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भारतीय संविधान में सुप्रीम कोर्ट का न्यायिक क्षेत्राधिकार - जानिए Original, Appellate और Advisory क्षेत्राधिकार

अगर विवाद में कोई ऐसा प्रश्न शामिल होता है (कानून का या तथ्य का) जिस पर किसी कानूनी अधिकार का अस्तित्व या सीमा निर्भर करती है तो उस विवाद पर केवल सुप्रीम कोर्ट को निर्णय लेने का क्षेत्राधिकार होगा.

Written By My Lord Team | Published : March 7, 2023 7:46 AM IST

नई दिल्ली: लोकतंत्र के तीन स्तंभों में से न्यायपालिका एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है. न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए भारतीय संविधान में कई अधिकार और शक्तियां प्रदान की गई हैं. देश की न्यायिक व्यवस्था के अंतर्गत, सुप्रीम कोर्ट अपील के लिए अंतिम न्यायालय है. अतः यह जानना आवश्यक है कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट का न्यायिक क्षेत्राधिकार क्या है.

भारतीय संविधान में सुप्रीम कोर्ट का क्षेत्राधिकार उल्लेखित है और आपको बता दे की सुप्रीम कोर्ट के पास बुनियादी तौर पर मूल (Original), अपीलीय (Appellate) और सलाहकार (Advisory) क्षेत्राधिकार है. आईए समझते हैं सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न क्षेत्राधिकारों के बारे में.

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1- मूल क्षेत्राधिकार (Original Jurisdiction)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 131 में, सुप्रीम कोर्ट के मूल क्षेत्राधिकार का वर्णन किया गया है. इसके तहत निम्नलिखित मामलों में भारतीय सुप्रीम कोर्ट का मूल क्षेत्राधिकार दिया गया है.

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.केंद्र व एक या अधिक राज्यों के बीच हुआ विवाद, या

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.केंद्र और कोई राज्य या फिर राज्यों का एक तरफ होना एवं एक या अधिक राज्यों का दूसरी तरफ होना, या

.दो या अधिक राज्यों के बीच का विवाद

इन तीन स्थितियों में अगर विवाद में कोई ऐसा प्रश्न शामिल होता है (कानून का या तथ्य का) जिस पर किसी कानूनी अधिकार का अस्तित्व या सीमा निर्भर करती है तो उस विवाद पर केवल सुप्रीम कोर्ट को निर्णय लेने का क्षेत्राधिकार होगा.

· भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत, सुप्रीम कोर्ट को लोगों के कुछ मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए व्यापक मूल क्षेत्राधिकार दिया गया है. इसके अनुसार मौलिक अधिकारों की रक्षा करने हेतु, सुप्रीम कोर्ट बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, उत्प्रेषण, प्रतिषेध एवं अधिकार प्रेच्छा जैसे न्यायादेश यानि रिट जारी कर सकता है. साथ ही वह किसी भी अन्य तरह का आदेश पारित कर सकता है जो उसके अनुसार उन परिस्थितियों में अनिवार्य हो.

इसका एक उद्देश्य यह है कि जब नागरिक या अन्य किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन राज्य द्वारा किया जा रहा तो वह सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है.

· सुप्रीम कोर्ट के पास किसी भी सिविल या आपराधिक मामले को एक राज्य के हाई कोर्ट से दूसरे राज्य के हाई कोर्ट या उसके अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court) में स्थानांतरित करने का निर्देश देने का क्षेत्राधिकार है.

· अगर सुप्रीम कोर्ट को ऐसा लगता है कि कोई किसी कानून से जुड़े समान या वस्तुत: समान प्रश्नों के मामले, उसके और एक या अधिक हाई कोर्ट या दो या अधिक हाई कोर्ट के समक्ष लंबित (Pending) हैं और यह प्रश्न सार्वजानिक हितों से जुड़े हैं, तो सुप्रीम कोर्ट उन हाई कोर्ट या हाई कोर्ट के समक्ष लंबित कोई मामला या मामले को वापिस ले सकता है. फिर वह स्वयं उन मामलों को सुनेगा और निर्णय पारित करेगा.

· मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय में अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता (International Commercial Arbitration) भी शुरू की जा सकती है.

2- अपीलीय क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction)

जैसा आपको पहले बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट अपील करने के लिए देश की अंतिम अदालत है. अतः आपको जानना चाहिए की सुप्रीम कोर्ट में किन मामलों में अपील दायर की जा सकती है और इसके लिए किन शर्तों का पालन करना अनिवार्य है.

· संविधानिक व्याख्या के मामले

सुप्रीम कोर्ट के अपीलीय क्षेत्राधिकार और उससे जुड़ी शर्तें को संविधान के अनुच्छेद 132(1), 133(1) और 134 समझाया गया है.

जिसके तहत, जो व्यक्ति अपील करना चाहता है, उसे संबंधित हाई कोर्ट द्वारा पारित किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की कॉपी के साथ ही एक प्रमाण पत्र भी सुप्रीम कोर्ट में दायर करना होगा इस प्रमाण पत्र में हाई कोर्ट यह प्रमाणित करेगा कि इस मामले में ऐसे प्रश्न उठाए गए हैं, जिनमें संविधानिक व्याख्या की ज़रूरत पड़ेगी और इस प्रश्नों पर अंतिम निर्णय केवल सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही पारित किया जा सकता है.

