आपराधिक मामलों में साक्ष्य कैसे रिकॉर्ड किए जाते हैं CrPC के तहत? जानिये
नई दिल्ली: आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 272 से 283 तक में साक्ष्य लेने और अभिलिखित (Recording) किये जाने के तरीके और उनके विषय में बताया गया है। यह प्रावधान आपराधिक मामलों से सम्बंधित है क्योंकि दंड प्रक्रिया संहिता आपराधिक विधि की प्रक्रिया विधि है। न्यायालय कैसे किसी अपराधी के साक्ष्यों को ग्रहण करता है और उसके आधार पर अपना फैसला सुनाता है, आइये इसे विस्तार से जानते हैं
CrPC Section 272 & 273
धारा 272 के अनुसार, साक्ष्य न्यायालय की भाषा में लिया जायेगा। उच्च न्यायालय से भिन्न न्यायालयों की भाषा वह होगी जो राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जाएगी। इसमें यह बात स्पष्ट कर दी गई है कि किसी भी कोर्ट की भाषा का निर्धारण वहां कि राज्य सरकार द्वारा किया जाएगा.
धारा 273 के अनुसार, विचारण एवं अन्य कार्यवाहियों में लिया गया सब साक्ष्य अभियुक्त की उपस्थिति में या जब उसे वैयक्तिक हाजिरी (Personal Attendance) से अभिमुक्ति (Dispensed) कर दिया गया है तब उसके प्लीडर की उपस्थिति में लिया जायेगा।
यह धारा बताती है कि साक्ष्य अभियुक्त की उपस्थिति में लिया जाना चाहिये एंव अभियुक्त को वैयक्तिक हाजिरी से अभिमुक्ति दे दिये जाने पर साक्ष्य उसके प्लीडर की उपस्थिति में लिया जाना चाहिये। अभियुक्त या उसके प्लीडर की अनुपस्थिति में साक्ष्य लिया जाना उचित नहीं है।
स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम डॉ प्रफुल्ल वी देसाई के मामले में भी उच्चतम न्यायालय द्वारा यही कहा गया है कि संहिता की धारा 273 के अनुसार साक्ष्य अभियुक्त की उपस्थिति में लिया जाना चाहिये।
CrPC Section 274 समन मामलों में अभिलेख
इस धारा अनुसार समन मामलों एवं जाँचों में मजिस्ट्रेट द्वारा साक्ष्य के सारांश का ज्ञापन (Memorandum of Substance) न्यायालय की भाषा में तैयार किया जायेगा। ऐसा ज्ञापन स्वयं मजिस्ट्रेट द्वारा अपने हाथों से तैयार किया जायेगा और यदि वह ऐसा करने में असमर्थ है तो उसके द्वारा असमर्थता के कारण लेखबद्ध किये जायेंग।
वारन्ट मामलों में अभिलेख धारा 275
इसके अनुसार मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय वारन्ट मामलों में सब साक्ष्य स्वयं मजिस्ट्रेट द्वारा अभिलिखित किया जायेगा, या खुले न्यायालय में बोलकर लिखवाया जायेगा, और यदि मजिस्ट्रेट शारीरिक या किसी अन्य असमर्थता के कारण स्वयं ऐसा करने के लिए असमर्थ है तो वह ऐसा साक्ष्य अपने दिशा-निर्दश एवं आधीक्षण (Superintendence) में न्यायालय के किसी अधिकारी द्वारा अभिलिखित करायेग।
इसके आगे कि उपधारा कहती है कि मजिस्ट्रेट द्वारा अपनी असमर्थता के कारणों का प्रमाणपत्र अभिलिखित किया जायेगा।
सामान्यतः ऐसा साक्ष्य वृतान्त के रूप में अभिलिखित किया जायेगा। यदि मजिस्ट्रेट चाहे तो अपने विवेकानुसार (Discretion) ऐसे साक्ष्य को प्रश्नोत्तर रूप में अभिलिखित कर सकेगा, ऐसा साक्ष्य मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित होगा, और इसके साथ ही वह अभिलेख का एक भाग समझा जायेगा। जिसके आधर पर कोर्ट अपना फैसलै सुना सकता है।
सेशन न्यायालय के समक्ष विचारण में अभिलेख संहिता की धारा 276 के अनुसार सेशन न्यायालय के समक्ष सब विचारणों में प्रत्येक साक्षी का साक्ष्य, जैसे-जैसे उसकी परीक्षा होती जाती है, वैसे-वैसे उसको स्वयं पीठासीन न्यायाधीश द्वारा लिखा जायेगा या फिर खुले न्यायालय में उसके द्वारा बोलकर लिखवाया जायेगा या उसके द्वारा इसके लिए नियुक्त न्यायालय के किसी अभिकर्ता (Agent) द्वारा उसके निदेशन और अधीक्षण में लिखा जायेगा।
ऐसा साक्ष्य मामूली तौर पर 'वृतान्त' के रूप में या फिर 'प्रश्नोत्तर' के रूप में लिखा जायेगा। ऐसे लिखे गये साक्ष्य पर पीठासीन न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षर किये जायेंगे तथा वह अभिलेख का एक आवश्यक भाग होगा।
सेशन न्यायालय का यह दायित्व है कि वह अभियोजन पक्ष के सभी साक्षियों के कथन लेखबद्ध करें तथा उसकी साक्ष्य बन्द करने से पूर्व उससे पूछ लिया जाना चाहिए। यदि अभियोजन पक्ष की साक्ष्य अनुचित रूप से बंद कर दी जाती है तो अभियोजन पक्ष अपने साक्षियों को संहिता की धारा 311 के अन्तर्गत बुला सकेगा।
क्या है धारा 311
धारा 311 के अनुसार किसी भी स्तर पर किसी भी महत्वपूर्ण गवाह को बुलाने और जांच करने या वापस बुलाने और फिर से जांच करने के लिए एक व्यापक और स्वस्थ शक्ति के साथ निहित है और अभियोजन साक्ष्य को बंद करने पर एक पूर्ण रोक नहीं है।
क्या होगी अभिलेख की भाषा
धारा 277 के अनुसार यदि साक्षी न्यायालय की भाषा में साक्ष्य देता है तो उसे उसी भाषा में लिखा जायेगा। यदि साक्षी अन्य भाषा में साक्ष्य देता है तो जहां तक हो सम्भव हो पाये उसे उसी भाषा में लेखबद्ध (In writing) किया जाएगा और यदि ऐसा किया जाना सम्भव नहीं हो तो उसका न्यायालय की भाषा में सही अनुवाद किय जायेगा। उस पर पीठासीन न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षर किये जायेंगे तथा वह अभिलेख का एक भाग होगा।
यदि साक्ष्य अंग्रेजी में लिखा जाता है और किसी भी पक्षकार द्वारा उसके न्यायालय को भाषा अनुवाद की अपेक्षा नहीं की जाती है तो ऐसे अनुवाद से अभिमुक्ति दी जा सकेगी।
हाईकोर्ट साक्ष्यों को अभिलिखित वैसे हि करेगी जैसे कि सेशन कोर्ट करता है ये बात धारा 283 से स्पष्ट होती है ।