किन अपराधों में मिलती है फांसी की सजा- जानिए IPC और CrPC के प्रावधान
नई दिल्ली: हमारे देश में पिछले कुछ सालों में कई अपराधियों को सभी कानूनी प्रक्रिया से गुजरने के बाद फांसी पर लटकाया गया है. 2012 के दिल्ली के निर्भया गैंगरेप और मर्डर केस के दोषियों को भी फांसी की सजा दी गई थी. 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु को भी 9 फरवरी 2013 को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई.
हमारे देश की अदलातों ने कई संगीन अपराधों में फांसी की सजा दी है, लेकिन क्या आपको पता हैं किन मामलों में कानून ये सजा देती है. आईए फांसी से जुड़ी कानूनी दांव पेंच को बरिकी से समझते हैं.
फांसी की सजा
हमारे देश में कानून के द्वारा अपराधियों को सुधारने की ओर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, लेकिन बेहद गंभीर और संवेदनशील अपराध जिनसे की पुरे समाज की सुरक्षा और मानसिकता प्रभावित होती है, ऐसे कई मामलों में कानून रियायत नहीं देती है.
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कानून द्वारा जघन्य अपराधों में दोषी को फांसी की सजी सुनाई जाती है. जिसके तहत फांसी घर में दोषी फंदे से लटका दिया जाता है. पुराने जमाने में भी अपराधियों को दण्ड देने के लिये फांसी की सजा दी जाती थी. वैसे तो फांसी का तरीका सदियों पुराना है, लेकिन आधुनिक इतिहास में फांसी के जरिए मौत की सजा देने का नया तरीका ब्रिटेन के विलियम मारवुड ने खोजा था. इन्होंने ही लीवर के जरिए फांसी पर लटकाने का तरीका निकाला था.
द कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (1898) में फांसी से लटका कर मृत्युदंड देने का प्रावधान है. यही प्रावधान कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (1973) में भी अपनाया गया.
अपराधों में दी जाती है फांसी
हमारे देश में IPC के तहत उन अपराधों के लिए फांसी की सजा दी जाती है जो बेहद संगीन अपराध या रेयरेस्ट आफ रेयर की श्रेणी में आते हैं. दुष्कर्म, हत्या, सामुहिक हत्या, देश पर हमला, देश की सुरक्षा के साथ हमला, मासूम बच्चों के साथ दुष्कर्म और हत्या सहित कई गंभीर मामलों में फांसी की सजा का प्राावधान है.
दुष्कर्म को हमारे देश के कानून में गंभीर अपराध मानता है. इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 376 व 375 के तहत सजा में मौत की सजा तक का प्रावधान किया गया है.
केंद्र सरकार ने 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के मामलों में दोषी ठहराए गए व्यक्तियों को मृत्युदंड सहित सख्त सजा देने का अध्यादेश जारी किया था, जिसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी दे दी थी.
2012 के दिल्ली के निर्भया गैंगरेप व हत्या मामले के बाद आईपीसी की धारा 376 में बदलाव किया गया था. संविधान संशोधन के जरिए आईपीसी की "धारा 376 (ई)" के तहत बार-बार दुष्कर्म के दोषियों को उम्रक़ैद या मौत की सज़ा का प्रावधान किया गया.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी बार-बार दुष्कर्म करने के दोषी को उम्रकैद या मौत की सजा देने के लिए आईपीसी की धारा में किए गए इस संशोधन की संवैधानिकता को बरकरार रखा था.
सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने पर
सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने या युद्ध की कोशिश करने वाले व्यक्ति को IPC की "धाारा 121" के तहत मौत की सजा का प्रावधान किया गया है. इस अपराध में अगर फांसी की सजा नहीं दी जाती है तो आजीवन कैद और जुर्माना भी लगाया जा सकता है. वहीं, अगर सेना, वायुसेना या नौसेना का कोई अधिकारी या सैनिक सरकार के खिलाफ अपने साथियों या आम लेागों को सरकार के खिलाफ विद्रोह के लिए उकसाता है और विद्रोह भड़क जाता है तो दोषी को "धारा 132" के तहत मौत की सजा का प्रावधान है. इस अपराध में भी आजीवन कारावास या 10 साल तक की कठोर कारावास और जुर्माने की सजा भी दी सकती है.
