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क्या है भारतीय संविधान के Amendment की प्रक्रिया, पहला संशोधन कब और किस कारण हुआ था? जानिए

Constitution of India First Amendment and Procedure of Amendment

भारतीय संविधान में संशोधन किस तरह किया जा सकता है और इसमें पहला संशोधन कब और क्यों किया गया था, आइए जानते हैं...

Written By Ananya Srivastava | Published : July 30, 2023 10:23 AM IST

नई दिल्ली: भारत एक लोकतांत्रिक देश है जो भारतीय संविधान (The Constitution of India) के आधार पर चलता है। भारत के संविधान को देश का 'सर्वोच्च कानून' (Supreme Law of The Land) माना जाता है। संविधान में देश के तीन स्तंभों- विधायिका (Legislature), कार्यकारिणी (Executive) और न्यायपालिका (Judiciary) की शक्तियों और अधिकारों का उल्लेख है, देश के सभी नागरिकों के लिए उनके कर्तव्यों और अधिकारों का विवरण भी संविधान में किया गया है।

निरंतर आगे बढ़ते रहने के लिए संविधान में समय-समय पर बदलाव करना भी जरूरी है, और संविधान में किस तरह यह संशोधन (Amendment to the Indian Constitution) किए जाएंगे, इसकी जानकारी संविधान के अनुच्छेद 368 में दी गई है। भारत के संविधान में पहला संशोधन कब और क्यों हुआ था और एक संशोधन की प्रक्रिया क्या है, आइए विस्तार से समझते हैं.

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भारतीय संविधान में हुआ पहला संशोधन

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय संविधान को साल 1950 में लागू किया गया था और इसमें पहला संशोधन अगले ही वर्ष, 1951 में किया गया था। 'संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951' (The Constitution (First Amendment) Act, 1951) को संसद में 10 मई, 1950 के दिन इंट्रोड्यूस किया गया था और उसी साल 18 जून को इसे पारित कर दिया गया था।

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इस संशोधन से संविधान के अनुच्छेद 15, 19, 85, 87, 174, 176, 341, 342, 372 और 376 में बदलाव किए गए हैं; इस संशोधन अधिनियम में कुल 14 धाराएं हैं। संशोधन से आए प्रमुख बदलाव थे-

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  • अनुच्छेद 15 के तहत एक चौथा खंड ऐड किया गया जिसके तहत सरकार को यह अधिकार मिला कि वो किसी भी सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिकों, या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए खास प्रावधान बना सकेंगे। अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 29(2) के तहत राज्य को इन लोगों के लिए फायदे लाने से रोका नहीं जाएगा।
  • संविधान के अनुच्छेद 19 दूसरे खंड को संशोधित किया गया और अनुच्छेद 19(1)(a) में दिए गए 'भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार' (Right to Freedom of Speech and Expression) के इस्तेमाल पर कुछ प्रतिबंध लगाए गए। इस संशोधन के तहत इस अधिकार का इस्तेमाल तब तक किया जा सकता है जब तक वो देश की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ मैत्री, पब्लिक ऑर्डर, शिष्टता, या नैतिकता के खिलाफ न जा रहा हो या फिर इससे मानहानि, अदालत की अवमानना या किसी अपराध को उकसाने की भावना न उत्पन्न हो रही हो।

अनुच्छेद 19(6) में एक प्रतिस्थापन भी किया गया जिससे सरकार को अन्य संस्थाओं के साथ या उनके बहिष्कार के बिना व्यापार या व्यवसाय करने का अधिकार दिया गया।

  • संविधान की धारा 4 और 5 में अनुच्छेद 31A और 31B को शामिल किया गया जिनका उद्देश्य कृषि क्षेत्र में सामाजिक और आर्थिक असमानता को हटाना था।
  • इस संशोधन अधिनियम की धारा 6 में अनुच्छेद 85 को प्रतिस्थापित किया गया जिससे संसद सत्रों के विस्तार और विघटन से जुड़े प्रावधानों को शामिल किया जा सके। इस अनुच्छेद के तहत देश के राष्ट्रपति संसद के हर सदन को बुला (Summon) सकते हैं और दो सत्रों के बीच का अंतराल छह महीनों से ज्यादा नहीं होना चाहिए। साथ ही, राष्ट्रपति संसद के सदनों का विस्तार कर सकते हैं और लोक सभा को डिज़ाल्व कर सकते हैं।

इस अधिनियम की धारा 8 ने विधान सभा के सत्रों के विस्तार और विघटन से जुड़े प्रावधान को भी अनुच्छेद 174 के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है; यह बिल्कुल अनुच्छेद 85 जैसा है, बस इसमें राष्ट्रपति की जगह शक्तियां अलग-अलग राज्यों के राज्यपाल को मिली हुई हैं।

