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ई-कॉमर्स के युग में कैसे करे उपभोक्ता अपने अधिकारों की रक्षा, जानिए यहां

नए उपभोक्ता कानून का सबसे ज्यादा प्रभावी अधिकार है जिसके तहत एक उपभोक्ता अपनी शिकायत कहा करेगा,इसका पूरा वर्णन किया गया है. नए कानून के अनुसार उपभोक्ता अपनी शिकायत जहां सामान खरीदा गया है उसी जिले के जिला आयोग में दायर कर सकता है

Written By My Lord Team | Published : February 14, 2023 12:36 PM IST

नई दिल्ली: देश और दुनिया में बढ़ते तकनीक ने ई—कॉमर्स की दुनिया को बड़ा विस्तार दिया है. ई-पोर्टल ने विक्रेता और उपभोक्ता के बीच की भौगोलिक दूरी को काफी हद तक कम कर दिया है, मोबाइल पर एक क्लिक से ही विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं को अपने दरवाजे तक मंगवाया जा सकता है.

ई—कॉमर्स के साथ जहां आम व्यक्ति के लिए कई सुविधाएं बनाई है वही कुछ परेशानियां भी साथ लेकर आया है. इस दुनिया खरीदने वाले और बेचने वाले के बीच सीधा संबंध होते हुए भी दोनों ही एक दूसरे से दूर होते है. ऐसी परिस्थितियों में खरीद गई वस्तु या सेवा से संतुष्टी नहीं होने की स्थिति में उपभोक्ताओं के सामने ज्यादा मुश्किल थी.

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इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट

हालांकि हमारे देश में ई-कॉमर्स (एमएलई) पर मॉडल कानून को प्रभावी बनाने के लिए इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 लागू किया गया. आईटी एक्ट ऑनलाइन व्यवसायों के लिए एक नियामक (रेगुलेटरी) ढ़ांचा प्रदान करता है और उल्लंघन के लिए सजा निर्धारित करता है.

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यह कानून डिजिटल रिकॉर्ड के प्रमाणीकरण (ऑथेंटिकेशन) की व्यवस्था, डिजिटल हस्ताक्षर, प्रमाणित करने वाले अधिकारियों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रियाएं भी निर्धारित करता है. इसके साथ ही डाटा चोरी होने से रोकने का प्रावधान भी करता है.हालांकि, आईटी एक्ट में उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए कोई प्रावधान नहीं है, जिन्हें ऑनलाइन खरीदे गए उत्पादों या सेवाओं की शिकायत हो सकती है.

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बदल गया उपभोक्ता कानून

ई-कॉमर्स वेबसाइटों के आगमन और ऑनलाइन लेनदेन करने वाले उपभोक्ता में वृद्धि के साथ कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 1986 में बदलाव की मांग बढी. जिसके चलते केंद्र सरकार ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 को कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 (सीपी एक्ट, 2019) से बदल दिया, इसे 09 अगस्त 2019 को राष्ट्रपति द्वारा मंजूर किया गया.

उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2019 को लोकसभा ने 30 जुलाई, 2019 को और राज्यसभा ने 06 अगस्त, 2019 को पारित किया था. यह विधेयक संसद में उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री श्री राम विलास पासवान द्वारा पेश किया गया था.

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए एक कानून है. इसके पास उपभोक्ता शिकायतों को तेजी से हल करने के तरीके और साधन हैं. इस अधिनियम का मूल उद्देश्य, उपभोक्ताओं की समस्याओं को समय पर हल करने के लिए प्रभावी प्रशासन और जरूरी प्राधिकरण की स्थापना करना और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना है.

बढ़ा उपभोक्ता का दायरा

इस कानून के जरिए उपभोक्ता शब्द का दायरा व्यापक रूप से उन उपभोक्ताओं को शामिल करके परिभाषित किया गया है जो ऑनलाइन खरीदारी करते हैं.नए कानून के अनुसार उपभोक्ता शब्द को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो सामान या सेवाओं को एक विचार के लिए खरीदता है जिसका भुगतान या तो आंशिक रूप से किया जाता है या भुगतान करने का वादा किया जाता है.

