जानिए क्या होता है Shoot at Sight Order, प्रशासन कब ले सकता है ऐसा फैसला?
नई दिल्ली: जब भी किसी क्षेत्र की शांति व्यवस्था भंग हो जाती है. हालात बहुत खराब हो जाते हैं तो ऐसे में शूट एट साइट का फरमान जारी किया जाता है. जिसका ताजा उदाहरण है मणिपुर हिंसा.
यहां आदिवासियों और बहुसंख्यक मेइती समुदाय के बीच हिंसा इतनी बढ़ गई कि हालात बेकाबू हो गए. जगह जगह स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. लोगों की भीड़, तो कहीं आगजनी, सब अपनी सुरक्षा को लेकर परेशान है.
प्रशासन ने हिंसाग्रस्त इलाकों में सख्ती बढ़ा दी है. राज्य की सुरक्षा के लिए सरकार ने 'शूट एट साइट' आदेश जारी किया है. आदेश के मुताबिक अगर इलाके में शरारती तत्व नजर आए तो उन्हें सुरक्षाबल देखते ही गोली मार सकते हैं. ऐसे आदेश बेहद संवेदनशील मामलों में जारी किए जाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह आदेश कब दिया जाता है और कौन जारी कर सकती है.
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शूट एट साइट' का मतलब
शूट एट साइट' का मतलब देखते ही गोली मार देना नहीं है, हमारे देश के कानून के अनुसार किसी के पास भी किसी को गोली मारने का अधिकार नहीं है. दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 के तहत मौके पर मौजूद मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी के पास यह अधिकार होता है कि वह भीड़ को गैर-कानूनी घोषित कर सकता है.
इसके बाद भीड़ से हटने के लिए कहा जाता है और अगर भीड़ न हटे तो बल प्रयोग की चेतावनी दी जाती है जिसमें फायर आर्म्स का प्रयोग शामिल है. टियर गैस, रबर बुलेट, लाठीचार्ज, वॉटर कैनन या हिंसक होने पर गोली भी चलाई जा सकती है.
तनावपूर्ण स्थिति होने पर सबसे पहले धारा 144 लगाई जाती है. अगर किसी शहरी क्षेत्र में यह स्थिति पैदा होती है तो पुलिस कमिश्नर को इसका आदेश देना होता है. अगर ये स्थिति किसी ग्रामीण इलाके में पैदा होती है तो जिलाधिकारी ये आदेश दे सकता है. इसके साथ ही ये धारा 8 अलग - अलग स्थितियों में लागू की जा सकती है.
इस धारा के लागू होने के बाद किसी एक जगह पर 5 से ज़्यादा लोगों का एक साथ खड़ा होना गैरकानूनी होगा. अगर धारा 144 लगाए जाने के बाद भी कई लोग विरोध प्रदर्शन में शामिल होते हैं तो दंड संहिता की धारा 129, 130, 131 का इस्तेमाल करके भीड़ को तितर-बितर किया जा सकता है.
जान से मारने के लिए नहीं चला सकते गोली
पूर्व यूपी डीजीपी ने साफ किया कि गोली जान से मारने के लिए नहीं चलाई जानी चाहिए बल्कि घायल करके तितर-बितर करने और गिरफ्तार करने के लिए ही चलाई जानी चाहिए. उनके मुताबिक पुलिस को 12 बोर पंप एक्शन गन दी गई हैं जो घातक या जानलेवा नहीं होती हैं लेकिन काफी असरदार होती हैं.
इसके बाद भी अगर पंप एक्शन गन का असर न पड़े तो राइफल या रिवॉल्वर/पिस्टल से गोली चलाई जा सकती है. कानून के अनुसार कोई कत्ली या इनामी अपराधी भी हो तो भी उसे देखते ही गोली नहीं मारी जा सकती. हमारे देश के कानून में किसी भी जगह देखते ही गोली मारने की शक्ति किसी अथॉरिटी को नहीं दी गई है.
दंड संहिता 1973 की धारा 129
दंड संहिता 1973 की धारा 129 के तहत जिला राजस्व अधिकारी फैसला दे सकते हैं. अगर हिंसा भड़कती है तो पुलिस विभाग को जिला राजस्व अधिकारी को मौके पर मौजूद होने के लिए निवेदन करना होगा.
अगर राजस्व अधिकारी अपरिहार्य कारणों से मौके को छोड़कर चले जाते हैं या मौके पर उपस्थित होने में ही असमर्थ होते हैं तो ऐसी स्थिति में कम से कम सब-इंस्पेक्टर की रैंक का पुलिस अधिकारी ये फ़ैसला ले सकता है. इसके तहत प्रदर्शनकारियों को बलपूर्वक हटाया जा सकता है या गिरफ्तार किया जा सकता है.
पुलिस बल का प्रयोग कब
भारतीय दंड संहिता की धारा 131 के तहत सशस्त्र बलों को जिलाधिकारी की आज्ञा का पालन करना होगा और जिलाधिकारी से संपर्क नहीं हो पाने की स्थिति में सशस्त्र बलों की टीम अपनी बटालियन के प्रमुख के आदेशों का पालन कर सकती है.
कानून के अनुसार
.सबसे पहले भीड़ को गैर-कानूनी गतिविधियों के लिए चेतावनी दी जाएगी, फिर आंसू गैस का इस्तेमाल किया जाएगा.
.भीड़ इसके बाद भी काबू में नहीं आती है तो पानी की बौछार का प्रयोग, लाठीचार्ज का आदेश दिया जाएगा.
.फिर भी भीड़ नहीं हटती है तो पुलिस गोलियां चला सकती है, जिसका एकमात्र उद्देश्य भीड़ को हटाना होना चाहिए न कि लोगों को जान से मारना.
.आईपीसी की धारा 100 और 103 के तहत पुलिस गोली मारने की कार्रवाई का अधिकार देती है, लेकिन इसके बावजूद पुलिस वालों को कमर से नीचे गोली मारने की सलाह दी जाती है.