संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत sale of property के संबंध में क्या है प्रावधान?
नई दिल्ली: संपत्ति के वैध हस्तांतरण के लिए संपत्ति की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए विभिन्न कानून पारित किए गए हैं, जहां तक संपत्ति अंतरण अधिनियम (Transfer of Property Act), 1882 की बात करें, तो यह मुख्य रूप से अचल और कुछ चल संपत्ति के हस्तांतरण से संबंधित कानून है. इस अधिनियम की धारा 54-57 में संपत्ति के विक्रय के बारे में बताया गया है.
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 54 के मुताबिक, संपत्ति के विक्रय (Sale of Property) से तात्पर्य है किसी अचल संपत्ति (Immovable Property) के स्वामित्व (Ownership) का अंतरण जिसके बदले में एक ऐसी कीमत जो दी जा चुकी हो या दी जानी है या जिसके दिए जाने का वचन किया गया हो या जिसका एक भाग दे दिया गया हो और शेष भाग को देने का वचन किया गया हो.
विक्रय कैसे होता है?
धारा 54 के तहत, एक सौ रुपये और ऊपर के मूल्य की मूर्त अचल संपत्ति के मामले में, या एक प्रत्यावर्तन (Reversion) या अन्य अमूर्त वस्तु के मामले में, केवल एक पंजीकृत लिखत (Registered Instrument) द्वारा ही विक्रय (Sale) किया जा सकता है.
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वहीं, एक सौ रुपये से कम मूल्य की संपत्ति के मामले में, इस तरह का हस्तांतरण या तो एक पंजीकृत लिखत द्वारा या संपत्ति की सुपुर्दगी (Delivery) द्वारा किया जा सकता है. अचल संपत्ति की सुपुर्दगी (Delivery) तब पूरी मानी जाएगी जब विक्रेता खरीदार को, या ऐसे व्यक्ति को, जिसे वह निर्देशित करता है, संपत्ति का कब्ज़ा (Possession) देता है.
अचल संपत्ति के विक्रय का अनुबंध
विक्रय का अनुबंध (Contract of Sale), एक संपत्ति को बेचने के संबंध में एक अनुबंध है, जिसके अनुसार संपत्ति का विक्रय (Sale), पक्षकारों के बीच निर्धारित शर्तों पर ही होगा. विक्रय का अनुबंध संपत्ति के संबंध में कोई अधिकार नहीं बनाता है, यह केवल एक अनुबंध है जो यह बताता है की भविष्य में संपत्ति की बिक्री कुछ शर्तों पर होगी.
विक्रय के आवश्यक तत्व
पक्षकार: एक विक्रय में एक विक्रेता और एक खरीदार होना अनिवार्य है. यह अनिवार्य है कि विक्रेता उस अचल संपत्ति को खरीदार को हस्तांतरित करने के लिए सक्षम है. यह भी अनिवार्य है कि दोनों पक्ष अर्थात विक्रेता और खरीदार, भारतीय अनुबंध अधिनियम के तहत वे एक अनुबंध में प्रवेश करने के लिए सक्षम हैं.
विक्रय (Sale) की विषय वस्तु एक अचल संपत्ति होनी चाहिए: संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 54 विशेष रूप से अचल संपत्ति के विक्रय (Sale) से संबंधित है, इसलिए यह जरूरी है कि विक्रय (Sale) की विषय वस्तु एक अचल संपत्ति हो. ऐसी अचल संपत्ति होनी चाहिए, जिसे पहचाना जा सकता हो यानि जिसको देखकर यह मालूम किया जा सके कि किस अचल संपत्ति का विक्रय होना है.
प्रतिफल (Consideration): विक्रय का तीसरा आवश्यक तत्व प्रतिफल यानि संपत्ति की कीमत है. अचल संपत्ति के विक्रय होने से पहले उस संपत्ति के मूल्य को निर्धारित करना आवश्यक है. कीमत की अनुपस्थिति में कोई भी संव्यवहार विक्रय नहीं हो सकता है. यहां कीमत का अर्थ केवल धन है ना कि कोई अन्य मूल्यवान वस्तु है. आपको बता दें कि यदि धन के बदले कोई अन्य वस्तु दी जाती है, तो वह विक्रय नहीं बल्कि विनिमय (Exchange) है.
