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रिश्वत लेना अपराध है, पकड़े जाने पर कौन सी धारा लगती है- जानिये

रिश्वत लेना और देना दोनों ही अपराध है. कुछ लोग सरकारी लोक सेवक होने के नाते अपने पद का गलत फायदा उठाते हैं.

Written By My Lord Team | Published : March 23, 2023 1:08 PM IST

नई दिल्ली: टेबल के नीचे से पैसा लेना ये लाईन आपने कई बार सुनी होगी. यह कथन उनलोगों के लिए बोला जाता है जो अपने पद का गलत इस्तेमाल करते हुए अपनी सैलरी से ज्यादा पैसे गैरकानूनी तरह से कमाते हैं. लोगों से रिश्वत लेते हैं जो एक अपराध है और इसके लिए दोषी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention of Corruption Act) की धारा 7 के तहत सजा भी भुगतनी पड़ सकती है।

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 (Prevention Of Corruption Act) की धारा 7 में लोक सेवक द्वारा रिश्वत लेने पर अपराध को परिभाषित किया गया है. धारा 7के तहत अगर कोई लोक सेवक किसी भी तरह की कोई रिश्वत लेता है तो वह एक दंडनीय अपराध माना जाएगा. जिसके लिए दोषी को तीन साल की जेल हो सकती है इसकी अवधि सात साल भी बढ़ सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

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कौन दोषी नहीं होंगे

1.अगर कोई व्यक्ति किसी सरकारी पद पर नहीं है लेकिन लोगों को यह यकीन दिलाकर कि वो जल्द ही सरकारी लोक बन जाएगा तब वो उनका काम कर देगा. इस नाम पर लोगों से पैसे लेता है तो वह इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी नहीं माना जाएगा.

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2. इस धारा में परितोषण (Gratification) शब्द का संबंध केवल धन से है.

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3. वैध पारिश्रमिक (Legal remuneration) केवल लोक सेवक को दिए जाने वाले वेतन भत्ता तक ही सीमित नहीं है बल्कि एक लोक सेवक होने के नाते सरकार या संगठन की तरह से उसको मिलने वाले वो सभी पारिश्रमिक आ जाएंगे.

4.किसी लोक सेवक को अगर किसी अच्छे काम के लिए इनाम मिलता है तो वो भी उसके पद के अंतर्गत आएंगे ना कि रिश्वत की श्रेणी में.

5. वहीं अगर कोई लोक सेवक किसी व्यक्ति को ये गलत विश्वास दिलाता है कि सरकार ने उसे यह अधिकार या आदेश दिया है कि वह लोगों से पैसे या कोई भी पुरस्कार ले तो यह भी लोक सेवक द्वारा किया गया अपराध कहलाएगा.

आरोप से दोष मुक्त मामला - बी एन स्वामी बनाम स्टेट आफ कर्नाटक, 2015

इस मामले में जहां यह अभिकथन किया गया कि अभियुक्त ने विकास प्राधिकरण द्वारा परिवादी को आवंटित किये गये जगह के लिए विक्रय-विलेख जारी करने में शासकीय पक्ष को प्रदर्शित करने के लिए परिवादी से 1,000/- रुपये की मांग की थी, वहां चूंकि आरोप लगाने वाले पक्ष ने अपने अपने दिए गए बयान में इस बात का साफ तौर पर उल्लेख नहीं किया था कि उसने अभियुक्त को रिश्वत की रकम दी थी तथा उसने उसको एक हाथ से प्राप्त किया था. इसलिए अभियुक्त को रिश्वत के आरोप से बरी कर दिया गया क्योंकि आरोप लगाने वाले पक्ष अपना आरोप साबित नहीं कर पाएं.