कहीं आपका कथन किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस तो नहीं पहुंचा रहा, अगर हां तो सजा के लिए हो जाएं तैयार
नई दिल्ली: देश में शांति व्यवस्था बनी रहे इसलिए बहुत सारे नियम-कानून बनाए गए हैं जिनका पालन करना हर एक नागरिक की जिम्मेदारी है अगर कोई उन नियमों को तोड़ता है तो वह सजा का पात्र माना जाएगा. यद्यपि हमें हर तरह की आजादी दी गई है लेकिन ये अधिकार नहीं है कि हम इस स्वतंत्रता के जरिये कुछ ऐसा बोले या करे जिससे दूसरे लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचे या कोई दंगा भड़कने जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाए। आज कल कुछ लोग इस तरह की हरकते कर रहें हैं और कानून उन्हे दंडित भी कर रहा है.
ये नियम हर किसी पर लागू होता है चाहे वो कोई आम आदमी हो या फिर कोई पब्लिक फिगर. हाल ही में कन्नड़ अभिनेता और जाति विरोधी कार्यकर्ता चेतन कुमार का ट्वीट करना उन पर भारी पड़ गया जब उन्होने सोशल मीडिया पर यह लिख दिया कि "हिंदुत्व झूठ पर आधारित है." फिर क्या था भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) 1860 की धारा (Section) 295A के तहत केस दर्ज कर पुलिस ने अभिनेता को गिरफ्तार कर लिया.
कुछ लोगों को अभिनेता का यह कथन छोटा सा वाक्य लग रहा होगा लेकिन कानून के नजर में ऐसा करना कोई आम बात नहीं है. क्योंकि इस मामले में किसी धर्म के ऊपर टिप्पणी की गई है जिसके कारण लोगों की धार्मिक भावनाये आहत हो सकती है जिसके बारे में धारा 295A में बताया गया है.
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IPC की धारा 295A
IPC की धारा 295A के अनुसार जो भी व्यक्ति, भारत के नागरिकों के किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से, जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से या तो बोलकर या लिखकर शब्दों द्वारा, या संकेतों या दृश्य प्रस्तुतियों (Visible Representation) द्वारा या अन्य किसी माध्यम से, उस वर्ग के धर्म या धार्मिक मान्यताओं का अपमान करता है या अपमान करने का प्रयास करता है, तो ऐसे व्यक्ति के खिलाफ इस धारा के तहत अपराध माना जाएगा और सख्त कार्रवाई की जाएगी.
धारा 295A के अंतर्गत परिभाषित अपराध एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है. इस तरह के मामलों में अपराधी को बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तार किया जा सकता है. इस तरह के अपराध में समझौता नहीं किया जा सकता है. IPC की धारा 295A के अनुसार जो दर्शाए अपराध के मामले में दोषी साबित होने आरोपी को 3 साल तक की जेल या जुर्माने या दोनों की सज़ा हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
पिछले वर्ष पैगंबर मोहम्मद साहेब पर विवादित टिप्पणी करने वाली बीजेपी नेता नूपुर शर्मा, जिन्हे बाद में पार्टी ने निलंबित कर दिया, की वजह से देश में गहमागहमी का माहौल बन गया था. देश भर में उनके खिलाफ विवादित टिप्पणी करने के लिए कई एफआईआर दर्ज किए गए थे. जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था तब सुप्रीम ने कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी दी थी.
जस्टिस सूर्यकांत और पारडीवाला की बेंच ने कहा था कि नूपुर देश भर में दर्ज एफआईआर में जमानत के लिए अलग-अलग शहरों की कोर्ट में आवेदन दे. अगर उन्हें एफआईआर रद्द करवानी हों, तो उस राज्य के हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करे. जजों ने इस मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि देशभर में जितनी भी हिंसा भरी घटनाएं हो रही हैं, उन सबकी वजह नूपुर शर्मा का 26 मई को दिया गया बयान है.
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने रामजी लाल मोदी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1957) के मामले में यह स्पष्ट किया था कि है कि IPC की धारा 295A देश के नागरिकों के एक वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करने या अपमान करने की कोशिश करने के हर कार्य के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है, बल्कि केवल उन कार्यों को दंडित करती हैं, जिसे किसी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से अंजाम दिया गया हो.