  • संविधान के अनुच्छेद 87 में मूलतः दो बदलाव किए गए हैं; पहला यह है कि राष्ट्रपति का विशेष सम्बोधन हर सत्र में नहीं बल्कि लोक सभा में जनरल इलेक्शन के बाद के पहले सत्र और साल के पहले सत्र की शुरुआत में होगा। इसके अलावा, दूसरे खंड से 'और सदन के अन्य कार्यों पर ऐसी चर्चा की प्राथमिकता के लिए'- इन शब्दों को हटा दिया गया।

पहले संशोधन अधिनियम की धारा 9 में राज्यों की विधान सभाओं के संबंध में अनुच्छेद 87 के समान परिवर्तन किये गये; संशोधित अनुच्छेद 176 में राज्यपाल द्वारा विशेष संबोधन का प्रावधान है।

  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अधिकारों से जुड़े अनुच्छेद 341 और 342 में भी संशोधन किए गए हैं; इसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति किसी भी राज्य के संबंध में जातियों, नस्लों या जनजातियों को निर्दिष्ट कर सकते हैं। इसके अलावा, यदि यह पहली अनुसूची के भाग ए या भाग बी में निर्दिष्ट राज्य है, तो राष्ट्रपति को राज्यपाल या राजप्रमुख से परामर्श करना होगा
  • अनुच्छेद 372 का खंड 3 मौजूदा कानूनों में कोई भी अनुकूलन या संशोधन करने की राष्ट्रपति की शक्ति को निर्दिष्ट करता है। पहले संशोधन अधिनियम की धारा 12 ने भारतीय संविधान के प्रारंभ से उस समयावधि को 2 वर्ष से 3 वर्ष तक बढ़ा दिया जिसके भीतर ऐसे संशोधन किए जा सकते थे।
  • किसी भी प्रांत के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र बनाने के लिए अनुच्छेद 376 में संशोधन किया गया था।
  • 1951 के प्रथम संशोधन अधिनियम के अंतिम खंड ने भारतीय संविधान में नौवीं अनुसूची जोड़ी। यह अनुसूची अनुच्छेद 31बी के साथ पढ़ी जाती है, और इसमें भूमि सुधार पर 13 क़ानून शामिल हैं। आगे के संशोधनों के साथ, अधिक अधिनियम जोड़े गए, और वर्तमान में नौवीं अनुसूची में 284 अधिनियम हैं।

संविधान के Amendment की प्रक्रिया

संविधान के अनुच्छेद 368 में इसे संशोधित करने की प्रक्रिया दी गई है; मूल रूप से संविधान में तीन तरह से संशोधन किया जा सकता है।

पहला तरीका 'साधारण बहुमत' (Simple Majority) का है। कुछ संवैधानिक प्रावधानों को संसद के दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है; इसके लिए संसद के किसी भी सदन में एक विधेयक पेश किया जाता है। इन्हें राज्यों के कहने पर या उनके परामर्श से शुरू किया जाता है।

बता दें कि साधारण बहुमत से अनुच्छेद 11, 73 और 169 और अनुसूची V और VI को संशोधित किया जा सकता है।

दूसरा तरीका 'संसद द्वारा विशेष बहुमत' (Special Majority by Parliament) है जिससे उन प्रावधानों को संशोधित किया जाता है जिनका संशोधन साधारण बहुमत से नहीं हो सकता है। इसके लिए इसके लिए संसद के किसी भी सदन में एक विधेयक पेश किया जाता है, संसद के प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्यता के बहुमत से और सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत से विधेयक पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत किया जाता है। विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद ही संशोधन प्रक्रिया पूरी की जाती है।

'कुल राज्यों में से आधे के अनुसमर्थन के साथ संसद का विशेष बहुमत' (Special Majority of Parliament with the Ratification by half of the Total States) संशोधन का तीसरा तरीका है। कुछ संवैधानिक प्रावधानों के मामले में दोनों सदनों के सदस्यों के वोट के साथ-साथ कम से कम आधे राज्यों की सहमति प्राप्त करना आवश्यक है। इसे अनुसमर्थन कहा जाता है, और यह विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किये जाने से पहले किया जाना होता है।

इस प्रक्रिया का इस्तेमाल करके संविधान के अनुच्छेद 54-55, 73, 162, 124 से 147, 214 से 231, 241, 245-255 और 368, सातवीं अनुसूची की लिस्ट I, II और III और चौथी अनुसूची को संशोधित किया जा सकता है।