भारतीय संविधान के Article 142 के तहत क्या हैं Supreme Court के विशेषाधिकार?
नई दिल्ली: भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यह देश मूलतः तीन स्तंभों पर खड़ा है जिनकी अपनी अलग-अलग शक्तियां और अधिकार हैं। यह तीनों स्तम्भ अपने काम और अधिकारों के मामले में एक दूसरे से स्वतंत्र हैं; इनमें तीसरा और बेहद अहम स्तम्भ न्यायपालिका (Judiciary) है जो इस बात का ध्यान रखती है कि देश में सभी को समय से न्याय मिल सके। न्यायपालिका के तहत अदालतें हैं जो देश में कई स्तरों पर स्थापित हैं और सर्वश्रेष्ठ अदालत, जिसका फैसला सर्वोपरि है, उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) है।
उच्चतम न्यायालय के अपने आप में ऐसे कई अधिकार हैं जो खास इसी अदालत को संविधान से मिले हैं; इस सर्वोच्च न्यायालय के कुछ विशेषाधिकार भी हैं जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 (Article 142 of The Constitution of India) में निहित हैं।
आइए जानते हैं कि क्या हैं ये विशेषाधिकार, उच्चतम न्यायालय इन्हें कब और क्यों इस्तेमाल कर सकता है और वो कौन से बड़े मामले हैं जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने अपनी इस शक्ति का प्रयोग किया है.
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क्या कहता है अनुच्छेद 142
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142- 'सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों और आदेशों का प्रवर्तन और जब तक कि खोज आदि न हो' (Enforcement of decrees and orders of Supreme Court and unless as to discovery, etc), इसको लेकर है। आम भाषा में कहें तो ये अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट के 'सम्पूर्ण न्याय'(Complete Justice) के विशेषाधिकार का उल्लेख करता है।
इस अनुच्छेद का पहला बिंदु यह कहता है कि उच्चतम न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुआ एक ऐसी डिक्री (Decree) पारित कर सकता है या आदेश दे सकता है जिससे किसी मुद्दे पर या लंबित मामले में 'सम्पूर्ण न्याय' दिया जा सके। उच्चतम न्यायालय का यह आदेश पूरे देश में उस तरह लागू किया जाएगा जैसे संसद द्वारा पारित कोई कानून या प्रावधान लागू किया जाता है।
अनुच्छेद के दूसरे बिंदु के अनुसार संसद द्वारा इस संबंध में बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन, सर्वोच्च न्यायालय के पास, भारत के पूरे क्षेत्र के संबंध में, किसी भी व्यक्ति की उपस्थिति सुनिश्चित करने, किसी दस्तावेज़ की खोज या उत्पादन, या स्वयं की किसी अवमानना की जांच या सजा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कोई भी आदेश देने की पूरी शक्ति होगी।
Article 142 सुप्रीम कोर्ट के लिए किस तरह है एक विशेषाधिकार
समझते हैं कि अनुच्छेद 142 किस तरह उच्चतम न्यायालय के लिए एक विशेषाधिकार है। 'कम्प्लीट जस्टिस' का यह अनुच्छेद सर्वोच्च न्यायालय उन मुद्दों पर या उन मामलों में न्याय देने का अधिकार प्रदान कर है जहां वैधानिक विधान (Statutory Legislations) नहीं पहुंच पाते हैं। इस तरह उच्चतम न्यायालय उन लोगों को भी न्याय दे पाता है, जिन्हें सालों की कार्यवाही के बाद भी अपनी परेशानियों का समाधान नहीं मिल पा रहा है।
'कम्प्लीट जस्टिस' का प्रावधान सुप्रीम कोर्ट के लिए इसलिए भी एक विशेषाधिकार है क्योंकि इस अनुच्छेद के तहत सर्वोच्च न्यायालय जो आदेश पारित करता है, उसको विधायिका (Legislature) रद्द नहीं कर सकती है। संविधान के अनुच्छेद 144 (Article 144 of The Constitution of India) के तहत अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए पारित सुप्रीम कोर्ट के आदेश के प्रभाव को विधायिका रद्द नहीं कर सकती है, इसपर प्रतिबंध लगा है।
अनुच्छेद 142 के तहत जारी निर्देशों को व्यापक रूप से राहत के साथ-साथ कानून की घोषणा के रूप में भी समझा जा सकता है। इस आदेश या डिक्री को अगर रद्द करने की कोशिश की जाएगी, तो अनुच्छेद 142(8) के तहत इसे अमान्य समझा जाएगा।
