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जीरो एफआईआर पर पुलिस आगे कैसे कार्रवाई करेगी? जानिए स्टैंडर्ड ऑफ प्रोसीजर क्या है?

भारत सरकार ने जीरो एफआईआर और ई-एफआईआर के माध्यम से शिकायत कराने पर आगे कैसे कार्रवाई की जानी चाहिए या किस तरह से कार्रवाई आगे बढ़ेगी, इसे लेकर SOP जारी किया है

Written By Satyam Kumar | Updated : July 14, 2024 5:13 PM IST

How Zero FIR Will Work: नए अपराधिक कानून चर्चा का विषय बना हुआ है. नए कानून में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ने ले ली है. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS 2023) में जीरो एफआईआर (Zero FIR) और ई एफआईआर (E FIR) का जिक्र है. जीरो FIR या E-FIR, देश के नागरिक को, क्षेत्र विशेष से अलग, शिकायत दर्ज कराने की अनुमति देता है. साथ ही एक टाइमलाइन को मेंटेन रखता है कि पुलिस ने कितने दिनों में इस शिकायत पर क्या कार्रवाई की है.

भारत सरकार ने जीरो एफआईआर और ई-एफआईआर के माध्यम से शिकायत कराने पर आगे कैसे कार्रवाई की जानी चाहिए या किस तरह से कार्रवाई आगे बढ़ेगी, इसे लेकर SOP जारी किया है. यह एसओपी (SOP) एफआईआर के पंजीकरण और कार्रवाई में शामिल सभी पुलिस अधिकारियों पर लागू होता है, जिसमें स्टेशन हाउस ऑफिसर (SHO), जांच अधिकारी और प्रशासनिक कर्मचारी शामिल हैं.

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शिकायत लिखने से पुलिस नहीं कर सकती है इंकार 

जीरो एफआईआर किसी भी पुलिस स्टेशन में घटना की शिकायत दर्ज कराने की इजाजत देता है. पहले अक्सर सुनने को मिल जाता था कि पुलिस ने 'घटनास्थल' को दूसरे पुलिस स्टेशन की सीमा क्षेत्र बताकर शिकायत लिखने से मना कर देता था. जीरो एफआईआर के आने से अब ऐसा नहीं होगा. जीरो एफआईआर यह सुनिश्चित करता है कि जांच प्रक्रिया शुरू करने में कोई समय बर्बाद न हो, जिससे तत्काल राहत मिलती है और संबंधित पुलिस अधिकारियों से त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित होती है.

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BNSS की धारा 173(1) के अनुसार, कोई भी व्यक्ति, पुलिस स्टेशन की सीमा क्षेत्र की परवाह किए बिना, किसी भी पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करा सकता है.

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बीएनएसएस की धारा 173(1) के प्रावधानों के अनुसार

“1. संज्ञेय अपराध के होने से संबंधित प्रत्येक सूचना, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में किया गया हो, मौखिक रूप से या इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा दी जा सकती है और यदि किसी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को दी जाती है तो,

शिकायत पर पुलिस चौदह दिनों के भीतर प्रारंभिक जांच करेगी कि क्या आगे की कार्यवाही करने के लिए प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं! प्रथम दृष्टया मामला सामने आने पर जांच को आगे बढ़ाई जाएगी.

रजिस्ट्रेशन और शिकायतकर्ता को जीरो एफआईआर की कॉपी

बीएनएसएस की धारा 173 के तहत प्राथमिक जांच के बाद प्रथम दृष्टतया मामला पाते हुए अधिकारी जीरो एफआईआर दर्ज करता है. एफआईआर नंबर के आगे 'जीरो' लगा होगा है जिससे पता चले कि यह जीरो एफआईआर है.

बीएनएसएस की धारा 173(2) की उपधारा (1) के अनुसार एफआईआर की एक कॉपी शिकायतकर्ता को निशुल्क दी जाएगी. जीरो एफआईआर दर्ज होने के बाद, यदि आवश्यक हो, तो प्राथमिक जांच उसी पुलिस स्टेशन के जांच अधिकारी द्वारा की जा सकती है (जैसे बलात्कार पीड़िता की मेडिकल जांच)

अधिकारी जीरो एफआईआर को घटनास्थल पर अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस स्टेशन को भेजना होगा. वहीं, जब संबंधित पुलिस स्टेशन जीरो एफआईआर प्राप्त करता है और इसे अपने रिकॉर्ड में नियमित एफआईआर के रूप में फिर से दर्ज करेगा है.

एसएचओ (SHO) आगे की कार्रवाई के लिए एफआईआर को जांच अधिकारी(I.O) को सौपेंगे है. जांच अधिकारी बीएनएसएस के तहत मानक प्रक्रियाओं के अनुसार घटना की जांच करेगा. जांच अधिकारी शिकायतकर्ता को जांच की स्थितियों से अवगत कराएगा.

क्या हो अगर पुलिस शिकायत लिखने से मना करें तो...

बीएनएसएस की धारा 173(4) के तहत, अगर ड्यूटी पर मौजूद अधिकारी या थाना प्रभारी शिकायत लिखने से मना कर दें तो शिकायतकर्ता इस बात की शिकायत पत्र लिखकर सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (SP) से कर सकता है. वहीं बीएनएसएस की धारा 199 के तहत अगर पब्लिक सर्वेंट शिकायत लेने से मना कर दें तो उसे ऐसा करने के चलते छह महीने से दो साल तक जेल की सजा और जुर्माना हो सकती है.