हिंदू विवाह कानून में क्या है न्यायिक अलगाव और किस आधार पर अलगाव के लिए कर सकते हैं अपील
नई दिल्ली: हिंदु समाज में विवाह के रिश्ते को जन्म जन्मांतर तक निभाने की मान्यता है इसीलिए लोग ना चाहते हुए भी एक बार वैवाहिक बंधन के पश्चात पति -पत्नी एक दूसरे के साथ पूरी जिंदगी गुजार देते थे, लेकिंग अब ऐसा नहीं रहा. जो कपल साथ नहीं रहना चाहते हैं वो या तो बिना तलाक या न्यायिक अलगाव के जरिये अलग रहने लगते हैं .
कानून के तहत भी अब माना जाता है कि जीवनसाथी रहे पति या पत्नी को एक साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. जब भी कोई विवाहित जोड़ा अलगाव के लिए कानून का रास्ता अपनाता है तो उसके सामने दो विकल्प होते है - पहला न्यायिक अलगाव और दूसरा तलाक.
तलाक में विवाह को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाता है जबकि न्यायिक अलगाव में ऐसा नहीं होता. आइये जानते हैं कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत न्यायिक अलगाव के क्या नियम हैं.
Also Read
क्या है न्यायिक अलगाव
अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या तलाक और न्यायिक अलगाव एक हैं. जानकारी के लिए आपको बता दें कि तलाक और न्यायिक अलगाव दोनों ही हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत आते हैं लेकिन दोनों के बारे में अलग - अलग धाराओं में प्रावधान किया गया है.
तलाक से संबंधित प्रावधान धारा 13 में दिए गए हैं वहीं धारा 10 में न्यायिक अलगाव को लेकर नियम बताए गए हैं.
ऐसे विवाहित जोड़े जो विवाह के कुछ ही वक्त बाद साथ नहीं रहना चाहते हैं और वह कानून का दरवाजा खटखटाते हैं तब अदालत उन्हें तलाक का सुझाव ना देकर न्यायिक अलगाव का विकल्प देती है. जिसके तहत दोनों ही पक्षों को अलग और आजाद रहकर, अपने विवाह के बारे में फिर से आत्म चिंतन करने का मौका देती है.
न्यायिक अलगाव के लिए याचिका: इस याचिका को दायर करने के कुछ शर्ते हैं जिनका पूरा करना आवश्यक है जैसे;
- .हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पति और पत्नी के बीच विवाह हुआ हो.
- .अलगाव के लिए याचिका दायर करने से पहले पति और पत्नी एक खास समय तक साथ रहते हों.
याचिका में निम्नलिखित जानकारी होनी चाहिए
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1973 के आदेश VII नियम 1 के तहत याचिका में निम्नलिखित जानकारी दी जानी चाहिए.
यह बताना होगा कि विवाह की तारीख और स्थान क्या थी. इस कानून के तहत अलगाव के लिए आपका कानूनी रूप से हिंदू होना अनिवार्य है. दोनों पक्षों का नाम, स्थिति इसके साथ ही अगर कोई बच्चा है तो उसके बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए.
न्यायिक अलगाव या तलाक के लिए डिक्री दाखिल करने से पहले दायर मुकदमेबाजी का पूरा विवरण अदालत को प्रदान करना होगा. न्यायिक अलगाव के लिए आप किस आधार पर यह अलगाव चाहते हैं यह भी आपको बताना होगा.
न्यायिक अलगाव के लिए आधार
- .धारा 13 (1) (i) में इसमें यह बताया गया है कि जब पति या पत्नी में से कोई भी अपनी इच्छा से विवाहित होते हुए भी किसी और के साथ शारीरिक रिस्ता बनाता है तो ऐसे में पीड़ित पक्ष यह कारण अदालत को देकर न्यायिक अलगाव के लिए याचिका दायर कर सकता है.
- .क्रूरता, धारा 13 (1) (i-a) अगर पति या पत्नी में से कोई भी एक दूसरे के साथ बुरा बर्ताव करता है या मानसिक या शारीरिक चोट पहुंचाता है तो पीड़ित पक्ष इसे अलगाव के लिए आधार बना सकता है.
- . परित्याग के आधार पर भी न्यायिक अलगाव के लिए आवेदन किया जा सकता है. धारा 13 (1) (b) पर नजर डाले तो इस धारा में, यह परिभाषित किया गया है कि अगर पति या पत्नी में से किसी ने भी याचिका दायर करने से दो साल पहले ही किसी भी कारण से छोड़ दिया है तो इसके आधार पर अदालत अलगाव के लिए याचिका को स्वीकार कर सकती है.
- .धारा 13(1)(ii), अगर पति या पत्नी में से कोई भी हिंदू धर्म के अलावा किसी दूसरे धर्म को अपना लेता है तो न्यायिक अलगाव के लिए याचिका दायर कर सकता है.
- . धारा 13(1)(iii) में यह बताया गया है किसी विवाह में अगर कोई भी पक्ष (पति या पत्नी) किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित है, जिसके कारण दोनों का साथ रहना मुश्किल है. तब यह अलगाव का कारण बन सकता है.
- .धारा 13 (1) (iv), विवाहित जोड़े में से कोई भी अगर किसी ना ठिक होने वाले कुष्ठ रोग जैसी किसी बीमारी से पीड़ित है, तो न्यायिक अलगाव की राहत की मांग कर सकते हैं.
- .धारा 13 (1) (v), अगर पति या पत्नी को किसी भी प्रकार की बीमारी है जो लाइलाज और संचारी (कम्युनिकेबल) है और विवाह के वक्त इस बात को छूपाया गया है तो इसे भी वैध आधार माना जाएगा.
- .अगर पति या पत्नी में से कोई भी संसार का त्याग कर देता है यानी संन्यास ले लेता है जिसके बारे में धारा 13 (1) (vi) में बताया गया है. तो इसे भी न्यायिक अलगाव के लिए कारण बनाया जा सकता है.
- . पति या पत्नी में से कोई भी अगर सात साल से गायब है, वो जीवित या है या उसकी मृत्यु हो चुकी है, इसकी भी सूचना नहीं है तो इस आधार पर भी अलगाव के लिए याचिका दायर की जा सकती है.
- . बाईगेमी जैसे मामलों में भी अलगाव के लिए याचिका दायर की जा सकती है. जिसके बारे में धारा 13 (2) (i) में प्रावधान किया गया है. बाईगेमी यानि वो पति जिसने पहले ही शादी कर रखी हो और वह दोबारा शादी करता है तो ऐसे में दोनों ही पत्नीयों को यह अधिकार है कि वह न्यायिक अलगाव के लिए याचिका दायर करे.