झूठे सबूत से फांसी
अगर कोई व्यक्ति किसी आरोपी के खिलाफ दोष को साबित कराने के लिए झूठे सबूत देता है या गढ़ता है और उसके आधार पर निर्दोष व्यक्ति को दोषी मानते हुए मौत की सजा दे दी जाती है, तो झूठे सबूत देने वाले व्यक्ति का अपराध साबित होने पर "धारा 194" के तहत मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है. वहीं, किसी व्यक्ति की हत्या करने वाले व्यक्ति को IPC की "धाारा 302" के तहत मौत की सजा का प्रावधान है. इस अपराध में उम्रकैद और जुर्माना की सजा भी दी जा सकती है. इसके अलावा आजीवन कारावास की सजा पाया व्यक्ति किसी की हत्या कर देता है तो "धारा 303" के तहत अपराधी को मौत की सजा दी जाएगी.
बच्चों की आत्महत्या
अगर कोई व्यक्ति 18 वर्ष से कम उम्र के किशोर व युवाओं को आत्महत्या के लिए उकसाता है और उसकी ऐसी कोशिश में उस बच्चे या किशोर की मौत हो जाती है तो दोषी को आईपीसी की "धारा 305" के तहत सजा-ए-मौत की व्यवस्था की गई है.
इसी धारा के तहत पागल या मंदबुद्धि व्यक्ति को भी आत्महत्या के लिए उकसाने के बाद किए गए प्रयास में मौत हो जाने पर मृत्युदंड का प्रावधान है. इस धारा के तहत मौत की सजा नहीं दिए जाने पर 10 वर्ष से लेकर उम्रकैद तक का प्रावधान है. वहीं, कोर्ट सजा के साथ जुर्माना भी लगा सकता है.
डकैती में शामिल
IPC की "धारा 396" के तहत अगर 5 या उससे अधिक लोग किसी डकैती में शामिल हों और उनमें से कोई एक किसी की हत्या कर दे तो सभी डकैतों को मौत की सजा का प्रावधान किया गया है. इस अपराध में अगर अदालत फांसी की सजा नहीं देती है तो हर दोषी को आजीवन कारावास या 10 साल का कठोर कारावास की सजा भी दे सकती है.
अदालत इस मामले में सभी दोषियों पर जुर्माना भी लगा सकता है. वहीं, अगर कोई व्यक्ति हत्या के प्रयास का दोषी ठहराए जाने के बाद सजा के दौरान फिर किसी की हत्या की कोशिश करता है तो "धारा 307" के तहत उसे फांसी की सजा दी जा सकती है.
भारतीय रेल अधिनियम
हमारे देश में IPC के अलावा भारतीय रेल अधिनियम की "धारा 124" के तहत भी मौत की सजा का प्रावधान किया गया है. अगर कोई व्यक्ति यह जानते हुए भी ट्रेन को नुकसान पहुंचाता है कि इससे यात्रियों की जान जा सकती है तो इस धारा के तहत उसे मौत की सजा दी जा सकती है.
आपातकाल में प्रभावी होने वाले डिफेंस आफ इंडिया एक्ट की "धारा 18-2" के तहत विशेष कोर्ट को फांसी की सजा देने का अधिकार होता है.
नशीली दवा अधिनियम में भी मौत की सजा का प्रावधान किया गया है. इन सभी धाराओं में तब तक फांसी नहीं दी जा सकती जब तक कि आईपीसी की "धारा 433" के तहत हाईकोर्ट इसकी मंजूरी नहीं दे देता है. इसके बाद भी दोषी के पास अपने बचाव के कई रास्ते होते हैं.
किसी भी हाईकोर्ट द्वारा किसी अपराधी को फांसी की सजा की पुष्टि किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील से लेकर राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका तक दायर की जा सकती है.
हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट द्वारा फांसी की पुष्टि किए जाने और राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका ठुकराने के बाद अपराधी को हर हाल में फांसी दी जाती है.