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Industrial Disputes Act किस तरह से प्रबंधन और कर्मचारियों के विवादों बीच सामंजस्य स्थापित करता है,जानिए

कंपनी चाहे कोई भी हो उसके मैनेजमेंट और कर्मचारियों के बीच तालमेल होना जरुरी है. ताकी काम अपनी रफ्तार से होता रहे. अगर ऐसा न हो तो काम पर असर पड़ता है. तालमेल बना रहे इसलिए औद्योगिक विवाद अधिनियम बनाया गया है. ताकी कंपनी सुचारु रुप से चलता रहे.

Written By My Lord Team | Published : March 7, 2023 5:32 AM IST

नई दिल्ली: जहां भी कोई उद्योग होता है वहां प्रबंधन (Management) और कर्मचारियों के बीच हितों का टकराव होना एक आम बात है, क्योंकि प्रबंधन लाभ को अधिकतम करने पर ध्यान केंद्रित करता है वही कर्मचारी उचित मजदूरी एवं सुविधाओं और काम करने की अच्छी परिस्थितियों की अपेक्षा करता है.

इन सब बातो के मद्देनज़र, 1947 का औद्योगिक विवाद अधिनियम स्वतंत्रता के बाद नियोक्ता (Employer) और कर्मचारी (Employee) के बीच संबंधों को विनियमित करने और दोनों के बीच शांति और सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने की दृष्टि से लागू किया गया.

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औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 का उद्देश्य

1947 का औद्योगिक विवाद अधिनियम निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ अधिनियमित किया गया था:

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· औद्योगिक शांति को बढ़ावा देने और औद्योगिक विवादों के निपटारे के लिए एक क्रियाविधि (Procedure) प्रदान करना; और

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· कामगारों को आर्थिक न्याय (Economic Justice) देना.

औद्योगिक विवाद (Industrial Dispute) का मतलब

औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 2(k) के अनुसार, औद्योगिक विवाद का अर्थ नियोक्ताओं और नियोक्ताओं के बीच, या नियोक्ताओं और कामगारों के बीच या कामगारों और कामगारों के बीच कोई विवाद है, जो रोजगार या गैर-रोजगार या रोजगार की शर्तों के साथ या किसी भी व्यक्ति के श्रम की शर्तों के संबंध में हो सकता है.

सरल भाषा में औद्योगिक विवाद से मतलब मौजूदा उद्योग से संबंधित किसी विवाद से होता है. यह एक वास्तविक विवाद होना चाहिए और जिस व्यक्ति के संबंध में विवाद उठाया गया है और विवाद के पक्षों का उस विवाद में कोई प्रत्यक्ष या पर्याप्त हित होना चाहिए.

इन तरह के विवादों को मुख्यत: पर 4 श्रेणियों में बांटा जा सकता है

1. हितों से संबंधित विवाद (Interest Disputes)

इस तरह के विवादों को हितों के विवाद या आर्थिक विवाद भी कहा जाता है. ज्यादातर इस तरह के मामले वेतन, लाभ, नौकरी की सुरक्षा, या रोजगार की शर्तों या शर्तों में सुधार की मांगों या प्रस्तावों से विवाद उत्पन्न होते हैं। हितों के विवादों को उचित ढंग से बातचीत या सौदेबाजी या समझौता किया जाना चाहिए, और जहां तक संभव हो आर्थिक शक्ति के परीक्षण से बचना चाहिए जहां तक मुमकिन हो, इन विवादों को सुलह (Conciliation) के माध्यम से समझाया जाना चाहिए.

