दुष्कर्म से पीड़ित महिला की पहचान का खुलासा करने पर मिलेगी सज़ा, जानिए IPC की यह धारा
नई दिल्ली: एक सभ्य समाज में महिला के साथ दुष्कर्म अक्षम्य अपराध है क्योंकि पीड़ित महिला की स्थिति मृतप्राय हो जाती है अतः उसको सामाजिक उत्पीड़न या बहिष्कार से बचाने हेतु भारतीय दंड संहिता में धारा 228-ए को आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 1983 द्वारा शामिल किया गया.
इस कानून में संशोधन का एक मात्र उद्देश्य था कि पीड़िताओं की पहचान का खुलासा करने पर रोक लगाई जा सके और अपराध के बाद पीड़िता को सामाजिक उत्पीड़न या बहिष्कार से बचाया जा सके. आइए जानते हैं IPC की धारा 228-A के अंतर्गत क्या है अपराध.
IPC की धारा 228-ए की पहली उप-धारा कहती है कि यदि कोई व्यक्ति धारा 376, 376-A, 376-B, 376-C और 376-C यानि दुष्कर्म से जुड़े अपराधों के तहत पीड़ित के नाम या किसी भी ऐसी सूचना जिससे पीड़ित की पहचान का पता लगाया जा सके उसको प्रिंट या प्रकाशित करता है, तो उसे इस धारा के तहत दंडित किया जाएगा. दोषी पाए जाने पर उस व्यक्ति को दो साल के कारावास और जुर्माने की सज़ा हो सकती है.
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वहीं, तीसरी उप-धारा के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति संबंधित अदालत की पूर्व अनुमति प्राप्त किए बिना पहली उप-धारा में कही गई बातों के संबंध में किसी भी अदालती कार्यवाही से संबंधित किसी भी मामले को प्रिंट या प्रकाशित करता है, उसे दंडित किया जाएगा. दोषी पाए जाने पर व्यक्ति को दो साल के कारावास और जुर्माने की सज़ा हो सकती है.
हालांकि, इस तीसरी उप-धारा से जुड़े स्पष्टीकरण के अनुसार, किसी भी उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का प्रकाशन इस धारा के तहत अपराध नहीं है.
किन परिस्थितियों में प्रकाशन की अनुमति है?
दूसरी उप-धारा के तहत, तीन परिस्थितियों में प्रकाशन की अनुमति है और वो इस प्रकार हैं:
· यदि इस तरह का प्रकाशन पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी या पुलिस के लिखित आदेशों के तहत या पुलिस द्वारा जांच के उद्देश्य के लिए नेकनीयती (Good Faith) से काम करते हुए किया गया हो; या
· पीड़िता से लिखित में अनुमति लेने के बाद नाम प्रकाशित किया गया है, या
· यदि पीड़िता की मृत्यु हो गई है या वह अवयस्क है या मानसिक रूप से अस्वस्थ है तो पीड़िता के निकटतम संबंधी के लिखित अनुमति द्वारा नाम प्रकाशित किया गया है, बशर्ते कि निकट-परिजन
कोई भी मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन के अध्यक्ष या सचिव के अलावा किसी भी अन्य व्यक्ति को ऐसी अनुमति नहीं देगा। इस धारा के तहत न्यायलय को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और पीड़िता की पहचान के खुलासे से बचे.
उड़ीसा राज्य बनाम सुकरू गौड़ा मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई न्यायालय, महिलाओं के खिलाफ किए अपराधों के मामलों में पीड़िता के नाम के खुलासे पर लगे प्रतिबंध का पालन नहीं करता है तो वह न्यायिक अनुशासनहीनता के दायरे में आएगा और जज के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी.
अपराध की श्रेणी
भारतीय दंड संहिता की धारा 228-ए के अंतर्गत अपराध, जमानती और संज्ञेय - अपराधी को बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तार किया जा सकता है-है तथा इस अपराध में समझौता नहीं किया जा सकता.
यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि पीड़िता जो पहले से ही शारीरिक और मानसिक यातना के आघात से गुजर रही है, उसे और असहज स्थितियों का सामना ना करना पड़े। हालाँकि, यह क़ानूनी तरीके से सुनिश्चित हो कि दुष्कर्म से पीड़ित महिलाओं को सम्मान मिले और उन्हें सामाजिक उत्पीड़न या बहिष्कार का सामना न करना पड़े.