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आपराधिक मामलों में Reference और Revision का क्या महत्त्व है, जानिए

Reference and Revision

सीआरपीसी में  रिविजन शब्द कि व्याख्या नहीं कि गई है । हालांकि, सीआरपीसी की धारा 397 के अनुसार, उच्च न्यायालय या किसी भी सत्र न्यायाधीश को किसी भी कार्यवाही के अभिलेख ( record) की जांच करने और खुद को संतुष्ट करने का अधिकार दिया गया है। 

Written By My Lord Team | Published : August 4, 2023 4:26 PM IST

नई दिल्ली: अगर किसी पीड़ित या फिर किसी अपराधी को निचली अदालत द्वारा या फिर ऊपरी अदालत के माध्यम से कोई आदेश प्राप्त हुआ है जिससे कि वे असंतुष्ट है तो फिर उनके पास ये कानूनी अधिकार है कि वे न्यायालय द्वारा दिए गए उस आदेश के विरुद्ध दंड प्रक्रिया संहिता के तहत ऊपरी अदालत में पुनरीक्षण (Revision) या फिर निर्देश (Reference) के लिए आवेदन कर सकते है और उस आदेश के विरुद्ध राहत प्राप्त किया जा सकता है। आखिर क्या है दंड प्रक्रिया संहिता के तहत निर्देश (Reference) और पुनरीक्षण (Revision) के प्रावधान आइये जानते है विस्तार से।

पुनरीक्षण (Revision) की परिभाषा

सीआरपीसी में  रिविजन शब्द कि व्याख्या नहीं कि गई है । हालांकि, सीआरपीसी की धारा 397 के अनुसार, उच्च न्यायालय या किसी भी सत्र न्यायाधीश को किसी भी कार्यवाही के अभिलेख (record) की जांच करने और खुद को संतुष्ट करने का अधिकार दिया गया है।

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किसी भी निष्कर्ष, वाक्य या आदेश की शुद्धता, वैधता, या औचित्य के रूप में, चाहे अभिलिखित किया गया हो या पास किया गया हो, और अधीनस्थ (inferior) न्यायालय की किसी भी कार्यवाही की नियमितता (रेगुलेरिटी) के संबंध में रिविजन के लिए पीड़ित या अभियुक्त आवेदन कर सकता है।

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इसके अलावा, उनके पास किसी भी सजा के निष्पादन (एग्जिक्यूशन) या निलंबित (सस्पेंड) करने के आदेश को निर्देशित (direct) करने की शक्तियां हैं। इतना ही नहीं, बल्कि आरोपी को जेल में बंद होने पर जमानत पर या अपने ही बन्धपत्र (बॉन्ड) पर रिहा करने का भी निर्देश दे सकते है। वे कुछ सीमाओं के अधीन जांच का आदेश भी दे सकते हैं। यह स्पष्ट है कि अपीलेट अदालतों (appellate courts) को ऐसी शक्तियां इसलिए प्रदान की गई हैं ताकि न्याय की किसी भी विफलता से बचा जा सके।

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उच्च न्यायालय के पास अपने स्वयं के प्रस्ताव पर या किसी पीड़ित पार्टी या किसी अन्य पार्टी द्वारा याचिका (petition) पर अपने स्वयं के प्रस्ताव पर एक रिविजन याचिका लेने की शक्ति है।

CrPC Section 401

इसके धारा के अनुसार अपनी रिविजनल शक्तियों का प्रयोग करने के लिए हाईकोर्ट पर कुछ कानूनी सीमाएँ लगाई गई हैं, हालांकि इस शक्ति का प्रयोग करने के लिए एकमात्र वैधानिक आवश्यकता यह है कि कार्यवाही के रिकॉर्ड उसके सामने प्रस्तुत किए जाते हैं, जिसके बाद केवल न्यायालय के विवेक पर है कि क्या एक आरोपी को सुनने का उचित अवसर दिया जाना चाहिए और जब तक इसका पालन नहीं किया जाता है तब तक आदेश पास नहीं किया जा सकता है।

ऐसे मामलों में जहां किसी व्यक्ति ने यह मानकर एक रिविजनल आवेदन (एप्लीकेशन) भेजा है कि ऐसे मामले में अपील नहीं की गई है, उच्च न्यायालय को ऐसे आवेदन को न्याय के हित में अपील के रूप में मानना ​​होगा।

रिविजन के आवेदन पर कार्यवाही नहीं की जा सकती है यदि यह किसी ऐसी पार्टी द्वारा दायर किया गया है जहां पार्टी अपील कर सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया है।

उच्च न्यायालय, साथ ही सत्र न्यायालय, अपने अधिकार क्षेत्र में स्थित किसी भी इनफिरियर आपराधिक न्यायालय की किसी भी कार्यवाही के रिकॉर्ड के लिए खुद को संतुष्ट करने के उद्देश्य से किसी भी निष्कर्ष, वाक्य, आदि के औचित्य की शुद्धता, वैधता के बारे में खुद को संतुष्ट करने के लिए कह सकता है। इस प्रकार सत्र न्यायाधीश सीआरपीसी की धारा 397(1) द्वारा प्रदान शक्तियों को ध्यान में रख कर सजा की अपर्याप्तता के संबंध में प्रश्न की जांच कर सकते हैं।

निर्देश (Reference) की परिभाषा

यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालय (inferior court) किसी विधि के प्रश्न पर सम्बंधित उच्च न्यायालय से परामर्श प्राप्त करती है। पुनरीक्षण (Revision) को इस संहिता द्वारा परिभाषित नहीं किया गया है किन्तु उसे निम्नवत परिभाषित किया जा सकता है –“पुनरीक्षण न्यायालय की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा न्यायालय दण्डादेश की वैधता इत्यादि की परीक्षा करती है और इसके साथ हि पीड़ित या फिर अभियुक्त को न्याय प्रदान करती है।

उच्च न्यायालय को निर्देश (Reference to High Court)​

जहां किसी न्यायालय का समाधान हो जाता है कि उसके समक्ष लंबित मामले में किसी अधिनियम (act), अध्यादेश (ordinance) या विनियम (Regulation) में शामिल किसी नियम की विधिमान्यता के बारे में ऐसा प्रश्न शामिल है, जिसका अवधारण उस मामले को निपटाने के लिए आवश्यक है, और उसकी यह राय है कि ऐसा अधिनियम, अध्यादेश, विनियम या उपबंध अविधिमान्य या अप्रवर्तनशील (inoperative) है किन्तु उस उच्च न्यायालय द्वारा, जिसके वह न्यायालय अधीनस्थ है, या उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित नहीं किया गया है वहां न्यायालय अपनी राय और उसके कारणों को बताते हुए मामले का कथन तैयार करेगा और उसे उच्च न्यायालय के विनिश्चय के लिए निर्देशित करेगा।