सह-अपराधी को क्षमादान देने की क्या हैं निर्धारित शर्तें, जानें CrPC की इन धाराओं में
नई दिल्ली: सह-अपराधी (Accomplice) किसी न किसी तरह से अपराध करने में अपराधी का सहयोगी या भागीदार होता है, जिसे अदालत पुष्टि के बाद अपराधी के खिलाफ एक सक्षम गवाह मानती है. जब एक सह-अपराधी को अदालत द्वारा क्षमा दान दिया जाता है तो उसे एक अनुमोदक (Approver) के रूप में संदर्भित किया जा सकता है.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 133 में अनुमोदकों को एक सक्षम गवाह के रूप में शामिल किया गया है. एक सह-अपराधी को क्षमा, अपराध के निर्णय की घोषणा से पहले किसी भी समय पर दी जा सकती है.
एक सह-अपराधी को क्षमादान वह अवधारणा है जिससे किसी गंभीर अपराध के विषय में जानकारियां व साक्ष्य प्राप्त किये जा सकते हैं. अभियुक्त क्षमा योग्य है या नहीं यह अदालत कई न्यायिक पहलुओं को देख कर विचार करती है. आइए जानते हैं, किन धाराओं के तहत सह-अपराधी को क्षमादान का उल्लेख है और किन शर्तों के आधार पर क्षमा मिलती है.
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किन शर्तों के तहत मिल सकती है क्षमा
सह-अपराधी का दोष साबित न हुआ हो
ट्रायल (विचारण) शुरू किया जाना चाहिए
सह-अपराधी स्वीकृत होने के लिए सहमत होगा, अनुमोदक होने के लिए समझौता आवश्यक है
यदि अदालत क्षमा प्रदान करती है, तो अनुमोदक गवाह बन जाता है
उसे निर्णय से पहले रिहा नहीं किया जाएगा
यदि सह-अपराधी इन शर्तों का उल्लंघन करता है, तो उसे क्षमा दान नहीं मिलेगी.
CrPC के तहत सह अपराधी को क्षमादान
CrPC की धारा 306 और धारा 307 में सह-अपराधी को क्षमादान देने का उल्लेख किया गया है. इन दोनों धाराओं के तहत अनुमोदक बनने की योग्यता एक समान निर्धारित है और समान शर्तों के तहत निविदा की जा सकती है.
धारा 306: सह अपराधी को क्षमादान की निविदा
(1) इस धारा का उद्देश्य उस व्यक्ति का साक्ष्य प्राप्त करना है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपराध से संबंधित हो सकता है. इस धारा के तहत एक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट और प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट जैसे अधिकारियों को क्षमादान देने का अधिकार है.
(२) यह धारा तब लागू होती है, जब-
(ए) कोई अपराध जो आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 1952 (1952 का 46) के तहत विशेष रूप से सत्र न्यायालय या विशेष न्यायाधीश के न्यायालय द्वारा विचारणीय है;
(बी) कोई अपराध जो सात साल के कारावास या अधिक गंभीर सजा के साथ से दंडनीय हो सकता है
(3) प्रत्येक मजिस्ट्रेट जो उप-धारा (1) के तहत क्षमा प्रदान करता है, निम्नलिखित को रिकॉर्ड करेगा-
(ए) क्षमादान देने का कारण
(बी) जिस व्यक्ति के लिए यह किया गया था, क्या उसके द्वारा निविदा स्वीकार की गई थी या नहीं और अभियुक्त द्वारा किए गए आवेदन पर, उसे ऐसे रिकॉर्ड की एक प्रति निःशुल्क प्रदान करेगा
(4) उप-धारा (1) के तहत की गई क्षमा की निविदा को स्वीकार करने वाला प्रत्येक व्यक्ति को -
(ए) अपराध का संज्ञान लेने वाले मजिस्ट्रेट के अदालत में गवाह के रूप में परीक्षण के लिए पेश किया जाएगा
(बी) जब तक वह पहले से ही जमानत पर नहीं है, मुकदमे के निपटारे तक हिरासत में रखा जाएगा
(5) जहां एक व्यक्ति ने उप-धारा (1) के तहत की गई क्षमा की निविदा को स्वीकार कर लिया है और उप-धारा (4) के तहत अदालत द्वारा किसी अपराध का संज्ञान लेते हुए उसका गवाह के रूप में परीक्षण किया गया था, तो मामले में आगे जांच नहीं की जाएगी.
(ए) इसे परीक्षण के लिए प्रतिबद्ध करें-
(i) यदि अपराध विशेष रूप से सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है या यदि संज्ञान लेने वाला मजिस्ट्रेट, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट है;
(ii) यदि अपराध विशेष रूप से, आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 1952 (1952 का 46) के तहत नियुक्त विशेष न्यायाधीश के न्यायालय द्वारा विचारणीय है;
(बी) किसी अन्य मामले में, मामले को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को सौंपा जा सकता है जो मामले को स्वयं आजमाएंगे.
धारा 307: क्षमा की निविदा निर्देशित करने की शक्ति
इस धारा के तहत किसी मामले की प्रतिबद्धता के बाद किसी भी समय, लेकिन निर्णय पारित होने से पहले, जिस न्यायालय में मामला शुरू किया गया है, वह किसी भी ऐसे व्यक्ति जो किसी अपराध से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित हो या किसी अपराध में भागीदार हो, ऐसे व्यक्ति को साक्ष्य प्राप्त करने की दृष्टि से उसी शर्त पर क्षमा कर सकता है.
के. अनिल अग्रवाल बनाम केरल राज्य, के मामले में केरल उच्च न्यायालय ने कहा कि CrPC की धारा 164 के तहत दर्ज बयान क्षमा देने की शर्त नहीं हो सकता है और सत्र न्यायालय धारा 306(1) के तहत क्षमा प्रदान कर सकता है किन्तु, उन्हीं शर्तों पर जो धारा 306(1) में निर्देशित हैं.
अदालत मुख्य आरोपियों को दंडित करने के लिए अपराध में कम भागीदारी वाले व्यक्ति को केवल कुछ निर्दिष्ट अपराध के मामले में, क्षमा प्रदान कर सकती है. क्षमा प्राप्त करने में सक्षम होने के लिए अनुमोदक द्वारा अपराध की सचाई के साथ पूर्ण स्वीकारोक्ति होगी. सह अपराधी को अपराध के तथ्यों और परिस्थितियों का पूर्णत: सही और वैध प्रकटीकरण करना होगा. जिस सह-अपराधी पर अपराध पर अधिक आरोप हैं या पिछले रिकॉर्ड में जघन्य अपराधों के मामले दर्ज हैं तो उसे अदालत द्वारा क्षमा नहीं किया जा सकता है
धारा 306 और धारा 307 का अंतर
नारायण चेतनराम चौधरी बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 306, मामला शुरू होने के पहले के चरण में लागू होती है जबकि मामला शुरू होने के बाद वाले चरण में धारा 307 लागू होती है. अदालत ने आगे कहा कि धारा 306 के तहत माफी देने के लिए विचारणीय न्यायालय को धारा 306(1) की आवश्यकता का पालन करने की जरूरत है, लेकिन धारा 306(4) के साथ नहीं.
Note:- धारा 308 में 'क्षमादान की शर्तों का पालन न करने पर व्यक्ति का विचारण' का विवरण है.