किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करना है अपराध, होती है 3 साल की जेल
नई दिल्ली: भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल की विवादित टिप्पणियां काफी सुर्ख़ियों में रही थीं और इन टिप्पणियों ने उस कानून को भी सुर्ख़ियों में ला दिया है जो धर्म की आलोचना या अपमान से संबंधित है.
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के कई प्रावधान, मुख्य रूप से धारा 295A, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression) पर कुछ प्रतिबंध लगाती हैं और धर्म से संबंधित अपराधों के संबंध में इस स्वतंत्रता की सीमाओं को परिभाषित करती है. इन कानूनों को लागू करने का एकमात्र उद्देश्य सामाजिक शांति बनाए रखना था और इसके लागू होने से धार्मिक समूहों के बीच समानता को भी बढ़ावा मिला है.
IPC की धारा 295A
IPC की धारा 295A के अनुसार जो भी व्यक्ति, भारत के नागरिकों के किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से, जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से या तो बोलकर या लिखित शब्दों द्वारा, या संकेतों या दृश्य प्रस्तुतियों (Visible Representation) द्वारा या अन्य किसी माध्यम से, उस वर्ग के धर्म या धार्मिक मान्यताओं का अपमान करता है या अपमान करने का प्रयास करता है, तो ऐसे व्यक्ति के खिलाफ इस धारा के तहत अपराध माना जाएगा और सख्त कार्रवाई की जाएगी.
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इस धारा में केवल भारतीय नागरिकों के किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए आरोपी की ओर से जानबूझकर या दुर्भावनापूर्ण इरादे से किए गए किसी कृत्य को ही अपराध माना गया है, ना कि किसी अन्य देश के नागरिकों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के कृत्य को अपराध की श्रेणी में रखा गया है.
इस धारा के तहत आरोपी का दोष साबित करने के लिए यह साबित करना अनिवार्य है कि आरोपी जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से कोई ऐसा कार्य किया है, जिससे किसी अन्य धर्म या धार्मिक मान्यताओं का अपमान हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट ने रामजी लाल मोदी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1957) के मामले में यह स्पष्ट किया है कि IPC की धारा 295A देश के नागरिकों के एक वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करने या अपमान करने का प्रयास करने के हर कृत्य को दंडित नहीं करती है, बल्कि केवल उन कृत्यों को दंडित करती हैं, जिसे किसी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से अंजाम दिया गया हो.
अपराध की श्रेणी
धारा 295A के अंतर्गत परिभाषित अपराध एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है. इस तरह के मामलों में अपराधी को बिना वारंट Warrant के गिरफ्तार किया जा सकता है. इस तरह के अपराध में समझौता नहीं किया जा सकता है.
सजा का प्राधान: IPC की धारा 295A के अनुसार जो दर्शाए अपराध के मामले में दोषी साबित होने आरोपी को 3 साल तक की जेल या जुर्माने या दोनों की सज़ा हो सकती है.