किन परिस्थितियों में आपकी बोलने की आज़ादी पर लग सकता है प्रतिबंध?
नई दिल्ली: भारतीय संविधान के द्वारा देश के हर एक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई है जिसका कुछ लोग यह अर्थ निकालते हैं की उन्हें देश में कुछ भी बोलने की आज़ादी हैं. हालाँकि ये बात कुछ हद तक तो सही है, लेकिन ये पूरी तरह सत्य नहीं है. कुछ विशेष परिस्थियां भी हैं जहां अभिव्यक्ति की आज़ादी को छीना जा सकता है. ऐसे में आज हम आपको बताएंगें वो कौन सी परिस्थियां हैं जिनमें देश के किसी नागरिक से अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार छीना जा सकता है.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
देश की आज़ादी के संघर्ष के दौरान लोगो ने कुर्बानिया दी, कई सालों तक संघर्ष किया और यह संघर्ष उस दिन के लिए था जब भारत में किसी नागरिक को खाने-पीने से लेकर, रहने बोलने हर प्रकार की स्वतंत्रा प्राप्त होगी. देश आज़ाद हुआ तो नागरिकों को ये स्वतंत्रता भी मिल गई.
एक आज़ाद देश सही मायने में तभी आज़ाद है जब वहां लोगों को बोलने की स्वतंत्रता हो. भारत के संविधान का अनुच्छेद 19 (A ) देश के नागरिकों को बोलने की स्वतंत्रता प्रदान करता है. हालाँकि संविधान के अनुछेद 19 (2) में उन परिस्थितियों का भी जिक्र किया गया है जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सरकार छीन सकती है.
Also Read
- भारत के सर्वोच्च पदों पर आज हाशिये पर पड़े समुदायों का प्रतिनिधित्व: लंदन में बोले CJI गवई
- लोकतंत्र, मानवाधिकार और सेकुलरिज्म पर संकट... रिटायर जस्टिस श्रीकृष्ण और एडवोकेट प्रशांत भूषण ने और भी बहुत कुछ बतलाया
- 'संविधान के 75 साल हो चुके, अब तो पुलिस अभिव्यक्ति के अधिकार को समझे', इमरान प्रतापगढ़ी की FIR रद्द करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा
किन परिस्थतियों में छिन सकती है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत इन परिस्थितयों में किसी व्यक्ति से अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनी जा सकती है.
1- अगर भारत की अखंडता और संप्रभुता को खतरा हो तो अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनी जा सकती है.
2- अगर राज्य की सुरक्षा को खतरा हो तो उन परिस्थितियों में भी इसे छीना जा सकता है.
3- अगर किसी की बात से मित्र राष्ट्रों या विदेशी राज्यों से संबंध बिगड़ रहे है, या बिगड़ सकते है, तो भी अभिव्यक्ति की आज़ादी को छीना जा सकता है.
4-सार्वजनिक व्यवस्था के खराब होने का खतरा हो.
5- शिष्टाचार या सदाचार के हित खराब हों.
6- अदालत की अवमानना हो.
7- किसी की मानहानि हो.
8- अपराध को बढ़ावा मिलता हो.
केदारनाथ बनाम बिहार सरकार केस
साल 1950 में ऑर्गनाइज़र नामक मैगजीन पर प्रतिबंध लगा दिया गया. दिल्ली के कमिश्नर के आदेश के अनुसार कुछ भी छापने से पहले ऑर्गनाइज़र मैगज़ीन को उनसे अप्रूवल लेना जरूरी होगा. इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी. कोर्ट ने कहा की कमिश्नर का ये आदेश फ्री स्पीच के संवैधानिक आदर्श को प्रभावित करता है. क्योंकि किसी मैग्जीन पर प्री-सेंसरशिप उसकी स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाती है.
इसके बाद साल 1951 में सरकार एक संवैधानिक संशोधन लेकर आई. इसके तहत अब से 'सार्वजनिक व्यवस्था', 'विदेशों से संबंध खराब होने' या फिर 'हिंसा को बढ़ावा देने' वाली बात कहने या लिखने पर अभिव्यक्ति की आज़ादी को छीना जा सकता है.
इस संशोधन के आधार पर ही साल 1962 में सरकार ने केदारनाथ बनाम बिहार मामले में राजद्रोह को बरक़रार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह को इस आधार पर अपराध के रूप में बरकरार रखा कि ये अनुच्छेद 19(2) के तहत 'सार्वजनिक व्यवस्था' और 'राष्ट्रीय सुरक्षा' के तहत प्रतिबंधित है.