अनुच्छेद 136 बनाम अनुच्छेद 142
संविधान का अनुच्छेद 136 भी सर्वोच्च न्यायालय को विवेकाधीन शक्तियां (Discretionary Powers) देता है जिसमें वो स्पेशल लीव पिटिशन्स (Special Leave Petitions) को अनुमति दे सकते हैं लेकिन यह अधिकार सिर्फ न्यायिक फैसलों के लिए है। वहीं अनुच्छे 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट किसी भी विषय या मुद्दे पर फैसला ले सकते हैं या आदेश पारित कर सकते हैं।
अनुच्छेद 141 बनाम अनुच्छेद 142
जिस तरह अनुच्छेद 136 सुप्रीम कोर्ट को कुछ विवेकाधीन शक्तियां प्रदान करता है, उसी तरह भारतीय संविधान का अनुच्छेद 141 भी सुप्रीम कोर्ट को विशेषाधिकार देता है। अनुच्छेद 141 के तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किया गया आदेश या उनका फैसला देश की सभी अदालतों-न्यायालयों पर बाध्यकारी है। वहीं अगर उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 142 के तहत कोई आदेश देता है तो वो सिर्फ न्यायालयों में नहीं बल्कि एक कानून की तरह पूरे देश में लागू किया जाएगा।
जब उच्चतम न्यायालय ने किया इस विशेषाधिकार का इस्तेमाल
- बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने एक जजमेंट दिया था जिसे उच्चतम न्यायालय ने अपहोल्ड किया था; यह जजमेंट 'उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2020' (Consumer Protection Act 2019) की धारा 101 के तहत 'उपभोक्ता संरक्षण नियम, 2020' के प्रावधान को रद्द करता है। इन प्रावधानों में स्पष्ट किया गया था कि राज्य उपभोक्ता आयोगों और जिला मंचों में सदस्यों के निर्णय के लिए क्रमशः 20 वर्ष और 15 वर्ष का न्यूनतम पेशेवर अनुभव जरूरी है।
उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 142 के तहत यह आदेश दिया था कि राज्य उपभोक्ता आयोगों और जिला मंचों के लिए सदस्य और अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति के लिए वकीलों और पेशेवरों को केवल दस साल का अनुभव चाहिए है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल तब भी किया था जब अगर स्थित ताज महल को साफ करवाने (Taj Mahal Cleaning) की बात की। इस खूबसूरत इमारत का मार्बल आस-पास की इंडस्ट्रीज से निकालने वाली सल्फर फ्लेम्स से पीला पड़ रहा था और इसकी सफाई हेतु उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 142 के तहत आदेश दिया था।
- 'अयोध्या विवाद' (Ayodhya Dispute) में भी सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 के तहत दिए गए विशेषाधिकारों का इस्तेमाल किया था, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया था और जमीन का बंटवारा न करके पूरा 2.77 एकड़ हिंदुओं को हैंड ओवर कर दिया था। फिर अदालत को लगा कि यह सही जजमेंट नहीं है और ऐसे में उन्होंने केंद्र सरकार को केंद्र सरकार द्वारा अधिग्रहित किए जा रहे क्षेत्र के दायरे में वैकल्पिक स्थान पर पांच एकड़ जमीन देने का निर्देश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर अनुच्छेद 142 के आधार पर केंद्र सरकार को फिर से निर्मोही अखाड़े को एक निकाय में शामिल करने का निर्देश दिया जो भूमि के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होगा। यह फैसला राहत देने और उन्हें उस ट्रस्ट में शामिल करने के लिए किया गया था जो केंद्र द्वारा अयोध्या अधिनियम की धारा 6 के तहत गठित किया गया था।
- 'यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन बनाम भारत संघ' (Union Carbide Corporation v. Union of India) मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया था। यह तब था जब अदालत को भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) से प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने के लिए समसामयिक कानून से हटने की जरूरत महसूस हुई। अदालत ने पीड़ितों को मुआवजा देने का आदेश दिया और खुद को संसदीय कानूनों से ऊपर की स्थिति में रखा।