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IPC vs BNS: भारतीय दंड संहिता की जगह लेने वाले भारतीय न्याय संहिता के प्रमुख बिंदु - जानें मूल बदलाव

भारत सरकार अपराध और अपराधियों पर रोक लगाने के लिए आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता को लागू करने जा रही है. जानिए BNS और IPC में क्या अंतर है और इस नए कानून के मुख्य प्रावधान क्या हैं..

Written By My Lord Team | Published : February 28, 2024 11:12 AM IST

देश में एक जुलाई से तीन नए अपराधिक कानून लागू होने जा रहे हैं. ये तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) हैं, जो इंडियन पीनल कोड, 1860 (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1898 (CrPC) और एविडेंस एक्ट (The Evidence Act) की जगह लेंगे. इस लेख में हम भारतीय न्याय संहिता की बात करेंगे और जानेंगे कि आईपीसी की तुलना में इसमें कितना बदलाव आया है, किन नए अपराधों को शामिल किया गया है और किन अपराधों को नए कानून से हटाया गया है. इसमें कुछ कानून ऐसे भी हैं जिनका दायरा (परिभाषा) बढ़ाया गया है. जानिए आईपीसी और बीएनएस के बीच के मूल बदलाव..

BNS और IPC के बीच अंतर

भारतीय न्याय संहिता अपराध को परिभाषित, अपराधों से जुड़े सजा के प्रावधान को तय करेगी. कुल मिलाकर किन अपराधों में कितनी सजा मिलेगी,  इसका विवरण आपको इसमें मिलेगा. आईपीसी में यही जानकारी थी. इसलिए भारतीय न्याय संहिता को आईपीसी का अपडेटेड वर्जन भी माना जा रहा हैं. आइये जानते हैं इस नवीन कानून से जुड़ी खास व महत्वपूर्ण बातें. 

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मानहानि की सजा होगी Community Service

BNS में छोटे अपराध (जिनक प्रभाव न्यून हो) में सजा के तौर पर लोगों को सामुदायिक सेवा (Community Service) देनी होगी. कम्युनिटी सर्विस में सार्वजनिक स्थलों की सफाई, वृक्षारोपण एवं राज्य निर्मित आश्रय स्थलों पर सेवा देनी पड़ेगी. BNS में अपराधिक मानहानि के मामलो में कम्युनिटी सर्विस को वैकल्पिक सजा के तौर पर रखा गया है. वहीं, IPC में अपराधिक मुकदमे में कम-से-कम दो साल जेल की सजा का प्रावधान था. BNS में सरकारी कर्मचारी द्वारा गैर-कानूनी काम, आत्महत्या करने का प्रयास, सार्वजनिक जगहों पर नशा करने के मामलों में भी कम्युनिटी सर्विस को सजा के प्रावधानों में शामिल किया गया है. छोटी-मोटी चोरी (5000 रूपये से कम) करने के जुर्म में सामुदायिक सेवा करने की सजा मिल सकती है. 

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'आत्महत्या' अपराध की सूची से हटा

BNS में आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया है. IPC की धारा 309 में आत्महत्या का प्रयास, अपराध माना जाता था. BNS में संशोधन कर इसे हटा दिया गया है. वहीं, BNS की धारा 224, कुछ मामलो में आत्महत्या को अपराध मानती हैं. धारा 224 में किसी लोक सेवक को उसके कार्य में बाधा डालने या उसे रोकने के लिए आत्महत्या का करना अपराध की श्रेणी में आता है. इन मामलों में दोषी को एक साल कारावास की सजा, जुर्माना लगाया जा सकता है या दोनों से दंडित किया जा सकता है. 

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IPC के ये अपराध BNS में नहीं हैं शामिल

IPC के कई अपराध BNS में से हटाए गए है. इनमें राजद्रोह का मुकदमा, आत्महत्या करने का प्रयास, अप्राकृतिक यौन संबंध और व्याभिचार जैसे मामलों को BNS में शामिल नहीं किया गया है. राजद्रोह को हटाकर देशद्रोह कर दिया गया है. वहीं, व्याभिचार के मामलों की धारा 497 को सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने भी निरस्त किया था. धारा 497 व्याभिचार पुरूषों के लिए अपराध था.  

BNS में जुड़े ये नए अपराध

BNS में देशद्रोह के मामलों में सजा का प्रावधान, नाबालिगों से दुष्कर्म और मॉब लिंचिंग के मामलो में कठोर सजा का प्रावधान पारित किया गया है. नाबालिग से रेप करने के मामलों में मौत की सजा का प्रावधान भी शामिल किया गया है. 

इन अपराधों को किया गया परिभाषित

BNS में आतंकवाद, देशद्रोह, संगठित अपराध जैसे अपराधों को परिभाषित किया है. इन अपराधों से जुड़े सजा के प्रावधानों को पहले से ज्यादा कठोर किया गया है. ताकि लोग कानून पालन में जिम्मेदारी बरतें और देश की कानून और व्यवस्था को बनाए रखने में सहभागी बनें.