Indian Evidence Act के तहत जानें प्रत्यक्ष और परिस्थितिजन्य साक्ष्य के बीच क्या है अंतर
नई दिल्ली: भारत के हर नागरिक के पास यह अधिकार है कि वो न्याय प्राप्त कर सकें और न्याय देने वाली अदालत तमाम मामलों में सही फैसला सुनने के लिए जिसपर निर्भर करती है वो है 'साक्ष्य' यानी 'एविडेंस'। भारतीय साक्ष्य अधिनियम (The Indian Evidence Act) के तहत 'साक्ष्य' की परिभाषा क्या है और इसके अंतर्गत प्रत्यक्ष और परिस्थितिजन्य साक्ष्य के बीच मूल अंतर क्या है, आइए विस्तारपूर्वक समझते हैं.
क्या है 'साक्ष्य' की परिभाषा
आपकी जानकारी के लिय बता दें कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के धारा 3 (Section 3 of Indian Evidence Act) के तहत 'साक्ष्य' की मदद से एक पार्टी किसी मामले में अपने पक्ष को साबित करती है। इस अधिनियम में मौखिक और लिखित, दोनों तरह के साक्ष्य शामिल होते हैं।
मौखिक साक्ष्य में सभी साक्षियों के बयान शामिल हैं जिन्हें अदालत अनुमति दे और जिनकी मदद से वो एक केस में अपना फैसला सुना सके; इसी तरह लिखित साक्ष्य इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड समेत वो सभी दस्तावेज हैं जिन्हें अदालत के समक्ष प्रस्तुत किये जातें हैं।
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क्या है प्रत्यक्ष साक्ष्य?
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 60 के तहत हर मौखिक साक्ष्य को 'प्रत्यक्ष' होना चाहिए। हर वो साक्ष्य जो किसी साक्षी ने अपनी आँखों से देखा हो, अपने कानों से सुना हो या जिसकी अनुभूति उसने अपने इंद्रियों द्वारा की हो, वो 'प्रत्यक्ष साक्ष्य' (Diret Evidence) कहलाता है।
इस तरह के साक्ष्य द्वारा सच को तुरंत साबित किया जा सकता है, और इसकी मदद से, बिना किसी परामर्श के, सीधे निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है।
परिस्थितिजन्य साक्ष्य क्या है?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 'परिस्थितिजन्य साक्ष्य' (Circumstantial Evidence) के नाम से कोई धारा नहीं है, बल्कि साक्ष्य का यह प्रारूप 'प्रासंगिक तथ्यों' (Relevant Facts) के अंतर्गत आता है।
परिस्थितिजन्य साक्ष्य का इस्तेमाल तब किया जाता है जब प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध न हो। यहां साक्ष्य वो परिस्थितियां हैं, जो मामले या घटना के चारों ओर घूमने वाले तथ्यों का सबूत होती हैं, जिनके अवलोकन से घटना की तह तक पहुंचा जा सकता है।
प्रत्यक्ष और परिस्थितिजन्य साक्ष्य के बीच का अंतर
प्रत्यक्ष साक्ष्य सीधा घटना से जुड़ा होता है और उसके जरिए सीधे निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है. परिस्थितिजन्य साक्ष्य घटना से जुड़ी परिस्थितियों से संबंध रखता है और इसके आधार पर दंड केवल तब दिया जा सकता है जब सभी परिस्थितियां और मामले की सभी कड़ियां सामने हो और उससे जुर्म साबित किया जा सके।
किसी भी मामले के लिए जो सर्वोत्तम साक्ष्य होता है, एक ऐसा प्रमाण जिसे किसी सत्यापन की जरूरत नहीं, वो प्रत्यक्ष साक्ष्य है जबकि परिस्थितिजन्य साक्ष्य का महत्त्व प्रत्यक्ष साक्ष्य से कम होता है और इसे साबित करने के लिए कई और सबूतों की जरूरत होती है।
बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक मामला आया जिसमें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मर्डर के एक केस में एक शख्स को अपराधी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
दोषी की याचिका सुप्रीम कोर्ट के पास आई और उनका यह कहना है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर फैसला सुनाने से पहले अदालत को यह सुनिश्चित करना होगा कि हर तरह से मामले की चेन पूरी है और गुनाह की कोई दूसरी थ्योरी सामने नहीं आ रही है।