2. शिकायत या अधिकार विवाद

शिकायत या अधिकार विवाद को अधिकारों का टकराव (Conflict of Rights) या कानूनी विवाद भी कहा जाता है. ये विवाद उपक्रम में दिन-प्रतिदिन के कामकाजी संबंधों से होते हैं.यह आम तौर पर कर्मचारियों के अधिकारों से वंचित करने वाले प्रबंधन के कार्य के खिलाफ श्रमिकों के विरोध के रूप में उत्पन्न होते हैं. मजदूरी के भुगतान, अनुषंगी लाभ, काम के घंटे, ओवरटाइम, पदोन्नति (Promotions), पदावनति (Demotions), वरिष्ठता, सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं से उत्पन्न होने वाले शिकायत विवाद, इस श्रेणी में आते हैं.

यदि किसी शिकायत विवाद को पार्टियों द्वारा स्वीकार की गई प्रक्रिया के अनुसार नहीं सुलझाया जाता है, तो इसका परिणाम अक्सर प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच कामकाजी संबंध बिगड़ने के रूप में सामने आता है. सरकार इस प्रकार के विवाद समाधान के लिए स्वैच्छिक मध्यस्थता को भी प्रोत्साहित करती है.

3. अनुचित श्रम प्रथा (Unfair Labour Practices) से संबंधित विवाद

सबसे आम श्रम प्रकार का विवाद औद्योगिक संबंधों में अनुचित व्यवहार पर विवाद है. प्रबंधन कई बार श्रमिकों के साथ इस आधार पर भेदभाव करता है कि वे ट्रेड यूनियन के सदस्य हैं और वे यूनियन की गतिविधियों में भाग लेते हैं. अनुचित श्रम प्रथा में कर्मचारियों पर दबाव शामिल होता है जब वे संगठित होने के अपने अधिकारों का प्रयोग करते हैं, संघ की गतिविधि में भाग लेते हैं, सौदेबाजी (Bargain) से इनकार करते हैं, हड़ताल के दौरान नए कर्मचारियों की भर्ती करते हैं जो अवैध नहीं है, एक वातावरण बनाते हैं, या वास्तव में बल या हिंसा का कार्य करते हैं या संचार बंद करते हैं, आदि.

ऐसे विवादों को सुलह के माध्यम से सुलझाया जा सकता है, और यदि मध्यस्थता सफल नहीं होती है तो ऐसे विवादों को औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के तहत निर्धारित सामान्य प्रक्रिया के अनुसार सुलझाया जाता है.

4. मान्यता विवाद (Recognition Disputes)

मान्यता संबंधी विवाद तब उत्पन्न होते हैं जब किसी संगठन का प्रबंधन सामूहिक सौदेबाजी के उद्देश्य से या किसी विवाद या विवाद की स्थिति में अपने सदस्य कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी ट्रेड यूनियन को मान्यता देने से इंकार कर देता है. जब प्रबंधन किसी विशेष संघ को नापसंद करता है, तो वह बातचीत या सौदेबाजी के उद्देश्य से उस ट्रेड यूनियन को स्वीकार करने से इंकार कर देता है और फिर यह ट्रेड यूनियन उत्पीड़न का मामला बन जाता है.

यह तब भी होता है जब पहले से ही एक मौजूदा ट्रेड यूनियन है, या यह कई ट्रेड यूनियनों का मामला है और प्रत्येक मान्यता के लिए दावा कर रहा है. मान्यता संबंधी विवाद तब भी उत्पन्न होते हैं जब किसी विशेष ट्रेड यूनियन के पास पर्याप्त प्रतिनिधि नहीं होते हैं. मान्यता संबंधी विवादों का निपटारा ट्रेड यूनियनों की मान्यता के लिए सरकार द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों के माध्यम से या अनुशासन संहिता की सहायता से किया जाता है, जिसे सरकार द्वारा स्वेच्छा से निर्धारित किया गया है.

औद्योगिक विवाद अधिनियम उपरोक्त सभी मामलों से निपटने के लिए नियम निर्धारित करता है और इसी के साथ विवादों के पक्षों के बीच अच्छे संबंध कायम रखने में सहायता करता है। इस अधिनियम ने भारत में उद्योगों के विकास में अहम भूमिका निभाई है.