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Mohori Bibi Vs Dharmodas Ghose: क्या कोई Minor संविदा कर सकता है? आइए जानते है

Contract with Minor

हालांकि एक नाबालिग द्वारा किया गया करार, शून्य (Void) अवश्य है, लेकिन ऐसा करार अवैध (Illegal) नहीं है, क्योंकि इसको लेकर कोई कानूनी प्रावधान मौजूद नहीं है।

Written By My Lord Team | Published : July 18, 2023 10:16 AM IST

नई दिल्ली: क्या आपको मालुम है कि एक नाबालिग/अवयस्क (18 वर्ष की आयु से कम) द्वारा किये गए करार (agreement) कानूनी रूप से वैध संविदा नहीं माने जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 11 के अनुसार, एक नाबालिग/अवयस्क, करार करते वक़्त अपने हित में उचित फैसला लेने में सक्षम नहीं होता है, और उसकी अयोग्यता का किसी अन्य व्यक्ति द्वारा फायदा उठाया जा सकता है, जिससे ऐसे नाबालिग को नुकसान हो सकता है।

हालांकि एक नाबालिग द्वारा किया गया करार, शून्य (Void) अवश्य है, लेकिन ऐसा करार अवैध (Illegal) नहीं है, क्योंकि इसको लेकर कोई कानूनी प्रावधान मौजूद नहीं है। आइये समझतें इसको विस्तार से.

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नाबालिग द्वारा किया गया करार शून्य (Void)

जब हम Indian Contract Act 1872 की धारा 10 एवं धारा 11 को एक साथ देखते है तो हमें यह मालूम होता है कि इन धाराओं में कहीं भी यह नहीं लिखा गया है कि यदि एक नाबालिग के द्वारा एक करार किया जाता है तो वह उसके विकल्प पर शून्यकरणीय करार (Voidable Agreement) होगा या पूर्ण रूप से शून्य करार (Void Agreement) होगा।

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जबकि मोहिरी बीबी बनाम धर्मोदास घोष 1903 के निर्णय में प्रिवी काउंसिल ने यह माना कि एक नाबालिग का करार शुरुआत से ही शून्य (Void ab Initio) है । इस निर्णय ने यह साफ़ कर दिया  कि कानून की नजर में ऐसे करार का कोई मूल्य नहीं है।

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 क्या था मोहरी बीबी बनाम धर्मोदास घोष (1903) का मामला

प्रतिपक्ष (Respondent) जो कि एक अवयस्क था, उसने कलकत्ता के एक ऋणदाता (Lender) ब्रह्मोदत्त से यह कह कर ऋण प्राप्त किया कि वह वयस्क (Major ) है तथा ऋण प्राप्त करने के लिए उसके पक्ष में एक बन्धक-विलेख (Mortgage Deed) लिख दिया था।

जिस समय बन्धक के ऊपर अग्रिम धन देने के बारे में विचार किया जा रहा था, उभी समय ब्रह्मोदत्त के एजेन्ट केदारनाथ को यह सूचना मिली थी कि प्रतिपक्ष अवयस्क है; अत: वह विलेख को निष्पादित (Execute ) नहीं कर सकता। परन्तु फिर भी उसने धर्मोदास घोष से बन्धक विलेख निष्पादित करा लिया। और उसके बाद अवयस्क ने अपनी माता (अभिभावक) द्वारा ब्रह्मोदत्त के विरुद्ध एक वाद किया जिसमें न्यायालय से प्रार्थना की कि बन्धक-विलेख को रद्द किया जाय, क्योंकि जिस समय यह बंधक विलेख निष्पादित किया गया था, वह एक अवयस्क था।

न्यायालय के न्यायाधीश जेनकींस ने प्रतिपक्ष की उक्त याचना को स्वीकार करते हुए बन्धक-विलेख को रद्द कर दिया। इस आदेश के विरुद्ध अपील को भी उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया; अत: अपीलार्थी ने प्रिवी कौंसिल में अपील की। इस अपील को करने के समय ब्रह्मोदत्त की मृत्यु को चुकी थी, अत: उसकी उत्तराधिकारिणी मोहरी बीबी ने उसका स्थान ग्रहण कर लिया था।

मोहरी बीबी की ओर से तर्क –

मोहरी बीबी ने कहा कि बंधक विलेख को रद्द करते समय न्यायालय को अवयस्क को बाध्य करना चाहिए था कि उसने उस विलेख के तहत जो धन (10,500 रु० ) प्राप्त किये हैं, वह उसे लौटाये। इस तर्क के पक्ष में उन्होंने विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1877 (Specific Relief Act, 1877) का हवाला दिया जिसके अन्तर्गत न्यायालय को ऐसा आदेश पारित करने की शक्ति है।

उन्होंने दूसरा तर्क यह दिया कि संविदा अधिनियम की धारा 64 तथा 65 के अन्तर्गत प्रत्यर्थी को रद्द किये गये विलेख के अधीन प्राप्त किये गये धन को वापस लौटाने को बाध्य किया जा सकता है। साथ ही साथ विबन्ध (Estoppel) के सिद्धान्त के अनुसार, अवयस्क को जिसने कि अपने को अवयस्क कहा था, अब यह अनुमति नहीं दी जा सकती है कि वह यह तर्क करे कि संविदा करते समय वह अवयस्क था। और उन्होंने अपना अंतिम तर्क यह दिया कि अवयस्क द्वारा की गयी संविदा शून्यकरणीय (voidable) होती है।

निर्णय – न्यायालय ने मोहरी बीबी की अपील को खारिज कर दिया।

न्यायालय द्वारा प्रतिपादित नियम –

इसमें न्यायालय ने यह कहा कि अवयस्क द्वारा की गयी संविदा शून्यकरणीय न होकर पूर्ण तथा प्रारम्भ से ही शून्य (Void) होती है। साथ ही कोर्ट ने धारा 64 एंव 65 का भी जिक्र किया जिनमें कहा गया है कि अवयस्क के प्रति संविदा अधिनियम लागू नहीं होती है, क्योंकि संविदा के नियमों के तहत दोनों पक्षकार संविदा करने के लिए सक्षम होने चाहिये।

कोर्ट ने यह भी साफ़ कि इस मामले में विबन्ध (Estoppel) का सिद्धान्त लागू नहीं हो सकता क्योंकि दोनों पक्षकारों को यह सूचना थी कि संविदा एक अवयस्क के साथ की जा रही है।

नाबालिग के लाभ के लिए संविदा

जहां एक नाबालिग ने पूर्ण प्रतिफल (Full consideration) का भुगतान किया है और एक करार के तहत उसके द्वारा कुछ किए जाने की आवश्यकता नहीं है या उसे कोई दायित्व उठाने की आवश्यकता नहीं है, वहां ऐसा नाबालिग वह लाभ प्राप्त कर सकता है। हालांकि नाबालिग के अभिभावक या माता-पिता, उसके द्वारा किये गए करार के लिए जिम्मेदार नहीं होते हैं.

नाबालिग की करार में वचनगृहीता (Promisee) की स्थिति

एक नाबालिग, करार के तहत एक वचनगृहीता (Promisee) हो सकता है, परन्तु वचनदाता (Promisor) नहीं। इसलिए यदि नाबालिग ने वचन का अपना हिस्सा या दायित्व पूरा किया है, लेकिन दूसरे पक्ष ने वचन के अंतर्गत अपने कर्त्तव्य का निर्वहन नहीं किया है, तो वह नाबालिग उस करार को लागू करा सकता है।