Advertisement

Lily Thomas Vs Union of India मामले से कैसे सम्बंधित है Parliament में अयोग्यता का आधार- जानिये

Lily Thomas Vs Union of India

इसी तरह की समस्या से सम्बंधित यह केस था जिसमे न सिर्फ संसद की गरिमा का ध्यान रखा गया अपितु जनप्रतिनिधियों की सदस्यता को भी बरकारार रखा गया, और सरकार की व्यवस्था में एक मील का पत्थर के रूप स्थापित हुआ, आइये समझतें है क्या था मामला.

Written By My Lord Team | Published : August 1, 2023 6:36 PM IST

नई दिल्ली: राजनीतिक दल चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार को ही टिकट देते हैं। इससे चुनावी प्रक्रिया में धनबल’ और बाहुबल’ को बढ़ावा मिलता है जिससे हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली धनिकतंत्र’ की दिशा में आगे बढ़ती है । इन दोनों तरह की स्थितियों में तत्काल सुधार की ज़रूरत को समझते हुए कार्यपालिका द्वारा प्रयास जारी रहने चाहिये।

इसी तरह ही समस्या से सम्बंधित लिली थॉमस बनाम भारत संघ का मामला था जिसमे न सिर्फ संसद की गरिमा का ध्यान रखा गया अपितु जनप्रतिनिधियों की सदस्यता को भी बरकारार रखा गया, और सरकार की व्यवस्था में एक मील का पत्थर के रूप स्थापित हुआ, आइये समझतें है क्या था यह मामला।

Advertisement

2005 में केरल के एक वकील लिली थॉमस और एनजीओ लोक प्रहरी द्वारा अपने महासचिव के माध्यम से शीर्ष अदालत के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की, जिसमे Representation of People Act (RPA) 1951 की धारा 8(4) को चुनौती दी गई थी। यह धारा सुप्रीम कोर्ट में लंबित अपीलों के कारण सजायाफ्ता विधायकों को अयोग्यता से बचाता है ।

Also Read

More News

RPA 1951 Section 8 (4)

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 दोषी राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकती है, लेकिन ऐसे नेता जिन पर केवल मुक़दमा चल रहा है, वे चुनाव लड़ने के लिये स्वतंत्र हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन पर लगा आरोप कितना गंभीर है।

Advertisement

इस धारा में यह भी प्रावधान है कि यदि दोषी सदस्य निचली अदालत के इस आदेश के खिलाफ तीन महीने के भीतर उच्च न्यायालय में अपील दायर कर देता है तो वह अपनी सीट पर बना रह सकता है।

इस दलील में सजायाफ्ता राजनेताओं को चुनाव लड़ने या आधिकारिक सीट रखने से रोककर आपराधिक तत्वों से भारतीय राजनीति को साफ़ करने की मांग की गई थी। इस मामले ने संविधान के अनुच्छेद 102(1) और साथ ही अनुच्छेद 191 (1) की ओर ध्यान आकर्षित करवाया गया था। आइये जानते है की क्या है अनुच्छेद 102(1) जिसके तहत संसद के किसी भी सदन की सदस्यता के लिए अयोग्यता निर्धारित की गई है।

संविधान का अनुच्छेद 191 (1)- राज्य की विधान सभा या विधान परिषद की सदस्यता के लिए अयोग्ता निर्धारित करता है। दलील में तर्क दिया गया कि ये प्रावदान केंद्र को अयोग्यता से संबंधित अनेय नियम जोड़ने का अधिकार देते है।

इस फैसले से पहले सजायाफ्ता सांसद आसानी से अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर कर सकते थे, और अपनी आधिकारिक सीटों पर बने रह सकते थे।

लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले में कहा गया कि एक सांसद या विधायक जो अपराध के लिये दोषी पाया जाता है, उसे न्यूनतम दो वर्ष का कारावास दिया जाएगा और वह सदन की सदस्यता तत्काल प्रभाव से खो देगा, तथा उसे जेल अवधि समाप्त होने के बाद छह वर्ष के लिये चुनाव लड़ने से वंचित किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए के पटनायक और एस जे मुखोपाध्याय की पीठ ने कहा कि संसद के पास अधिनियम की धारा 8 के सब सेक्शन (4) को अधिनियमित करने की कोई शक्ति नहीं है, तथा यह संविधान के अधिकार से बाहर है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर संसद या राज्य विधानमंडल के किसी मौजुदा सदस्य को आरपीए की धारा की उपधारा (1) (2) (3) के तहत किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है तो वह अयोग्य घोषित किए जाएंगे।