UPSC में लेटरल इंट्री को लेकर बीजेपी-कांग्रेस में छिड़ा घमासान, जानिए कैसे आया लेटरल इंट्री का नियम-किसने किया लागू
हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने 45 मंत्रालयों में निदेशकों, संयुक्त सचिव और उप-सचिव के पद की भर्ती को लेकर विज्ञापन जारी किया है. यूपीएससी के विज्ञापन से जाहिर है कि इन पदों की बहाली लेटरल इंट्री से होनी है, जिसे लेकर कांग्रेस-बीजेपी व अन्य पार्टी के नेता आमने-सामने है. विपक्ष ने आरोप लगाया कि लेटरल इंट्री के जरिए सरकार आरक्षण को दरकिनार कर रही है. वहीं, सरकार की ओर से रेल मंत्री ने कहा कि लेटरल इंट्री तो यूपीए का ही आइडिया है. आइये पक्ष-विपक्ष के साथ लेटरल इंट्री से जुड़ी इतिहास को जानते हैं (Lateral Entry History)....
लेटरल इंट्री क्या होती है?
लेटरल इंट्री को आसान तरीके से समझ सकते हैं, जैसे की किसी दीवार से सटी सीढ़ी, जो कि थोड़ी तिरछी होती है और सीधे आपको दीवार के ऊपर पहुंचा देती है. यह सामान्य तरीके से अलग है (जैसे परीक्षा देकर उस पद तक पहुंचना). अब राजनीतिक दलों में घमासान UPSC में लेटरल इंट्री देने को लेकर है, सामान्यत: यूपीएससी अधिकारी बनने के लिए सिविल परीक्षा पास करनी होती है और अब एक लेटरल इंट्री भी है जो समयानुसार बड़ी-बड़ी संस्थाओं में भी उस क्षेत्र के विशेषज्ञ को इसी तरह से उस पद पर एंट्री दी जाने लगी, जिससे उस संस्था की दौर के अनुकूल कंपीटेंसी बनी रहे.
लेटरल इंट्री लाने को लेकर सरकार का तर्क
साल 2019 में कार्मिक लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय (DoPT Ministry) के राज्यमंत्री जीतेन्द्र सिंह राज्यसभा में बताते हैं कि सरकारा का लेटरल इंट्री लाने का उद्देश्य सरकारी संस्थाओं में नए टेलेंट को लाने और मैनपावर की क्षमता को बढ़ाना है. सरकार का उद्देश्य लेटरल इंट्री के सहारे किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत इंटेलीजेंस का उपयोग कर कार्यक्षमता को बढ़ाना है.
Also Read
- पुलिस ने अब तक कोई ठोस जांच नहीं की... पूर्व ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर मामले में Supreme Court की अहम टिप्पणी
- पूजा खेडकर की अग्रिम जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने UPSC और दिल्ली सरकार को जारी किया नोटिस
- Highlights: प्लेसेस ऑफ वार्शिप एक्ट से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को चार हफ्ते में जबाव देने को कहा, नए मामलों की सुनवाई पर लगी रोक
किन पदों पर हो सकती है लेटरल इंट्री?
लेटरल इंट्री के जरिए शामिल होनेवाले व्यक्ति ब्यूरोक्रेसी का हिस्सा नहीं होते है, वे उस खास क्षेत्र(जिस विभाग के लिए चयनित होंगे) उसमें अपनी एक्सपर्टिज रखते हैं. अब तक किसी विभाग का निदेशक, संयुक्त सचिव या उप-सचिव किसी IAS अधिकारी को बनाया जाता रहा है. धारणा बन चुकी है थी सचिवालय के कामों को सिर्फ IAS अधिकारियों को ही दिया जा रहा है. सरकार लेटरल इंट्री का कॉन्सेप्ट लेकर आती है. लेटरल इंट्री के माध्यम से किसी व्यक्ति को ज्वाइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी या किसी विभाग के डायरेक्टर पद पर नियुक्त किया जा सकता है.
मोदी सरकार में लेटरल इंट्री की शुरूआत
पहली बार साल 2018 में लेटरल इंट्री के लिए विज्ञापन आया था जो केवल संयुक्त सचिव (Joint Secretary) के पद के लिए था. उसके बाद में लेटरल इंट्री के लिए उप-सचिव (Deputy Secretary) और निदेशक (Director) के पद को शामिल किया गया.
UPA सरकार में आया लेटरल इंट्री का आइडिया
हालांकि, केन्द्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दावा किया कि लेटरल इंट्री का आइडिया यूपीए की सरकार में आया था, जिसे वीरप्पा मोइली की अगुवाई वाली प्रशासनिक सुधार समिति (SRC) ने सुझाया था.
अश्विनी वैष्णव ट्वीट में लिखते हैं,
लेटरल एंट्री लेटरल एंट्री मामले में कांग्रेस का पाखंड स्पष्ट है. लेटरल एंट्री की अवधारणा यूपीए सरकार ने ही विकसित की थी. 2005 में यूपीए सरकार के दौरान दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग (SRC) स्थापित किया गया था. श्री वीरप्पा मोइली ने इसकी अध्यक्षता की थी. यूपीए काल के एआरसी ने विशेष ज्ञान की आवश्यकता वाले पदों में रिक्तियों को भरने के लिए विशेषज्ञों की भर्ती की सिफारिश की थी. एनडीए सरकार ने इस सिफारिश को लागू करने के लिए एक पारदर्शी तरीका बनाया है. भर्ती यूपीएससी के माध्यम से पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से की जाएगी.
मामले में देखना दिलचस्प रहेगा कि बीजेपी अब अपनी बात को लोगों तक कैसे पहुंचाती हैं, लेटरल इंट्री में आरक्षण कोटे को बहाल किया जा सकता है या नहीं?