Internet Suspension या Internet Ban को लेकर क्या हैं देश में कानूनी प्रावधान? जानिए
नई दिल्ली: आज के समय में हम सभी के जीवन में तकनीक की भूमिका बहुत बढ़ गई है और किसी के लिए भी इंटरनेट के बिना एक दिन भी गुजारना नामुमकिन-सा है। इस दौर में देश में इंटरनेट सेवाओं का इस्तेमाल संविधान के अनुच्छेद 21 और 21A के तहत, 'शिक्षा का अधिकार' (Right to Education) और 'निजता का अधिकार' (Right to Privacy) में शामिल है।
आपने देखा होगा किस तरह मई, 2023 में मणिपुर में एथनिक वायलेंस (Manipur Ethnic Violence) शुरू हुआ जिसके चलते राज्य में इंटरनेट सेवाएं स्थगित कर दी गईं, ऐसा पहले भी कई बार हुआ है। हिंसा के माहौल में ऐसी क्या जरूरत सामने आ जाती है कि इंटरनेट की सेवाओं को बंद करना पड़ता है? यह कदम देश में किसके आदेश पर, किन कानूनी प्रावधानों के तहत उठाया जाता है, आइए विस्तार से समझते हैं.
Internet Suspension?
'इंटरनेट निलंबन' (Internet Suspension) को अगर परिभाषित करना हो तो ये एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक खास क्षेत्र या कुछ लोगों के लिए इंटरनेट को जानबूझकर बंद कर दिया जाता है; यह आमतौर पर उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां हिंसा चल रहा हो, अशान्ति हो या जहां हो रही गतिविधियों की जानकारी को नियंत्रित करना हो।
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देश में इंटरनेट सेवाओं के प्रतिबंध से जुड़े कानूनी प्रावधान आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure), सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act) और भारतीय टेलीग्रैफ अधिनियम (Indian Telegraph Act) में शामिल हैं।
Internet Ban से जुड़े कानूनी प्रावधान
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जब देश में इंटरनेट सेवाओं के प्रतिबंध पर कोई खास कानून नहीं थे तो 'आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 144' (Section 144 of the CrPC) के तहत इसका आदेश दिया जाता था। इस धारा के तहत मैजिस्ट्रेट को यह अधिकार दिया गया था कि वो सेल फोन्स, टावर्स आदि को किस तरह इस्तेमाल किया जाएगा, इसका आदेश दे सकते थे।
इसी धारा के तहत मैजिस्ट्रेट्स ने किसी क्षेत्र में इंटरनेट सेवाओं को बंद भी किया है जिसकी अवधि आमतौर पर 48 से 72 घंटे रही है।
सीआरपीसी के अलावा भारतीय टेलीग्रैफ अधिनियम की धारा 5(2) (Section 5(2) of The Indian Telegraph Act) में भी देश में इंटरनेट सेवाओं के सस्पेन्शन हेतु प्रावधान दिए गए हैं। इस धारा के तहत किसी सार्वजनिक आपातकाल में या पब्लिक सेफ्टी के लिए केंद्र, राज्य सरकार या फिर इनके द्वारा अधिकृत अधिकारी अगर जरूरी समझे, तो यह निर्देश दे सकते हैं कि कोई भी मैसेज उन लोगों से या उन लोगों तक नहीं भेजा जाएगा, जो चल रहे मुद्दे से जुड़े हैं। उन मैसेज को किसी भी टेलीग्रैफ द्वारा न ट्रांसमिट किया जाएगा, न इंटरसेप्ट किया जाएगा और न डीटेन किया जाएगा।
देश की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों या सार्वजनिक व्यवस्था के हित में या किसी अपराध के लिए उकसावे को रोकने के लिए इस तरह का आदेश लिखित रूप में दिया जा सकता है।
साल 2017 तक इंटरनेट सेवाओं के प्रतिबंध से जुड़े निर्देश सीआरपीसी और भारतीय टेलीग्रैफ अधिनियम के तहत दिए जाते थे लेकिन 2017 में 'भारतीय टेलीग्रैफ अधिनियम' में संशोधन किया गया और सरकार ने 'दूरसंचार सेवाओं का अस्थायी निलंबन (सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा) नियम 2017' (Temporary Suspension of Telecom Services (Public Emergency or Public Safety) Rule 2017) की घोषणा की।
'दूरसंचार सेवाओं का अस्थायी निलंबन (सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा) नियम 2017, आपकी जानकारी के लिए बता दें इंटरनेट सेवाओं के सस्पेन्शन हेतु ऐसे नियम हैं जिन्हें 'भारतीय टेलीग्रैफ अधिनियम की धारा 5(2)' की व्यापक व्याख्या समझा जा सकता है।
सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा के मामले में टेलीकॉम सेवाओं को निलंबित करने की विधि और इसके परिणामस्वरूप, भारत में इंटरनेट सेवाओं के निलंबन को अगस्त 2017 में 'भारतीय टेलीग्रैफ अधिनियम, 1855 की धारा 7' के तहत अधिसूचित किया गया था, इन नियमों को 'दूरसंचार सेवाओं का अस्थायी निलंबन (सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा) नियम 2017' नाम दिया गया था।
इन नियमों के तहत सिर्फ केंद्र या राज्य के गृह सचिव इंटरनेट सेवाओं को सस्पेन्ड करने का आदेश दे सकते हैं और उन्हें अपने ऑर्डर में यह भी स्पष्ट करना होगा कि यह आदेश देने का उनके पास क्या कारण हैं। जारी किए जाने के अगले दिन इस ऑर्डर को एक रिव्यू कमिटी को भेजा जाना चाहिए जिसकी वो कमिटी पाँच दिन के अंदर समीक्षा करेंगी और यह भी चेक करेंगी कि इसका टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5(2) के तहत अनुपालन हुआ है या नहीं।
इंटरनेट सेवाओं के सस्पेन्शन के उदाहरण
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अक्टूबर, 2022 की जानकारी के अनुसार वैश्विक स्तर पर इंटरनेट शटडाउन की सूची में भारत सबसे ऊपर है, 2012 से अब तक देश में 381 शटडाउन हुए हैं जिनमें से 106 शटडाउन 2019 में हुए थे। कश्मीर के साथ-साथ हाल ही में मणिपुर में इंटरनेट शटडाउन हुआ है; बिहार के दरभंगा शहर में भी 30 जुलाई तक कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगा दिया गया है।
बता दें कि 2019 में संविधान के अनुच्छेद 370 के निराकरण (Abrogation of Article 370 of The Constitution of India) के बाद कश्मीर में लगभग 55 बार इंटरनेट शटडाउन हुआ था; किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए यह सबसे लंबा इंटरनेट शटडाउन माना गया है।