
.प्रतिवादियों को दो बार क्षतिपूर्ति (Restitution) या हर्जाना देने से बचाना.
पूर्व-न्याय (Res judicata)
“रेस ज्यूडिकाटा” एक लैटिन सिद्धांत है जिसका अर्थ है “विषय का निपटारा कर दिया गया है.” इसके बारे में सीपीसी की धारा 11 में बताया गया है. इस सिद्धांत के अनुसार जिस भी केस में पहले ही कोई फैसला कोई अदालत सुना चुका है उसी केस को दोबारा किसी दूसरे अदालत में दायर नहीं कर सकता है यानि जिस मामले पर किसी अदालत में पहले ही सुनवाई होकर फैसला सुना दिया गया है उसी मामले पर, उन्ही पक्षकारों द्वारा उसी बिंदु पर समान मांग के साथ अदालत में केस दायर नहीं किया जा सकता है अगर कोई ऐसा करता है तो अदालत के पास यह अधिकार होता है कि वह दोबारा दायर कराये गए वाद को खत्म कर सके.
रेस ज्यूडिकाटा के अनिवार्य तत्व
.दो मुकदमे दायर किए जाने चाहिए जिनमें से पहले वाले में अदालत का फैसला सुनाया जा चुका हो.
.घटना का चल रहे मुकदमे से स्पष्ट और महत्वपूर्ण संबंध होना चाहिए.
.मुकदमा दायर करने वाले सभी पक्ष वही होने चाहिए जो पहली बार में दायर किए गए मुकदमे में थे.
.दोनों मुकदमों के शीर्षक भी समान होने चाहिए.
रेस ज्यूडिकाटा सिद्धांत का लक्ष्य
.इस सिद्धांत की नींव न्याय, समानता और अच्छे विवेक की अवधारणाएं हैं. यह सभी सिविल और आपराधिक मामलों पर लागू होती हैं.
.इस सिद्धांत का प्राथमिक लक्ष्य पुनः मुकदमेबाजी को सीमित करना है.
.अदालत का वक्त और पैसा बर्बाद करने से बचाना.
. प्रतिवादी को नुकसान से सुरक्षा प्रदान करना भी इस सिद्धांत का लक्ष्य है.
.फैसले को समाप्त करके और किसी भी अन्य दावों को छोड़कर, यह औपचारिक रूप से समाप्त हो चुके मामले में पक्षों के बीच असहमति से बचाता है, यनि जिन मामलों में पहले ही सहमति हो चुकी है कानूनी रुप से उन मामलों में पक्षों के बीच असहमति होने से रोकता है.
.साथ ही यह सिद्धांत उस भ्रम से भी बचाता है जो एक मुकदमे में कई निर्णयों के परिणामस्वरूप हो सकता है.