इस अधिनियम में स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है कि “कोई भी सामान खरीदें” या “किराए पर या किसी भी सेवा का लाभ उठाएं” शब्दों में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों या टेलीमार्केटिंग और टेलीशॉपिंग द्वारा किए गए ऑनलाइन लेनदेन भी शामिल होंगे. कोई व्यक्ति टेलीशॉपिंग बिक्री के आधार पर ऑर्डर देता है और उत्पाद से असंतुष्ट होता है तो उपभोक्ता, उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कर सकता है.

बढ़ा कमी शब्द का दायर

ई कॉमर्स में कई उपभोक्ता ऑनलाइन खरीदार हैं, निर्माता या सेलर या ई-कॉमर्स वेबसाइट द्वारा किसी भी प्रासंगिक जानकारी को छिपाने से उपभोक्ता के निर्णय पर असर पड़ता है. ऐसे में नए अधिनियम के अनुसार विक्रेता की किसी भी लापरवाही, चूक या कमीशन के कार्य से उपभोक्ता को नुकसान या चोट पहुंचती है, उन सभी को “कमी” शब्द के दायरे में शामिल किया गया. जिससे की ई-कॉमर्स पोर्टल को उपभोक्ता को वह सभी जानकारी देनी होगी जो उपभोक्ता के लिए महत्वपूर्ण है.और यदि जानकारी को छुपाया जाता है और ई-पोर्टल द्वारा छुपाया जाता है तो यह उसकी कमी मानी जाएगी.

ई-कॉमर्स शामिल है

सीपी एक्ट 2019 “ई-कॉमर्स” शब्द को डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क पर डिजिटल उत्पादों सहित सामान या सेवाओं की खरीदी या बिक्री के रूप में परिभाषित करता है। ई-कॉमर्स वेबसाइटों को नए उपभोक्ता कानून मे “इलेक्ट्रॉनिक सेवा प्रदाता (प्रोवाइडर)” शब्द का उपयोग करके एक विक्रेता बनाया गया है.

यानी ई कॉमर्स को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जो उत्पाद विक्रेता को विज्ञापन या सामान या सेवाओं को बेचने में सक्षम बनाने के लिए तकनीक या प्रक्रिया प्रदान करता है. एक उपभोक्ता के लिए और इसमें कोई भी ऑनलाइन मार्केटप्लेस या ऑनलाइन नीलामी साइट शामिल है. ऑनलाइन उपभोक्ताओं की अवधारणा की मान्यता के साथ, डिजिटल लेनदेन करने वालों के लिए सेवा या उत्पादों में किसी भी कमी के मामले में यह कानून शिकायतों के लिए एक मंच उपलब्ध कराता है.

विज्ञापन और समर्थन

नए कानून के अनुसार किसी संगठन या संस्था की मुहर के नाम का चित्रण या विज्ञापन भी एक विक्रेता या इलेक्ट्रॉनिक सेवा प्रदाता (प्रोवाइडर) का समर्थक माना जाता है. जो उपभोक्ता को यह महसूस कराता है कि यह इस तरह का समर्थन करने वाले व्यक्ति के दृष्टिकोण, विश्वास, अनुभव को दर्शाता है.

इस प्रावधान के चलते उपभोक्ता ऐसी वेबसाइट या ई पोर्टल के खिलाफ कार्यवाही कर सकते है जो झूठे और भ्रामक विज्ञापन द्वारा उत्पादों या सेवाओं की बिक्री को बढ़ावा देने का कार्य करते है. इस प्रावधान के चलते ई-कॉमर्स साइटों को भी अपनी वेबसाइटों की सूची बनाते समय और समर्थन करते समय सावधान रहना पड़ता है.

प्रोडक्ट की जिम्मेदारी

नए नियमों के अनुसार ई-कॉमर्स वेबसाइट भी अपने प्रोडक्ट के लिए जिम्मेदार है. “उत्पाद का दायित्व (प्रोडक्ट लायबिलिटी)” के सिद्धांत के के साथ कोई भी उपभोक्ता उत्पाद निर्माता, उत्पाद सेवा प्रदाता और उत्पाद विक्रेता के खिलाफ भी शिकायत कर सकता है. और उनकी शिकायतों के लिए ई-कॉमर्स वेबसाइटों को भी शामिल किया गया है.

यानी ई कॉमर्स से खरीदा गया उत्पाद खराब होने की स्थिति में सबसे उसी ई कॉमर्स की वेबसाइट या हेल्पलाइन पर शिकायत का मौका देती है.उत्पाद दायित्व की यह अवधारणा ऑनलाइन उपभोक्ताओं के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि उपभोक्ता केवल उत्पाद को देखने में सक्षम हैं, वास्तविक उत्पाद ऑनलाइन संस्करण से कई बार अलग प्राप्त् होते है.

