KM Nanavati Vs State of Maharashtra: जूरी ट्रायल का ये आखिरी मामला किन वजहों से है ऐतिहासिक- जानिये
नई दिल्ली: भारत में जूरी ट्रायल (Jury Trial) के माध्यम से भी मामलों को सुलझाया जाता है, जूरी ट्रायल कोर्ट ट्रायल से बिल्कुल अलग होता है। जहां जूरी अदालत द्वारा नियुक्त, जनता में से चुने गए लोगों का एक समूह है जो किसी मामले के तथ्यों को सुनकर और प्रस्तुत सबूतों के आधार पर फैसला सुनाती थी वहीं एक जज की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है।
साल 1973 तक जूरी ट्रायल्स हुए जिसके बाद आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) द्वारा, देश के विधि आयोग (Law Commission of India) की चौदहवीं रिपोर्ट की अनुशंसा पर इस प्रक्रिया को खत्म कर दिया गया था। बता दें कि इसका एक अपवाद भी है- The Parsis Matrimonial and Divorce Act, 1936 की धारा 19 और 20 के तहत तलाक से जुड़े मामलों में अभी भी जूरी ट्रायल होता है।
'के एम नानवाती बनाम महाराष्ट्र राज्य' (KM Nanavati Vs State of Maharashtra) मामला देश में जूरी ट्रायल का आखिरी मामला माना जाता है। इस केस को जूरी ट्रायल का आखिरी मामला क्यों माना जाता है और यह किन अन्य वजहों से ऐतिहासिक है, आइए जानते हैं.
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KM Nanavati Vs State of Maharashtra Case
मामले के तथ्य - मामले में दोषी कवस मणेकशॉ नानावती (Kawas Manekshaw Nanavati) एक नेवी अफसर थे जिनकी शादी सिल्विया (Sylvia) नाम की एक महिला से हुई थी, दोनों के तीन बच्चे थे। बंबई में के एम नानवाती को प्रेम आहूजा (Prem Ahuja) से मिलवाया गया जो परिवार के करीबी दोस्त बन गए। के एम नानवाती जब काम के सिलसिले में शहर से बाहर रहते थे, उनकी पत्नी और प्रेम आहूजा के बीच दोस्ती बढ़ी और दोनों का एक अवैध रिश्ता भी था।
18 अप्रैल, 1959 को जब केएम नानवाती शिप से लौटे और अपनी पत्नी के साथ प्यार करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मुंह फेर लिया और ऐसा ही एक बार फिर 27 अप्रैल, 1959 को हुआ। के एम नानवाती ने अपनी पत्नी से इस बार पूछा कि क्या उनकी गैर मौजूदगी में वो उनके प्रति ईमानदार रहीं तो इसके जवाब में सिल्विया ने प्रेम आहूजा से अपने रिश्ते के बारे में नानवाती को बता दिया।
नानवाती ने इसके बाद फैसला किया कि वो प्रेम आहूजा से इस बारे में बात करेंगे, उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों को सिनेमा हॉल में उतारा और उनसे कहा कि वो उन्हें बाद में पिक कर लेंगे; फिर वो अपने शिप पर गए और झूठे बहाने से उन्होंने एक रिवॉल्वर और छह गोलियां इशू करवा लीं। इसके बाद नानवाती पहले प्रेम आहूजा के ऑफिस गए और वो जब वहां नहीं मिले तो वो उनके घर चले गए।
प्रेम आहूजा के घर पहुंचते ही के एम नानवाती उनके कमरे में चले गए और कमरे का दरवाजा उन्होंने अंदर से बंद कर लिया। नानवाती ने प्रेम आहूजा से पूछा कि क्या उनका सिल्विया से शादी करने का तीनों बच्चों का ध्यान रखने का कोई इरादा है, इस पर प्रेम आहूजा ने कहा कि वो उनके साथ शारीरिक संबंध बनाने वाली हर महिला से शादी करने हेतु बाध्य नहीं हैं।
यह सुनकर के एम नानवाती और प्रेम आहूजा के बीच लड़ाई हो गई जिसके चलते उन्होंने अपना रिवॉल्वर निकाला और प्रेम आहूजा को गोली मार उनकी हत्या कर दी।
इस घटना के बाद के एम नानवाती ने खुद ही नजदीकी पुलिस स्टेशन में जाकर अपना गुनाह कुबूल कर लिया आर उनके खिलाफ एक मामला अदालत में दर्ज हो गया। सवाल यह उठे थे कि के एम नानवाती ने प्रेम आहूजा को 'गंभीर और अचानक उकसावे' (Grave and Sudden Provocation) में गोली मारी थी या फिर यह मर्डर का एक सोचा समझा प्लैन था।
जूरी ट्रायल
सबसे पहले इस मामले की सुनवाई बंबई की सत्र अदालत (Bombay Sessions Court) में हुई जिसमें जूरी द्वारा 8:1 की बहुमत से के एम नानवाती को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (Section 302 of The Indian Penal Code) के तहत निर्दोष (Not Guilty) करार दिया गया।