कीमत का भुगतान या तो किया जा चुका हो या एक निश्चित तिथि पर भुगतान करने का वादा किया गया हो या कीमत का आंशिक भुगतान कर दिया गया हो और आंशिक रूप से भुगतान करने का वादा किया गया हो.
स्वामित्व का अंतरण: विक्रय (Sale) को पूरा करने के लिए उस संपत्ति के स्वामित्व का अंतरण होना अनिवार्य है. विक्रय में किसी हित का अंतरण न होकर स्वामित्व का अंतरण होता है. धारा 54 के अनुसार दो तरह से स्वामित्व का अंतरण किया जा सकता है- पहला, एक पंजीकृत लिखत (Registered Instrument) द्वारा पर दूसरा, अचल संपत्ति की सुपुर्दगी (Delivery) करके.
विक्रेता और खरीदार के अधिकार और कर्तव्य धारा 55 के अनुसार
विक्रेता के कर्तव्य:
1. संपत्ति में कोई खराबी या दोष होने पर खरीदार को सूचित करना.
2. यदि खरीदार संपत्ति से संबंधित दस्तावेजों के उत्पादन के लिए अनुरोध करता है, तो विक्रेता को उन्हें पेश करना होगा.
3. खरीदार द्वारा संपत्ति के संबंध में उठाए गए सभी उचित सवालों के जवाब देने होंगे.
4. यदि बिक्री के लिए अनुबंध किया जा चूका है, तो यह विक्रेता का कर्तव्य है कि वह बिक्री के निष्पादन की तिथि तक संपत्ति और शीर्षक विलेखों का उचित ध्यान रखे.
5. खरीदार को स्वामित्व हस्तांतरित करते समय विक्रेता को खरीदार को अलगाव का अधिकार देना चाहिए.
विक्रेता के अधिकार:
1. यदि कब्ज़ा खरीदार को सौंप दिया गया है, तो विक्रेता स्वामित्व के अंतरण तक संपत्ति से होने वाले किराए और मुनाफे का हकदार है.
2. अगर संपत्ति का स्वामित्व खरीदार को पूर्ण भुगतान के बिना दिया गया है, तो भुगतान किए जाने तक विक्रेता के पास संपत्ति पर शुल्क (Charge) होता है.
खरीदार के कर्तव्य:
1. यदि खरीदार किसी ऐसे तथ्य से परिचित है जो संपत्ति में विक्रेता के हित के मूल्य को बढ़ाता है, तो उसे विक्रेता को इसका खुलासा करना अनिवार्य है.
2. अनुबंध में निर्दिष्ट समय और तारीख पर सभी भुगतान करने के लिए खरीदार प्रतिबद्ध है.
3. खरीदार को स्वामित्व देने पर, उसे संपत्ति के विनाश या हानि, यदि कोई हो, का खर्च वहन करना होगा, बशर्ते कि नुकसान विक्रेता द्वारा नहीं किया गया हो.
4. संबंधित अधिकारियों को हाउस टैक्स जैसे सभी सार्वजनिक शुल्कों का भुगतान करना होगा.
खरीदार के अधिकार:
1. संपत्ति के स्वामित्व के पारित होने पर संपत्ति से संबंधित सभी अधिकार खरीदार के होंगे.
2. संपत्ति पर लगाए गए शुल्कों का भुगतान विक्रेता को करना होगा, जब तक कि विक्रय के अनुबंध के समय खरीदार द्वारा पहले अस्वीकार किया गया हो.
3. जहां संपत्ति का स्वामित्व खरीदार को हस्तांतरित कर दिया गया हो, संपत्ति के मूल्य में किसी भी सुधार, या वृद्धि के लाभ के लिए, और उसके किराए और मुनाफे का हक़दार है.
तो इस संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के अंतर्गत विक्रय (Sale) को अंजाम दिया जाता है. इस अधिनियम की धाराओं में बहुत ही विस्तृत रूप से और सरल भाषा में विक्रय (Sale) की पूरी प्रक्रिया को समझाया गया है.