सीसीएस पेंशन नियमों के तहत आने वाली 'ओल्ड पेंशन स्कीम' में आवेदन का एक और मौका, पूरी करनी होंगी ये शर्तें
अनन्या श्रीवास्तव
हमारे बड़े-बूढ़े जिन्होंने अपनी उम्र का बड़ा हिस्सा नौकरी करने में गुजर दी है उनके आर्थिक सुरक्षा और सहारे के लिए सरकार की पेंशन योजना है- नेशनल पेंशन सिस्टम’, जिसके तहत हर नागरिक पेंशन अकाउंट खोल सकता है। पहले एक और पेंशन स्कीम थी जो अब बंद हो चुकी है और वो ओल्ड पेंशन स्कीम’ है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सरकार इस स्कीम में आवेदन का एक गोल्डन चांस’ दे रही है। इस स्कीम में कौन आवेदन कर सकता है, इसकी आख़िरी तारीख़ क्या है और ये नई पेंशन स्कीम से कैसे अलग है, आइए सबकुछ जानते हैं…
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'ओल्ड पेंशन स्कीम' के लिए आवेदन का मौका
जैसा कि हमने आपको अभी बताया, सरकार कुछ चुनिंदा सरकारी कर्मचारियों को 'ओल्ड पेंशन स्कीम' में आवेदन करने का एक 'सुनहरा मौका' दे रही है। यह मौका देश के उन सरकारी कर्मचारियों को मिल रहा है जो 22 दिसंबर, 2003 से पहले किसी पोस्ट या वेकेंसी पर नियुक्त किया गया था। यह मौका आर्म्ड फोर्सेज के लिए नहीं है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये एक वन-टाइम मौका है जो दोबारा नहीं मिलेगा। इस स्कीम के आवेदन के लिए आपकी आखिरी तारीख 31 अगस्त, 2023 है। आप अगर इस आवेदन के लिए योग्य हैं और आप आवेदन करते हैं, तो आप वापस नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) पर वापस नहीं जा सकेंगे।
क्या है 'ओल्ड पेंशन स्कीम'?
बता दें कि 'ओल्ड पेंशन स्कीम' को 2004 में, एनडीए सरकार ने बंद कर दिया था; यह केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियमावली, 1972 (Central Civil Services Pension Rules, 1972) के तहत आती थी। इस स्कीम के तहत सभी सरकारी कर्मचारियों को अपनी आखिरी सैलरी का 50% अमाउंट पेंशन के तौर पर मिलता था।
साल में दो बार डियरनेस रिलीफ (DR) के रिविजन का फायदा मिलता था और इतना ही नहीं, इस स्कीम के तहत देश के सभी सरकारी कर्मचारियों को जनरल प्रॉविडेंट फंड (GPF) भी मिलता था। इसमें वो अपनी सैलरी का एक निर्धारित पर्सेंटेज जीपीएफ में जमा कर सकते थे और एम्प्लॉयमेंट टर्म के अंत में उन्हें वो पैसा मिल जाता था। पेंशन पर होने वाला खर्चा खुद सरकार वहन करती थी।
OPS और NPS में अंतर
ओपीएस के मुकाबले एनपीएस टैक्स पेमेंट के मामले में कम फायदेमंद है। जहां ओपीएस में आखिरी सैलरी का 50% अमाउंट पेंशन के तौर पर मिलता है वहीं एनपीएस के तहत कर्मचारी को हर महीने अपनी बेसिक सैलरी, डियरनेस पे और डियरनेस अलाउएंस का 10% देना होता है जो उनके सैलरी बिल से कट जाता है।
उतना ही पैसा सरकार द्वारा भी दिया जाता है और दोनों का योगदान एक नॉन-रिनूएबल अकाउंट में रखा जाता है जिससे 40 प्रतिशत को रिटायरमेंट के बाद निकाला नहीं जाता, उसे हर महीने पेंशन की तरह इस्तेमाल किया जाता है। उसी 40% पर टैक्स कटता है।