क्या गलतफहमी में किये गए अपराध पर होती है सज़ा?
नई दिल्ली: हमारे देश का कानून सुधार की दिशा पर आधारित हैं, यानी कोई नागरिक अपराध करने के बाद सुधार की ओर बढ़ता है तो हमारा कानून उसकी मदद करता है या यूं कहें कि उसे ऐसा अवसर प्रदान करता है. इसी के चलते कानून में गलतफहमी में किए गए अपराध के लिए अपराधी के लिए विशेष कानून बनाया गया है.
ऐसा अपराध जिसमें अपराध करते समय अपराधी को यह भ्रम हो कि वह कानून के अनुसार सही कर रहा है, लेकिन ऐसा होता नहीं हैं. इस स्थिति में इसे गलतफहमी में किया गया अपराध माना जाएगा.
इन कार्यो के लिए, हमारे पास IPC की धारा 76 और 79 है, जो उन लोगों की रक्षा करती है जो यह मानते हुए कार्य करते हैं कि वे ऐसा करने के लिए कानून द्वारा बंधे हैं या उनके पास कानून द्वारा दिया गया अधिकार है,जहां असलियत में इसके विपरीत होता है.
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आईपीसी (Indian Penal Code) की धारा 76
इसके तहत कोई भी कार्य, जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाए, जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध (Bound by law) हो या जो तथ्य की भूल (Mistake of fact) के कारण, न कि विधि की भूल के कारण सद्भावपूर्वक विश्वास (Good faith) करता हो कि वह ऐसा कार्य करने के लिए कानून द्वारा बाध्य है, अपराध (Offence) नहीं है और वह व्यक्ति उस अपराध के लिए उत्तरदायी नहीं होगा.
एक व्यक्ति को अपराध के लिए दोषी तब तक नहीं ठहराया जा सकता है जब तक उसके द्वारा किए गए अपराध के लिए उसका कोई इरादा नहीं हो. इसीलिए अगर कोई व्यक्ति गलत विश्वास रखते हुए यह कार्य करता है कि वह कानूनी रूप से बाध्य हैं तो वह व्यक्ति उस अपराध के लिए के लिए उत्तरदायी नहीं होगा.
उदाहरण के लिए यदि किसी अफसर को अपने वरिष्ठ अधिकारी के द्वारा आदेश मिलने पर वह कानून के अनुसार हिंसक भीड़ पर गोली चलता है तो वह अफसर गोली चलाने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा, क्योंकि उसे यह विश्वास था कि वह कानूनी रूप से अपने वरिष्ठ अधिकारी, के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य है.
इस प्रावधान में क्या शर्तें हैं?
इस कानून में अपराधी के अपराध के साथ कई शर्तें जोड़ी गई है जिससे की इसका दुरुपयोग ना हो.
इस कानून के अनुसार अपराधी को तथ्य को लेकर भ्रम या गलतफहमी होनी चाहिए ना कि कानून को लेकर.
कोई व्यक्ति इस बात का बचाव नहीं ले सकता कि उसे कानून की जानकारी नहीं थी और इसलिए उसने उस कार्य को अपना कर्तव्य मानते हुए किया, बल्कि इस धारा का बचाव तभी लिया जा सकता है जब उसने उस परिस्थिति में तथ्य को समझने में गलती की हो या गलतफहमी हुई हो.
यह कानून उस व्यक्ति की मदद नहीं करता है जिसे पता है कि उसे उसके वरिष्ठ अफसर द्वारा कुछ गैरकानूनी करने का आदेश दिया गया है, और उसने उस कार्य को अंजाम दिया हो.
उच्चाधिकारियों का आदेश वैध होना चाहिए. अगर उसके उच्चाधिकारियों ने उसे कुछ अवैध करने को कहा है तो उसकी यह ज़िम्मेदारी है की वह वो काम न करे वरना वो, उस काम के लिए कानूनी तौर पे उत्तरदायी होगा.
एक व्यक्ति ईमानदारी से और अच्छे विश्वास में किए गए कार्य के लिए उत्तरदायी नहीं होगा. बशर्ते वह तथ्य की गलती के कारण अपने आप को कानून के तहत ऐसा करने के लिए बाध्य समझता हो.
यदि कोई व्यक्ति विश्वास करता है कि वह कोई करने के लिए कानून द्वारा न्यायोचित है, अर्थात उसके पास इसे करने का अधिकार है जब असल में उसके पास यह करने का अधिकार नहीं है , और वह वे कार्य कर देता है तो ऐसे व्यक्ति उस परिस्थिति में इस अधिनियम के धारा के तहत उत्तरदायी नहीं होंगे क्योंकि IPC की यह धारा उनकी सुरक्षा करते हुए उन्हें कानूनी मामलों से बचाती है.