इसी के प्रावधान के चलते अब कई ई कॉमर्स कंपनियां खरीदी गई सामग्री को वापस करने का मौका देती है.

भ्रामक विज्ञापन को संबोधित करता है

झूठे और काल्पनिक दावे करने वाले और निर्दोष उपभोक्ता को ठगने वाले विज्ञापनों के खिलाफ भी शिकायत की जा सकती है. क्योंकि उत्पाद या सेवा के संबंध में विज्ञापन किसी भी सामग्री के बारे में झूठी गारंटी देता है, जो अगर निर्माता या विक्रेता या सेवा प्रदाता द्वारा किया जाता है, तो एक अनुचित व्यापार व्यवहार होगा या जानबूझकर महत्वपूर्ण जानकारी छुपाएगा.

इस अधिनियम के तहत ऐसे विज्ञापनों के लिए दंड का प्रावधान किया गया है.

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण

उपभोक्ता के लिए अब केन्द्रीय स्तर पर एक नियामक संस्था का भी गठन किया गया है.यह एक वर्ग के रूप में उपभोक्ता के अधिकारों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होगा. सीसीपीए का गठन (कॉन्सीट्यूट) केंद्र सरकार द्वारा किया जाएगा। इस प्राधिकरण को जनता और उपभोक्ताओं के हितों के हानिकारक उल्लंघन से संबंधित मामलों को विनियमित करने और एक वर्ग के रूप में उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, संरक्षित करने और लागू करने का अधिकार है.

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण द्वारा पास किए गए आदेश की अपील ऐसे आदेश की प्राप्ति की तारीख से 30 दिनों की अवधि के भीतर राष्ट्रीय आयोग के तहत दायर की जा सकती है. सीसीपीए सभी ई-कॉमर्स पोर्टलों को शिकायत तंत्र को ऑनलाइन करने के लिए भी कह सकता है, जिसे उपभोक्ता वेबसाइट पर एक्सेस कर सकते हैं और शिकायत अधिकारी का नाम और पदनाम और साथ ही संपर्क नंबर प्रदर्शित कर सकते हैं यदि वेबसाइट पहले से इसका पालन नहीं कर रही हैं.

वैकल्पिक विवाद तंत्र

नए कानून के तहत अब उपभोक्ताओं को शीघ्र राहत देने के लिए और विवादों में देरी को कम करने के लिए वैकल्पिक विवाद समाधान के रूप में “मध्यस्थता (मेडिएशन)” की शुरुआत की गई है.

ऑनलाइन उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या शिकायतों की बढ़ती संख्या को प्रभावित कर सकती है. मध्यस्थता का मंच उपभोक्ताओं के लिए समय, लागत (कोस्ट) और ऊर्जा (एनर्जी)  की बचत करेगा, उनकी शिकायतों को निपटाने के लिए मध्यस्थता का उपयोग करने से सभी प्रकार के उपभोक्ताओं के लिए समय की बचत करेगा.

शिकायत का क्षेत्राधिकार

नए उपभोक्ता कानून का सबसे ज्यादा प्रभावी अधिकार है जिसके तहत एक उपभोक्ता अपनी शिकायत कहा करेगा,इसका पूरा वर्णन किया गया है. नए कानून के अनुसार उपभोक्ता अपनी शिकायत जहां सामान खरीदा गया है उसी जिले के जिला आयोग में दायर कर सकता है.

यह सुविधा ऑनलाइन उपभोक्ताओं के लिए एक अतिरिक्त लाभ है क्योंकि वे जहां कहीं भी रहते हैं या काम करते हैं या व्यापार करते हैं, वहां शिकायत दर्ज कर सकते हैं. इसके साथ जिला आयोग से असंतुष्ट होने पर राज्य और राष्ट्रीय आयोग में अपील का अधिकार दिया गया है. साथ अपील करने के लिए पूर्व की सीमा अवधि को भी 30 से बढ़ाकर 45 दिन कर दिया गया है.

ई—कॉमर्स में शामिल वेब-पोर्टल या ऑनलाईन ब्रिकी करने वाले संस्थानों को अब उत्पाद के मूल देश यानी किस देश में बना हुआ उत्पाद है इसकी जानकारी स्पष्ट तौर पर देनी होगी.