· सिविल मामलें

सिविल मामलों में सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध अपील की जा सकती है लेकिन, यह अपील केवल तब की जा सकते है जब संबंधित हाई कोर्ट प्रमाणित करता है कि:

(क) मामले में सामान्य महत्व के कानून का एक महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल है, और

(ख) हाई कोर्ट की राय में, इस प्रश्न को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय करने की आवश्यकता है.

· आपराधिक मामले

आपराधिक मामलों में, केवल तीन स्थितियों में सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है और वो हैं:

(क) अपील में, संबंधित हाई कोर्ट ने अधीनस्थ कोर्ट के आरोपी को बरी करने के आदेश को पलट दिया है और आरोपी को मौत की या आजीवन कारावास या कम से कम 10 साल के कारावास की सजा सुनाई है., या

(ख) हाई कोर्ट ने अपने अधिकार के अधीन, अपने किसी अधीनस्थ कोर्ट से किसी भी मामले को सुनवाई के लिए वापस ले लिया है और सुनवाई के बाद आरोपी को दोषी ठहराया है और उसे मौत की या आजीवन कारावास या कम से कम 10 साल के कारावास की सजा सुनाई है., या

(ग) हाई कोर्ट ने यह प्रमाणित किया है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए उपयुक्त है.

इन तीन स्तिथियों के अलावा, आपराधिक मामलों में, संसद भी सुप्रीम कोर्ट को अधिकृत कर सकता है कि वह हाई कोर्ट द्वारा पारित किसी भी आदेश, निर्णय और सज़ा के खिलाफ अपील सुन सकता है और अपना निर्णय पारित कर सकता है.

· विशेष अनुमति द्वारा अपील

सुप्रीम कोर्ट के पास भारत के सभी न्यायालयों और न्यायाधिकरणों (Tribunals) पर एक बहुत व्यापक अपीलीय क्षेत्राधिकार है और यह अनुच्छेद 136 में प्रदान किया गया है.

इसके तहत, सुप्रीम कोर्ट अपने विवेक के अनुसार, किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश, निर्णय, न्यायिक दृढता या सज़ा से अपील करने की अनुमति प्रदान कर सकता है.

इस अधिकार का उपयोग आम तोर पर दो तरह के मामलों में किया जाता है और वो हैं:

(क) मामला संवैधानिक व्याख्या की मांग करता है, या

(ख) न्यायालय या न्यायाधिकरण द्वारा पारित निर्णय से, किसी व्यक्ति के साथ बहुत अन्याय हुआ है।

· कुछ अधिनियमों के अनुसार विशेष अपीलीय क्षेत्राधिकार

कुछ विशेष विधानों में, यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया होता है कि सर्वोच्च न्यायालय इन विधानों से जुड़े विवादों के मामलों में अपील की अंतिम अदालत है।

जैसे कि आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 257; लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951; न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971; सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 और कई अन्य विधानों के तहत सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है.

3- सलाहकार क्षेत्राधिकार

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत, भारत के राष्ट्रपति को अगर यह प्रतीत होता है कि कानून या तथ्य से जुड़ा कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हो गया है या उत्पन्न होने की संभावना है, जो सार्वजानिक महत्व का है और उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना आवश्यक है। तो इस स्तिथि में राष्ट्रपति उस प्रश्न को उच्चतम न्यायालय को भेज सकते हैं और उसकी राय की मांग सकता हैं.

इस अनुच्छेद के माध्यम से राष्ट्रपति, किसी पूर्व संवैधानिक संधि, समझौते, आदि से उत्पन्न हुए किसी मामले में सुप्रीम कोर्ट का मत ले सकते हैं.

दोनों ही स्थिति में, सुप्रीम कोर्ट का मत केवल एक सलाह होगा और राष्ट्रपति उससे बाधित नहीं होंगे.राष्ट्रपति अपना निर्णय, अपने विवेक के अनुसार और बाकी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लेंगे.

अन्य अधिकार

· राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952 के भाग III के तहत चुनाव याचिका भी सीधे सर्वोच्च न्यायालय में दायर की जाती है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णय अंतिम माना जाता है.

· भारतीय संविधान के अनुच्छेद 129 के तहत सुप्रीम कोर्ट को अधिकार है कि यदि कोई व्यक्ति न्यायालय की अवमानना करता है तो उसे दंडित किया जा सकता है.

· सुप्रीम कोर्ट के पास न्यायिक समीक्षा करने का भी अधिकार है. इसके तहत, वह केंद्रीय या राज्य स्तर पर पारित विधानों, नियमों और आदेशों की संविधानिकता की जांच कर सकता है और अगर वह असंविधानिक पाए जाते हैं तो, सुप्रीम कोर्ट उन्हें खारिज भी कर सकता है.

· संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत, सुप्रीम कोर्ट खुद के फैसले की समीक्षा कर सकता है.

· अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट किसी मामले में फैसला सुनाते समय संवैधानिक प्रावधानों के दायरे में रहते हुए ऐसा कोई भी आदेश दे सकता है, जो किसी व्यक्ति को न्याय देने के लिए जरूरी हो.

· सुप्रीम कोर्ट के पास अधिकार है कि वह किसी भी व्यक्ति द्वारा दायर की जनहित याचिका को सुन सकता है और उपयुक्त आदेश पारित कर सकता है।.