पुलिस बर्बरता के खिलाफ आम आदमी के संवैधानिक अधिकार क्या हैं? जानिए
नई दिल्ली: पुलिस समाज की रक्षा के लिए है लेकिन कई बार ऐसे परिस्थितियां देखि गई हैं जहां रक्षक ही भक्षक के रूप में दिखता है. अक्सर ऐसे मामले सामने आते हैं जिसमें वर्दी धारक अपने शक्तियों का गलत फायदा उठा कर आम लोगों को परेशान करते हैं. ऐसे ही अधिकारियों से बचाव के लिए आम नागरिकों को हमारे देश में संविधान के तहत अधिकार प्रदान दिए गए हैं जिसके बारे में सभी को जानना चाहिए.
संविधान के तहत एक व्यक्ति को कई अधिकार प्रदान किए गए हैं. ये अधिकार जब कोई व्यक्ति गिरफ्तार होता है तब बहुत महत्वपूर्ण हो जातें हैं. भारतीय संविधान के तीन अनुच्छेद, किसी व्यक्ति के दोषसिद्धि आदि से संरक्षण के बारे में बताती हैं, वो निम्नलिखित हैं:
अनुच्छेद 20
संविधान के इस अनुच्छेद में अपराधों की सजा से किसी व्यक्ति की सुरक्षा के बारे में बताया गया है. यह तीन अधिकार प्रदान करता है अर्थात्, कार्योत्तर (एक्स पोस्ट फैक्टो). कानून (जहां एक काम, जब किया जाता है, तब एक अपराध नहीं होता, लेकिन बाद में एक अपराध बन जाता है, तो व्यक्ति दंड के लिए उत्तरदायी नहीं होगा), दोहरा दंड (किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती), आत्म दोषारोपण (Self Incrimination) के खिलाफ अधिकार (किसी व्यक्ति को खुद के खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा).
Also Read
- 'डिजिटल सेवाओं तक की पहुंच एक मौलिक अधिकार', एसिड अटैक पीड़ितों के KYC कराने के मामले में Supreme Court का अहम फैसला
- पति की इच्छा होने के बावजूद पत्नी को Virginity Test के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट
- 'बिना दोष साबित हुए लंबे समय तक Preventative Detention में नहीं रख सकते', NDPS Act मामले सुप्रीम कोर्ट ने नागालैंड सरकार का फैसला पलटा
अनुच्छेद 21
हमारे देश में हर नागरिक को जीवन जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त है. इसमें विभिन्न अधिकारों को शामिल किया गया है- जैसे कि निजता का अधिकार, मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार, सार्वजनिक फांसी के खिलाफ अधिकार, हथकड़ी लगाने के खिलाफ अधिकार, देरी से निष्पादन (एग्जिक्यूशन) के खिलाफ अधिकार, आदि.
संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 को “स्वर्ण त्रिभुज” कहा जाता है. संविधान का दिया गया यह अधिकार बहुत महत्वपूर्ण है. अगर किसी व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होता है तो वह न्यायालय में कार्यवाही शुरू करवा सकता है. इतना ही नहीं इंसाफ के लिए हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है.
अनुच्छेद 22
संविधान का यह अनुच्छेद उस गिरफ्तार व्यक्ति या अभियुक्त के अधिकारों के बारे में बताता है जिसे निवारक निरोध (प्रिवेंटिव डिटेंशन) अधिनियम, 1950 के तहत गिरफ्तार किया गया था. इस अधिकार के तहत व्यक्ति को गिरफ्तारी की वजह जानने का अधिकार है, 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने का अधिकार, अपनी पसंद के वकील को हायर करने का अधिकार, (उसे सक्षम न्यायालय की स्वीकृति के बिना 3 महीने से ज्यादा समय तक हिरासत में नहीं रखा जाएगा).
कुछ ऐतिहासिक फैसले
जोगिंदर कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1994)
इस मामले में याचिकाकर्ता जो कि एक वकील था उसे पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ के लिए बुलाकर अवैध रूप से हिरासत में रख लिया था. जब याचिकाकर्ता के परिजनों ने उसके ठिकाने के बारे में पूछताछ की, तो पुलिस ने उसके ठिकाने के बारे में झूठ बोला. इस मामले में अदालत ने माना कि हिरासत अवैध थी.
रुदुल शाह बनाम बिहार राज्य (1983)
इस केस में, अदालत द्वारा बरी किए जाने के बाद भी याचिकाकर्ता को 14 साल से अधिक समय तक हिरासत में रखा गया था. याचिकाकर्ता ने अपने अवैध हिरासत के लिए मुआवजे की मांग की. सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हिरासत पूरी तरह से अनुचित है और बिहार सरकार को ₹30,000 और ₹5,000 की राशि का भुगतान करने का आदेश दिया.