देर रात पार्टी के लिए प्रशासन से लेनी होगी अनुमति, अन्यथा तैयार रहें कानून के तहत कड़ी कार्रवाई हेतु
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में गौतमबुद्ध नगर स्थित एक फार्म हाउस में बिना अनुमति देर रात्रि तक पार्टी आयोजित करने को लेकर एक मुकदमा दर्ज किया गया है। यह कार्यवाही 26 जून को सोशल मीडिया पर एक वीडियो प्रसारित हुआ, जिसमें एक अफ्रीकी मूल की महिला स्विमिंग पूल के किनारे म्यूजिक पर नृत्य करती दिख रही है और वहां काफी तेज संगीत बज रहा है। पुलिस का कहना है कि ट्वीट में दिए गए मोबाइल नंबर पर जब बात की तो पता चला कि यह पार्टी सेक्टर-135 के ड्रीमलैंड फार्म हाउस’ में आयोजित की गई थी।
पुलिस के अनुसार, फार्म हाउस के मालिक मुनेन्द्र चौहान उर्फ मिंटू ने यह पार्टी 25 जून की रात को आयोजित की थी, लेकिन इसके लिए प्रशासन से आवश्यक अनुमति नहीं ली गई थी। इस मामले का संज्ञान लेते हुए पुलिस ने कड़ी कार्रवाई करते हुए मिंटू के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC 1860) की धारा 188, 268 और 291 के तहत मुकदमा दर्ज कर घटना की जांच शुरू कर दी है।
आइये जानते है इन धाराओं के बिषय में क्या है कानूनी प्रावधान। आपको बता दे कि आईपीसी की धारा 188 में लोक सेवक द्वारा विधिवत रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा से संबंधी प्रावधान का उल्लेख है.
Also Read
भारतीय दंड संहिता की धारा 188
इस धारा में कहा गया है कि जो कोई यह जानते हुए कि, लोक सेवक द्वारा प्रख्यापित ( promulgated) आदेश द्वारा, ऐसे आदेश को प्रख्यापित करने के लिए कानूनी रूप से सशक्त है, उसे एक निश्चित कार्य से दूर रहने, या कुछ संपत्ति के साथ कुछ आदेश लेने का निर्देश दिया जाता है। उसके कब्जे में या उसके प्रबंधन के तहत, ऐसे निर्देश की अवज्ञा करता है, यदि ऐसी अवज्ञा के कारण कानूनी रूप से नियोजित किसी भी व्यक्ति को बाधा, झुंझलाहट या चोट, या बाधा, झुंझलाहट या चोट का खतरा होता है, तो उसे साधारण कारावास से दंडित किया जाएगा।
अवधि जो एक महीने तक बढ़ सकती है या जुर्माना जो दो सौ रुपये तक बढ़ सकता है, या दोनों से; और यदि ऐसी अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा करती है या इसकी प्रवृत्ति पैदा करती है, या दंगा या झगड़े का कारण बनती है या इसकी प्रवृत्ति होती है, छह महीने तक की कैद या एक हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।
क्या है धारा 268
IPC की इस धारा के अनुसार, लोक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाले विभिन्न अपराधों के अंतर्गत लोक न्यूसेंस को सर्वप्रथम स्थान दिया गया है। लोक न्यूसेंस का अर्थ है अपने कार्य द्वारा सार्वजनिक रूप से किसी को हानि पहुंचाना या बाधा उत्पन्न करना।
न्यूसेंस एक ऐसा कृत्य है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के संपत्ति के उपभोग में अथवा सामान्य अधिकारों के प्रयोग में बाधा उत्पन्न करता है।न्यूसेंस को हिंदी में लोक अपदूषण भी कहा जाता है ।जब कोई व्यक्ति लोक न्यूसेंस का दोषी होता है तब किसी कार्य अवैध लोप का दोषी होता है जिससे कोई सामान्य क्षति, संकट पैदा हो।
जनता को इस प्रकार का संकट पैदा होता है उन सामान्य लोगों को जो निकट रहते हैं या आसपास की संपत्ति पर अधिकार रखते हैं। इस प्रकार का न्यूसेंस उन लोगों को क्षति कारित करता है जिससे उन लोगों को क्षति संकट पहुंचाना अवश्यंभावी है जिन्हें सार्वजनिक अधिकार का उपयोग करने का अवसर प्राप्त हो।
सार्वजनिक उपद्रव को रोकने की शक्ति CrPC की धारा 143 में
एक जिला मजिस्ट्रेट या उप-मंडल मजिस्ट्रेट, या राज्य सरकार या इस संबंध में जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सशक्त कोई अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट, किसी भी व्यक्ति को आईपीसी में परिभाषित सार्वजनिक उपद्रव को दोहराने या जारी रखने का आदेश नहीं दे सकता है।
इसके अलावा, ऐसी शक्ति भी अदालत में निहित है जो कुछ उपद्रव को रोकने के लिए एक आदेश पारित कर सकती है जो सार्वजनिक उपद्रव का कारण बनती है और उक्त उपद्रव के उपचार के लिए कोई मुआवजा देने का आदेश भी दे सकता है।
धारा 291
इस धारा के तहत जो कोई किसी लोक सेवक द्वारा, जिसको किसी न्यूसेन्स की पुनरावॄत्ति न करने या उसे चालू न रखने के लिए व्यादेश (Injunction) प्रचालित करने का प्राधिकार हो, ऐसे व्यादिष्ट किए जाने पर, किसी लोक न्यूसेन्स की पुनरावॄत्ति करेगा, या उसे चालू रखेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।