जूरी के फैसले से सत्र न्यायाधीश रतिलाल भाईचंद मेहता खुश नहीं थे और उन्होंने जूरी के फैसले को उलटने का एक ऐतिहासिक फैसला लिया और मामले को रीट्रायल के लिए बंबई उच्च न्यायालय में रेफर कर दिया।
यह दावा किया गया कि जूरी का फैसला तटस्थ नहीं था, पब्लिक से चुने गए जूरी के सदस्यों के फैसले को मीडिया ने प्रभावित किया था और इसलिए उनका फैसला गलत या गुमराह करने वाला हो सकता है।
बंबई उच्च न्यायालय का फैसला
सत्र अदालत के बाद बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) में न्यायाधीश शेलट (Justice Shelat) और न्यायाधीश नायक (Justice Naik) की खंडपीठ द्वारा इस मामले में दोबारा सुनवाई हुई।
अदालत में यह बात स्थापित हुई कि न ही सिल्विया की स्वीकारोक्ति (Confession) और न ही प्रेम आहूजा का बयान इतने गंभीर थे, कि नानवाती को मर्डर के लिए उकसा सकें। दोनों न्यायाधीश इस बात पर सहमत थे कि आरोपी को आईपीसी की धारा 302 के तहत मर्डर के लिए दोषी करार दिया जाता है और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
बंबई उच्च न्यायालय के इस फैसले को केएम नानवाती ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी और अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट
उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) ने पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत किए गए मामले के तथ्यों और सबूतों को समझने के बाद यह फैसला लिया कि के एम नानवाती द्वारा किया गया मर्डर एक सोचा समझा प्लैन था और यहां ''गंभीर और अचानक उकसावे' के कॉन्सेप्ट को कन्सिडर नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह कहना था कि केएम नानवाती ने जानबूझकर प्रेम आहूजा का मर्डर किया।
शीर्ष अदालत ने यह भी माना कि राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति (Power to Pardon) और विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition) का एक साथ प्रयोग नहीं किया जा सकता है और इन दोनों को एक साथ स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है। यदि सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विशेष अनुमति याचिका दायर की जाती थी तो राज्यपाल की क्षमादान शक्तियाँ समाप्त हो जाती थीं। सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि राज्यपाल ने उन्हें प्रदत्त शक्तियों का "अतिक्रमण" किया।
सर्वोच्च न्यायालय ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को अपहोल्ड किया और यह भी कहा कि जूरी ने सही फैसला नहीं सुनाया था। के एम नानवाती की याचिका को खारिज कर दिया गया।
राज्यपाल से मिला क्षमादान
के एम नानवाती को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी लेकिन जनता के मन में नानवाती के प्रति बहुत इज्जत थी। 'ब्लिट्ज' (Blitz) नामक एक साप्ताहिक ने इस स्टोरी को कवर किया और खुलेआम केएम नानवाती का समर्थन किया और पारसी समाज ने सजा के बाद भी समर्थन जारी रखा।
तीन साल सजा काटने के बाद महाराष्ट्र की राज्यपाल, विजयलक्ष्मी पंडित (Vijaylakshmi Pandit) ने के एम नानवाती को को क्षमादान प्रदान किया, और उनको रिहा कर दिया।
क्यों ऐतिहासिक है यह मामला?
इस मामले को दो अहम कारणों की वजह से ऐतिहासिक माना जा सकता है। सबसे पहला यह कि इस मामले में जूरी ट्रायल के फैसले को पहले सत्र न्यायाधीश, फिर बंबई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने भी गलत ठहराया।
यह कहा गया कि जूरी द्वारा के एम नानवाती को निर्दोष करार देना गलत था और यह फैसला निष्पक्ष होकर नहीं बल्कि जनता की राय से प्रभावित होकर लिया गया था। इसी के बाद से देश में धीरे-धीरे जूरी ट्रायल्स की प्रक्रिया को समाप्त कर दिया गया।
दूसरा कारण है 'मीडिया ट्रायल' (Media Trial)। इस मामले में भले ही अदालत ने केएम नानवाती को दोषी ठहराया हो, पब्लिक उनके साथ थी और उनकी राय का ही यह नतीजा था कि आजीवन कारावास मिलने के बावजूद केएम नानवाती को तीन साल में जेल से रिहा कर दिया गया था। यह मामला मीडिया ट्रायल का एक बड़ा उदाहरण है।