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चुनावी उम्मीदवारों की सूची में NOTA कैसे शामिल हुआ? जानिए EVM में इसे लाने का कानूनी किस्सा

नोटा (None Of The Above) पिक क्रेडिट: चुनाव आयोग

NOTA को रिकार्ड वोट पड़ना अपने आप में बड़े सवाल खड़ा करता है, पाठकों के मन में NOTA के कानूनी पक्ष को जानने को लेकर भी उत्सुकता बढ़ रही है, तो आइये जानते है कि NOTA उम्मीदवारों की सूची में कैसे शामिल हुआ? सुप्रीम कोर्ट ने NOTA को लेकर क्या कहा है? तो आइये जानते हैं, नोटा की कहानी क्या है?

Written By Satyam Kumar | Updated : June 17, 2024 1:29 PM IST

None Of The Above: हाल ही में लोकसभा चुनाव संपन्न हुए हैं. चुनाव परिणाम की दौड़ में नोटा (NOTA) ने भी सुर्खियां बटोरी. इंदौर लोकसभा सीट पर तो 'NOTA' दूसरे नंबर पर रही. इंदौर में नोटा को करीब 2,18,674 वोट पड़े. NOTA को रिकार्ड वोट पड़ना अपने आप में बड़े सवाल खड़ा करता है, पाठकों के मन में NOTA के कानूनी पक्ष को जानने को लेकर भी उत्सुकता बढ़ रही है, तो आइये जानते है कि NOTA उम्मीदवारों की सूची में कैसे शामिल हुआ? सुप्रीम कोर्ट ने NOTA को लेकर क्या कहा है? तो आइये जानते हैं, नोटा की कहानी क्या है?

कब आया NOTA?

सितंबर, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को मतदाताओं के लिए उम्मीदवारों के विकल्प के रूप में नोटा ऑप्शन रखने का निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश मतदाताओं के मतों की गोपनीयता बरकरार रखने के लिए दिया.

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NOTA का मामला सामना कैसे आया?

2004 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) नामक गैर-सरकारी संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की.

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PUCL ने दावा किया कि 1961 के चुनाव नियम 'मतदाताओं की गोपनीयता' के अधिकार का उल्लंघन करता है. 1961 के नियमानुसार, चुनाव अधिकारी उन वोटर्स का रिकार्ड रखते हैं, जो मतदान नहीं करने का विकल्प चुनते हैं. अधिकारी वैसे वोटर्स के हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान ले लेते, जिसके उसकी गोपनीयता पर संकट बनी रहती है.

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EVM के मामले में भी, अगर कोई व्यक्ति वोट नहीं देगा, तो वोट देने पर EVM में जलने वाली लाइट नहीं जलेगी, जिससे मतदान केन्द्र पर मौजूद लोगों को समझने में यह देरी नहीं होगी कि अमुक व्यक्ति ने वोट नहीं दिया है.

हालांकि, केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि मतदान का अधिकार "संपूर्ण और सरल एक सांविधिक अधिकार" है (सांविधिक अधिकार, कानून द्वारा प्रदान किया गया है, संविधान द्वारा नहीं), और केवल वही मतदाता जो अपने मतदान का अधिकार का उपयोग करते हैं, उनके पास भी गोपनीयता का अधिकार है, न कि वे जिन्होंने बिल्कुल भी मतदान नहीं किया. वोट देने या नहीं देने, दोनों ही स्थितियों में मतदाता के पास गोपनीयता बनाए रखने का अधिकार है.

चीफ जस्टिस पी.सथसिवम, जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई और रंजन गोगोई की तीन जजों की पीठ ने कहा कि "चाहे कोई मतदाता अपने वोट का प्रयोग करने का निर्णय लेता है या नहीं, दोनों मामलों में गोपनीयता बनाए रखनी होती है."

बेंच ने आगे कहा,

"विशेष रूप से लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों में मतदाता की गोपनीयता 'स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव' की एक आवश्यक विशेषता है और मतदाता के मत या उसकी पहचान का करके कोई सार्वजनिक हित सिद्ध नहीं होगा."

सुप्रीम कोर्ट उक्त फैसला सुनाते हुए चुनाव आयोग और कानून मंत्रालय को नोटिस जारी कर EVM में उम्मीदवारों की सूची में NOTA का विकल्प जारी किया. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी बताया कि NOTA आने से मतदाता, अपने उम्मीदवारों के प्रति राय खुलकर गोपनीय तरीके से जाहिर कर सकेंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर NOTA को वोट मिले तो राजनीतिक दलों के लिए ये सोचने का विषय होगा कि उपयुक्त उम्मीदवार को उश सीट से उतारे.

हालांकि, NOTA कानूनन रूप से को अभी लागू नहीं किया जा सकता है. अगर किसी बूथ पर सबसे ज्यादा वोट NOTA को मिले तो दूसरे नंबर आए उम्मीदवार को विजेता माना जाएगा. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट अभी एक ऐसी याचिका पर सुनवाई कर रहा है, NOTA को सबसे ज्यादा वोट मिलने पर उस लोकसभा सीट से दोबारा से चुनाव कराने की मांग की है.