बाल विवाह पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने को सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया गाइडलाइन, PCMA कानून की खामियां दूर करने को लेकर केन्द्र को भी दिए सुझाव
बाल विवाह कानून को पर्सनल लॉ से दूर रखने से जु़ड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कल फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि बाल विवाह निषेध कानून हर धर्म पर लागू होगा, किसी तरह का पर्सनल लॉ इसे प्रभावित नहीं कर सकेगा. फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह से किसी व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों के हनन होने की बात कही. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बचपन में शादी कर दिए जाने से बच्चे का पसंद का साथी चुनने का विकल्प छीन जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह रोकथाम कानून को प्रभावी बनाने के लिए संसद को निर्देश दिए तो साथ बाल विवाह पर रोक लगाने को दिशानिर्देश भी जारी किए हैं.
बचपन में शादी तय करने की प्रथा घोषित करें गैरकानूनी
सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने बाल विवाह रोकथाम अधिनियम (PCMA) कानून से जुड़ी याचिका पर अपना फैसला सुनाया है. PCMA के तहत बाल विवाह के निषेध और पर्सनल लॉ में विसंगति को लेकर सुनवाई के दौरान कुछ भ्रम रहा है, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि PCMA को पर्सनल लॉ पर प्राथमिकता दी जाए.
कोर्ट को दी गई जानकारी के मुताबिक बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक 2021 को 21 दिसंबर 2021 को संसद में पेश किया गया था. विधेयक को शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल संबंधी विभाग संबंधी स्थायी समिति को जांच के लिए भेजा गया था. विधेयक में PCMA में ऐसे संशोधन करने की मांग की गई थी जिससे पर्सनल लॉ से टकराव की स्थिति में PCMA को वरीयता दी जाए. यह मुद्दा संसद के समक्ष विचाराधीन है.
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कोर्ट ने आगे कहा कि PCMA बाल विवाह को तो प्रतिबंधित करने की कोशिश करता है, लेकिन यह बचपन में ही शादी तय करने की प्रथा को रोकने का कोई प्रावधान नहीं करता है. PCMA के तहत दंड से बचने के लिए बचपन में ही शादी तय करने का चलन भी देखा जाता है. इन तरीकों से बच्चों के अधिकारों का हनन होता है. यह उन्हें बालिग होने के बाद जीवन साथी चुनने के विकल्प से वंचित करता है. नाबालिगों की सगाई के खिलाफ CEDAW जैसे अंतर्राष्ट्रीय कानून मौजूद हैं. संसद बचपन में ही शादी तय करने को गैरकानूनी घोषित करने पर विचार कर सकती है.
बाल विवाह के खिलाफ SC का गाइडलाइन
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल दंड से बाल विवाह को नहीं रोका जा सकता. इसके लिए व्यापक जागरूकता कार्यक्रम और पीड़ितों के पुनर्वास पर ध्यान देने की ज़रूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए व्यापक दिशा निर्देश जारी किए हैं...
- राज्य सरकार निगरानी के लिए ज़िला स्तर पर Child Marriage Prohibition Officer नियुक्त करे
- CMPO के साथ साथ कलेक्टर और SP की भी जिम्मेदारी हो
- पुलिस की स्पेशल यूनिट बनाई जाए
- बाल विवाह निषेध के लिए विशेष यूनिट स्थापित हो
- मजिस्ट्रेट को स्वत संज्ञान लेकर कार्रवाई करने के लिए अधिकार दिए जाए
- बाल विवाह मामलों के लिए स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित किए जाएं
- लापरवाह सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो
- सामुदायिक प्रयासों को बढ़ावा दिया जाए
- स्कूलों, धर्म स्थलों और पंचायत स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएं
- जिन समुदायों में बाल विवाह प्रथा है उनके लिए खास जागरूकता कार्यक्रम हो
कोर्ट ने सभी राज्यों को गाइडलाइंस लागू करने का निर्देश दिया है.